काशी में तबला वादन का जो राज प्रासाद (महल) खड़ा है, उसकी नींव के एक पत्थर का नाम पं. आशुतोष भट्टाचार्य ‘आशु बाबू है। उन्होंने अपने लिए कभी सिर नहीं उठाया वर्ना यह राज प्रासाद ढह गया होता।यह कहना है पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य का। वह सोमवार को ध्रुपद
.
डॉ. आचार्य ने कहा कि काशी के तबला इतिहास में पं. आशुतोष भट्टाचार्य ‘आशु बाबू का नाम सदैव नींव के पत्थर के रूप में लिया जाता रहेगा। उन्होंने नि:स्वार्थ भाव से संगीत की आजीवन सेवा की। उन्होंने संगीत को धन और मान का माध्यम नहीं बनाया। तबला वादन उनकी नाद साधना का हिस्सा था। वह सिर्फ वही आनंद अपने जीवन में चाहते थे जो एक नाद साधक को आनंद कानन में मिलने का अधिकार है।
पं तन्मय बोस का एकल तबला वादक।
आशु बाबू को किया गया याद
विशिष्ट अतिथि संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि काशी के महत्वपूर्ण सांगीतिक आयोजनों को विस्तार देने में ‘आशु बाबू की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने मेरे पितामह महंत अमरनाथ मिश्र के साथ काशी के उदीयमान कलाकारों को मंच प्रदान करने की दिशा में बहुत काम किये। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि वह किसी भी कार्य का श्रेय लेना ही नहीं चाहते थे। वरिष्ठ तबला वादक पं. पूरन महाराज ने ‘आशु बाबू को बनारस घराने की आन, बान और शान करार दिया। पं. अमिताभ भट्टाचार्य, पं रवींद्र गोस्वामी, पं. कामेश्वरनाथ मिश्र ने भी आशु बाबू से जुड़े संस्मरण साझा किए।

तन्वी गोस्वामी के गायन पर झूमे श्रोता।
तन्वी गोस्वामी का हुआ शास्त्रीय गायन
इस मौके पर युवा कलाकार तन्वी गोस्वामी का शास्त्रीय गायन हुआ। उन्होंने नूतन राग नवरंजनी में विलंबित एक ताल में निबद्ध बंदिश ‘आवो सब मिल गायें और तीन ताल में निबद्ध बंदिश ‘नव नव छंद की संतोषप्रद प्रस्तुति दी। तबला पर डॉ. अमित ईश्वर एवं हारमोनियम पर हर्षित उपाध्याय ने संगत की। तानपूरा पर सहयोग डालिया मुखर्जी ने किया। अतिथियों एवं कलाकारों का सम्मन ‘आशु बाबू के पुत्र देवाशीष भट्टाचार्य, शिष्य पं. मणिशंकर त्रिपाठी एवं गौतम चक्रवर्ती ने किया। संचालन डॉ. प्रीतेश आचार्य ने किया।