Sunday, January 19, 2025
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संडे जज्बात-संन्यासी हूं, फिर भी उसकी याद आती है: जापान में लाखों की नौकरी छोड़कर लौटा, गुरु के पास मिलता है सुकून


मेरे गुरु ने मुझे नाम दिया है स्वामी अरविंदानंद गिरी महाराज। मैं आवाह्न अखाड़ा, चौदह मढ़ी, भैरों परिवार से हूं। जैसे आपके परिवार होते हैं वैसे संतों के भी परिवार होते हैं। जैसे आम लोगों में समुदाय होते हैं वैसे ही हमारे भी गिरी, पुरी, भारती और सरस्वती

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आज से लगभग 25 साल पुरानी बात है। मेरी आखिरी नौकरी जापान में थी। मैकेनिकल इंजीनियर था। प्रोडक्ट ब्रांडिंग का काम करता था। जीवन बहुत अच्छा चल रहा था। सब कुछ था मेरे पास। सुखों का संसार था। मैं देश विदेश में अपनी नौकरी के संबंध में घूमा करता था।

आज खाना इस देश में तो दूसरे दिन किसी और देश में। कभी अमेरिका, कभी इंग्लैंड, कभी साउथ अफ्रीका। मैंने बड़ी-बड़ी कंपनी में काम किया है। एक दिन मन में कुछ ऐसा आया कि सबकुछ छोड़कर बाबा बन गया। बिना किसी को बताए सबकुछ छोड़कर भारत आ गया।

स्वामी अरविंदानंद गिरी कहते हैं कि जब नौकरी छोड़ी तो अपने माता-पिता को भी नहीं बताया था।

मेरा जन्म हरियाणा के एक साधारण परिवार में हुआ है। सभी गांव में ही रहते थे। गरीब ही थे। मेरी पढ़ाई-लिखाई बुआ राजकुमारी शर्मा के घर में रहकर हुई। वो गांव की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी महिला थीं। हमारे स्कूल की प्रिंसिपल भी थीं। वो मेरे लिए सबकुछ करती थीं, पढ़ाना, खिलाना, समझाना। अगर बात नहीं सुनता था तो थप्पड़ भी लगा देती थीं। बचपन में ही उन्होंने मुझे बहुत ज्ञानवान बना दिया था। माता-पिता का कोई दबाव नहीं था।

स्कूल के बाद पटियाला के थापर कॉलेज से पढ़ाई की। माता-पिता ने मुश्किल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करवाई थी। पढ़ाई में अच्छा था। नौकरीपेशा जीवन लगभग विदेश में ही बीता। हर किसी की तरह मैं भी यही सोचता था कि अच्छा पैसा होगा, शादी होगी, बच्चे होंगे। जीवन सुख से कटेगा।

मुझे मेरा काम बहुत पसंद था। हालांकि अब मुझे मेरे संन्यास लेने पर भी कोई गिला नहीं है। मेरे जीवन में कई हादसे हुए। जिन्होंने मेरी जिंदगी को काफी बदल दिया। आखिर एक ट्रिगर पॉइंट ऐसा आया जिसके चलते मैंने एक झटके में सब छोड़ दिया। पहले मैं उस घटना के बारे में बताता हूं जिसने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला।

जापान की बात है। मेरे बॉस इंडियन थे। उनके साथ मेरे रिश्ते पारिवारिक थे। घर आना-जाना था। मैं जब भी उन्हें उनकी पत्नी के साथ देखता तो सोचता कि दुनिया में इनसे सुंदर कपल कोई हो ही नहीं सकता।

एक दिन उनके घर गया तो उनकी पत्नी कहने लगीं कि अरविंद अब तू कभी मेरे यहां नहीं आ पाएगा। मैं जा रही हूं। मैंने हैरान होकर पूछा, आप कहां जा रही हैं? तो कहने लगी कि तेरे बॉस मुझे तलाक दे रहे हैं। मैं तो सन्न रह गया। मैंने कहा कि अगर ऐसा हो भी गया तो मैं आपसे मिलने जरूर आऊंगा। आप मेरी मां जैसी हैं। बॉस के साथ मेरे अलग संबंध हैं।

उस दिन मैं सो नहीं पाया। रातभर उनके तलाक के बारे में ही सोचता रहा। इनके रिश्ते को देखकर मैं अपने रिश्ते के लिए परेशान हो गया, क्योंकि मैं भी एक लड़की को पसंद करता था। अगले दिन मैं बॉस के पास गया और बहुत हिम्मत जुटा कर उनसे तलाक के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि तलाक आखिरी लीगल स्टेज पर है। उन्होंने मुझे मैडम की हजार खामियां भी गिनाईं। उसी तरह जैसे बीती रात मैडम ने मुझे मेरे बॉस की हजार खामियां गिनवाई थीं। मुझे लग रहा था कि मेरा ही घर टूट रहा है।

मैं कई दिनों तक दोनों से बात करता रहा। एक दिन बॉस के घर गया और उनकी पत्नी से कहा कि आप सच में तलाक चाहती हैं? ये सुनते ही वो रोने लगीं। मुझे लगा कि अभी भी रिश्ते में गुंजाइश है। अगले दिन मैंने बॉस से कहा कि आप सच में नहीं रहना चाहते मैडम के साथ, कल रात मैडम रो रही थीं। बॉस थोड़ी देर तक कुछ सोचते रहे फिर पता नहीं क्या हुआ उनकी आंखों में भी आंसू आ गए। अगले दिन मैंने दोनों को अपने घर खाने पर बुलाया। मैडम से कहा आज खाना आप ही बनाएंगी। इतने में बॉस भी आ गए। उन्हें पता नहीं था कि मैडम भी आएंगीं। बॉस अपनी वाइफ को देखकर हैरान रह गए।

खाना खाते हुए हम लोगों के बीच खूब बातें हुईं। कुछ बातें इतनी गहरी थीं कि दोनों ने तलाक लेने का फैसला खत्म कर दिया। दोनों फिर से साथ रहने लगे। उसके बाद उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया। मेरा प्रेम उन दोनों को साथ खींच लाया। इस घटना ने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला।

मैं भी शादी करना चाहता था। किसी के साथ जीवन भर रहना चाहता था। मन था कि मैं परिवार बनाऊं। हालांकि हम सोचते कुछ हैं और भाग्य में कुछ और लिखा रहता है। मैंने जो सोचा था वो नहीं हुआ। जिंदगी में जो ट्रिगर पॉइंट साबित हुआ उस बारे में ज्यादा तो नहीं बता सकता, बस इतना कहूंगा कि मैंने गलत नहीं किया। मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, किसी की हत्या नहीं की और न ही कभी जेल गया।

स्वामी अरविंदानंद गिरी कहते हैं कि मैं भी शादी करना चाहता था, परिवार बढ़ाना चाहता था।

स्वामी अरविंदानंद गिरी कहते हैं कि मैं भी शादी करना चाहता था, परिवार बढ़ाना चाहता था।

हां, मुझे किसी से प्रेम था और बेइंतहा प्रेम था, लेकिन मैं उसे छोड़कर भारत आ गया। कैसा लगता है न जब आप किसी ऐसे को छोड़कर आ जाते हैं, जिसके बिना रह नहीं सकते। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। मुझे उसकी संस्कृति मंजूर नहीं थी और उसे मेरी। मुझे भारत और यहां का कल्चर पसंद था, लेकिन उसे नहीं।

मुझे विदेश में उसकी संस्कृति के साथ रहना मंजूर नहीं था। उसने भारत आने से इनकार कर दिया था। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं। फिर मैंने अपने जीवन का सबसे कठिन और कठोर फैसला लिया। मुझे उसे अधर में छोड़ना पड़ा।

एक झटके में मैंने सब खत्म कर दिया। नौकरी से रिजाइन कर दिया। उसे छोड़ दिया, उसका देश छोड़ दिया। लाखों रुपए का पैकेज और ऐशोआराम की जिंदगी को झटके में छोड़ दिया। भारत अपने गुरु को फोन किया कि मैं आ रहा हूं। आज भी मुझे उसकी याद आती है।

जब याद आती है तो भगवान का भजन करने लगता हूं। भजन में भी जब उसकी याद आती है, दर्द होता है, ख्याल में आने लगती है, तब अपने गुरु के पास चला जाता हूं। अगर कोई चीज मुझे रुलाती है तो उसे भुलाने की कोशिश करने लगता हूं। पता है साधु भी रोते हैं, क्योंकि साधुओं का भी समाज होता है। साधुओं की गृहस्थी तो सबसे बड़ी गृहस्थी होती है। आपके पास एक घर है, हमारे पास हजार घर हैं।

मैंने अपने माता-पिता को नहीं बताया था कि नौकरी छोड़ दी है। जानता था कि इससे बहुत हो-हल्ला होगा। भारत आकर सीधा अपने गुरु के आश्रम ऋषिकेश गया। उन्हें बताया कि सबकुछ छोड़ आया हूं।

आश्रम में रहते हुए लगभग दो महीने बीते। मेरे माता-पिता को पता लग गया कि मैं भारत लौट आया हूं।

दरअसल, मेरे गुरु सुमित गिरी महाराज भी हरियाणा से हैं। शायद, उनके किसी शिष्य ने मुझे आश्रम में देखकर माता-पिता को बता दिया। वो लोग मुझे लेने आ गए। बहुत मनाया, लेकिन मैं फैसला ले चुका था। आखिरकार वह लोग चले गए।

मैंने आजीवन संन्यासी बनकर रहने का फैसला ले लिया था। मुझे माता-पिता की कभी याद भी नहीं आती। हां, बुआ की बहुत याद आती है। पता नहीं वो भी जिंदा हैं या नहीं।

सच पूछें तो बेशक आज साधु संन्यासी हो चुका हूं। इसबार मेरा नागा संस्कार होना है और मैं बहुत खुश हूं। ईश्वर ने मुझे सब कुछ दिया है। फिर भी कभी-कभी रो लेता हूं, जब उसकी याद आती है। 25 साल बीत चुके हैं उस बात को। फिर भी जब याद आती है तो बेचैनी होने लगती है। फिर कुछ काम करने लग जाता हूं। किसी न किसी से बात करने लग जाता हूं और अपने आप को व्यस्त कर लेता हूं।

कुछ साल ऋषिकेश रहने के बाद मैं गुरु जी का फरीदाबाद वाला आश्रम संभालने लगा। संन्यास के इतने साल में हजारों लोग मिले। सबने अपनी परेशानियां बताईं। सुनते-सुनते इंसानी रिश्तों का जाल समझने लगा।

एक हादसा मैं कभी नहीं भुला सकता। किसी काम से अपने एक दोस्त से मिलने गया था। वो कॉर्पोरेट जॉब में था। उसके घर पहुंचा तो वो आत्महत्या की तैयारी कर रहा था। वो किसी आर्थिक मजबूरी में फंस चुका था और परिवार ने साथ देने से इनकार कर दिया था। उस रात मैं उसे अपने साथ लेकर आया। उसे दो-तीन महीने अपने साथ रखा। नौकरी भी दिलवाई। उसको देखकर मुझे लगा कि किस काम का ऐसा परिवार जो मरने के लिए अकेला छोड़ दे। वो भी सिर्फ इसलिए कि आपके पास पैसा नहीं है। इंसानी रिश्तों के जंजाल की इतनी कहानियों से गुजर चुका हूं कि मुझे लगता है कि ईश्वर में ध्यान लगाना सबसे अच्छा है।

स्वामी अरविंदानंद गिरी कहते हैं कि कुंभ के बाद एजुकेशन के काम पर जोर रहेगा।

स्वामी अरविंदानंद गिरी कहते हैं कि कुंभ के बाद एजुकेशन के काम पर जोर रहेगा।

कुंभ के बाद चाहता हूं कि जो कुछ भी पढ़ा है, सीखा है, उसे दूसरों के साथ शेयर करूं। हम चाहते हैं बच्चे मॉडर्न होने के साथ-साथ आध्यात्मिक भी बनें। धर्म और मॉडर्न एजुकेशन को क्लब करने के लिए लाइब्रेरी और स्कूल कॉलेज पर काम कर रहा हूं। मध्यप्रदेश और प्रयागराज में हम कॉलेज बना रहे हैं। एक ऑफर आया है किसी सेठ का कि महाराज मैं भी एक कॉलेज बनवाना चाहता हूं। इस तरह से कुंभ के बाद एजुकेशन का काम जोरों पर रहेगा। मुंबई के लिए हमारा खास प्लान है।

(ये बातें स्वामी अरविंदानंद गिरी ने दैनिक भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं)

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