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संडे जज्बात-15 साल की थी, 12 लोगों ने रेप किया: 80 गांव की पंचायतों ने कहा- इसमें जो पसंद आए शादी कर लो


मैं सलमा, रेप विक्टिम हूं इसलिए पहचान बदल गई।

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9 सितंबर 2012 की बात है। उस रोज रविवार था। मैं 12वीं क्लास में थी। 10 दिन बाद एग्जाम होने थे। घर से कुछ दूर नानी का घर था। मैं अक्सर वहां जाती रहती थी। मेरी कुछ किताबें भी नानी के यहां रह गई थी।

दोपहर के साढ़े 3 बज रहे होंगे। नानी के यहां किताबें लेने जा रही थी। ऑटो से उतर कर कुछ दूर पैदल जाना होता था। जैसे ही ऑटो से उतरी, कुछ लोगों ने मुझे पकड़कर जबरदस्ती कार में बैठा लिया।

दूर जगंल की तरफ ले गए, नदी के किनारे। वो लोग मेरे साथ जबरदस्ती करने लगे, मुझे पीटा। जितना मुझे याद है- कुल 12 लोग थे। 18 साल से लेकर अधेड़ उम्र के आदमी थे। मैं सिर्फ एक-दो को ही पहचान रही थी।

दो लोगों ने मेरे हाथ पकड़े थे और दो लोगों ने पैर। मैं चीखती रही। जिन्हें पहचान रही थी उनसे कहा- तुम तो मेरे गांव के हो, भाई हो, छोड़ दो। वो मुझे ये कहकर मारने लगे कि भाई कैसे कहा।

धीरे-धीरे मुझे धुंधला दिखाई देने लगा, बेहोश हो गई। मुझे कुछ भी याद नहीं। शाम के 7 बज रहे होंगे। होश आया, तो देखा शरीर पर कपड़े नहीं थे। दोनों पैर नदी के किनारे लटक रहे थे। तेज धारा बह रही थी। वे लोग आपस में कह रहे थे कि ये मर गई है। अब हमें यहां से चले जाना चाहिए।

उस दिन मेरा शरीर मरा हुआ था, बस सांसें चल रहीं थीं। आज भी मुझे गहरे पानी से डर लगता है।

पहली बार ऐसा हुआ था कि अपने शरीर का भार ही नहीं उठा पा रही थी। कुछ देर बाद जैसे-तैसे उठ पाई। कागज से खुद को साफ किया। पास में ही मेरे फटे कपड़े पड़े थे, वही पहन लिए। डेढ़-दो किलोमीटर दूर सड़क तक आई। एक व्यक्ति ने मुझे गांव तक छोड़ दिया। दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि घर नहीं पहुंची तो सब सोचेंगे कहीं चली गई।

मुझे तो पता भी नहीं था कि मेरे साथ क्या हुआ है। इससे पहले कभी गैंगरेप, बलात्कार जैसे शब्द नहीं सुने थे। घर आते ही चुपचाप एक शॉल ओढ़कर सो गई। गर्दन से लेकर पैर तक पूरा शरीर नाखून से नोंचा हुआ था।

मैं पूरे दिन शॉल ओढ़े रहती थी। न कुछ खाना, न पीना। किसी से कुछ नहीं बोलती थी। हालांकि अगले दिन ही मैं स्कूल चली गई। क्लास में सबसे पीछे बैठी थी। टीचर ने पूछा सलमा नहीं आई है क्या? क्लास के बच्चे बोले- पीछे बैठी है। किसी से बात नहीं कर रही है।

मैं सिर झुकाए फूट-फूट कर रोने लगी। शरीर में इंफेक्शन फैल गया था, जिसकी वजह से दर्द बहुत ज्यादा था। चलना-बोलना मुश्किल था। चाहकर भी अपनी ये हालत किसी को बता नहीं पा रही थी। टीचर ने घर भेज दिया। सहेली मुझे छोड़ने घर तक आई।

रास्ते में वे लड़के मिले, जिन्होंने मेरे साथ रेप किया था। मेरी दोस्त ने बताया कि गांव के ही हैं। वे मुझे दूर से मोबाइल में वीडियो दिखा रहे थे। कह रहे थे, किसी को पता चला तो वीडियो वायरल कर देंगे।

कुछ दिन बाद उन लड़कों ने मेरी सहेली के साथ भी गैंगरेप किया। सहेली ने आत्महत्या कर ली। आज भी उस दिन को याद करती हूं तो सहम जाती हूं।

घटना के दो दिन बाद ही मेरी तबीयत खराब होने लगी। अब्बू मजदूरी करने चले जाते थे और अम्मी स्कूल में पढ़ाती थी। कोई देखभाल करने वाला नहीं था। मैं नानी के घर चली गई। वहां 9 दिनों तक गुमसुम रही।

एक दिन नानी ने अम्मी को फोन पर कहा, तुम्हारी बेटी कुछ खाती-पीती नहीं। दिनभर चुपचाप रहती है। आकर डॉक्टर को दिखा दो, पता नहीं क्या हो गया है इसे।

मेंटली और फिजिकली ट्रॉमा के बावजूद मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा।

मेंटली और फिजिकली ट्रॉमा के बावजूद मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा।

अब मुझे डर था कि यदि ये लोग मुझे डॉक्टर के पास लेकर गए, तो सब कुछ पता चल जाएगा।

दर्द की वजह से मैं खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। उसी के बाद मैंने घरवालों को सब कुछ बता दिया।

सुनते ही अब्बू बोले- चलो थाने, एफआईआर दर्ज करवाएंगे। अब्बू मुझे लेकर थाने जाने लगे। रास्ते में वे लोग फिर से मिल गए। अब्बू से कहने लगे, जानते नहीं हो क्या हमें। यहीं पर मारकर गाड़ देंगे। वापस लौट जाओ।

उन लोगों का क्रिमिनल रिकॉर्ड भी था इसलिए अब्बू डर गए। वे थाने नहीं गए। मुझे और अम्मी को वापस नानी के घर भेज दिया। खुद घर चले गए।

अगली सुबह पता चला कि अब्बू हॉस्पिटल में हैं। हॉस्पिटल पहुंची, तो पता चला कि अब्बू ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली है।

मैं 15-16 साल की थी। एक तरफ मेरे साथ गैंगरेप, दूसरी तरफ सामने रखी अब्बू की डेड बॉडी…। मैं सुध-बुध खो चुकी थी। खुद को ही कोसने लगी थी।

यह खबर आग की तरह फैल गई। हॉस्पिटल के बाहर मीडिया का तांता लग गया। मैंने प्रशासन से गुहार लगाई कि अपराधियों को पकड़ा जाए। एफआईआर दर्ज की जाए। हॉस्पिटल के गेट पर अब्बू की डेड बॉडी 5 दिनों तक पड़ी रही। पुलिस ने एफआईआर दर्ज करके 12 में से 8 लोगों को गिरफ्तार किया।

इसी बीच मेरा बोर्ड का एग्जाम भी चल रहा था। पिता की डेड बॉडी छोड़कर मैं एग्जाम देने जाती थी। जिस दिन अब्बू का जनाजा निकलना था। मैं एग्जाम हॉल में बैठी थी। पेपर आंसू से गीला हो गया था। अम्मी का बस यही कहना था- जो होना था, हो गया। तुम पढ़ो। तुम्हारे अब्बू चाहते थे कि तुम डॉक्टर बनो।

घर में अब्बू की इकलौती तस्वीर है। अम्मी ने सब कुछ छिपाकर रख दिया है। देखती हूं, तो वो पुराने दिन आंखों के सामने आ जाते हैं।

घर में अब्बू की इकलौती तस्वीर है। अम्मी ने सब कुछ छिपाकर रख दिया है। देखती हूं, तो वो पुराने दिन आंखों के सामने आ जाते हैं।

स्कूल में बच्चे, टीचर, सब मुझे घूरते थे। कहते थे, अरे! यही है, वो लड़की जिसके साथ गैंगरेप हुआ है।

अपराधियों का परिवार मुझे मार देना चाहता था। वो लोग एग्जाम सेंटर तक मेरा पीछा करते थे। 5-6 बार हमला करने की कोशिश भी की। उसी के बाद से 6 साल तक मेरे साथ PCR वैन और 14 गनमैन रहे।

इधर रिश्तेदार और गांव वाले, अम्मी पर मेरी शादी का दबाव बनाने लगे। कहते थे सबको पता चल गया तो इससे ब्याह कौन ही करेगा।

80 गांव की खाप पंचायतें मुझे समझौते के लिए बुलाती थीं। वो लोग कहते थे, पैसे लेकर केस वापस ले लो। इनमें से जिस लड़के से तुम्हें शादी करनी है, बताओ। हम तुम्हारी शादी करा देंगे। मामले को खत्म करो।

मैंने कहा, अब ये मामला पंचायत से बाहर का हो चुका है। मैं समझौता नहीं करूंगी। कैसे करती। खुद के साथ-साथ बाप को भी खोया था।

अपराधियों के परिवार वाले कहते थे, जितना पैसा चाहिए ले लो। मैं बस यही सोचती कि जो कुछ खोया है क्या उसकी कीमत लगाई जा सकती है।

हादसे के बाद से मैं कई महीने चैन से सोई नहीं। उस दिन को भुलाना इतना मुश्किल है कि मैं बता भी नहीं सकती। आज भी जब सितंबर का महीना आता है, तो मुझे सब याद आने लगता है।

मैंने अपना बचपन नहीं जिया। जिस उम्र में बच्चे अपना करिअर बनाते हैं। परिवार के साथ रहते हैं, मैं कोर्ट के चक्कर लगा रही थी।

मैंने अपना बचपन नहीं जिया। जिस उम्र में बच्चे अपना करिअर बनाते हैं। परिवार के साथ रहते हैं, मैं कोर्ट के चक्कर लगा रही थी।

मामला जब कोर्ट पहुंचा, तो कोई एडवोकेट केस लेने को तैयार नहीं था। कोई केस लेता भी तो उसके ऑफिस में तोड़फोड़ कर देते। बाद में हिसार के एक एडवोकेट केस लड़ने को तैयार हुए।

कोर्ट में रेपिस्ट मुस्कुराते हुए मेरे सामने से गुजरते। पहली बार जब कोर्ट गई तो आरोपियों को देखते ही बेहोश हो गई थी। 15 दिनों तक हॉस्पिटल में रही।

गांव के 500 से ज्यादा लोग उनके पक्ष में कोर्ट में जमा रहते। 24-24 वकीलों का ग्रुप बहस करने के लिए आता। कोर्ट रूम में भी बार-बार उस घटना से संबंधित बातें पूछते।

हद तो तब हो गई, जब अपराधियों को कठघरे में बैठने के लिए कुर्सी दे दी गई। जबकि मैं खड़ी होने में भी असमर्थ थी। ये सब देखकर सोचती थी, काश! उसी दिन मर गई होती।

कोर्ट-कचहरी के चक्कर देखकर घरवाले भी कह देते थे, तू भी मर जाती, तो केस नहीं करना पड़ता। ये सब नहीं होता।

मुझे मुआवजा मिला था, इसलिए रिश्तेदार भी भद्दे कमेंट करते थे। मेरी ओर इशारा करते हुए वे अपने बच्चों से कहते- ये तो 12 मरद की कमाई खाती है। इसकी बराबरी तुम कैसे कर सकती हो।

कई बार खुद को खत्म करने का सोचा, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई। मेरे साथ अम्मी की भी काउंसलिंग होती थी। मुझे नींद की गोली लेनी पड़ती। उस घटना की वजह से बचपन की यादें भी भूल चुकी हूं।

जब मैं अपने एडवोकेट के चेंबर में जाती, तो उनकी किताबों को देखती। मन में सोचती कि अगर मैं अपनी पीड़ा एक फीमेल एडवोकेट से शेयर करती, तो कितना आसान रहता। क्योंकि सारी बातें मेल एडवोकेट से शेयर करना आसान नहीं था। उसी के बाद मुझे एडवोकेट बनने का जुनून चढ़ा।

12वीं के बाद मैंने जिस कॉलेज में एडमिशन लिया, उसे पहले साल में ही छोड़ना पड़ा। वहां सबको पता चल गया था कि मैं एक रेप विक्टिम हूं। सब कमेंट करते थे। प्रिंसिपल से शिकायत करने गई, तो उन्होंने कहा- अब तुम्हारे साथ रेप हुआ है, बच्चे तो बोलेंगे ही। ये सब नॉर्मल है।

2022 में लॉ की पढ़ाई कंप्लीट की और बार काउंसिल का लाइसेंस लिया।

2022 में लॉ की पढ़ाई कंप्लीट की और बार काउंसिल का लाइसेंस लिया।

वो कॉलेज को छोड़कर रोहतक के एक कॉलेज में लॉ में एडमिशन लिया। हमेशा सुरक्षा में, पुलिस के बीच रहना होता था। हालांकि उनके बीच भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती थी।

कई बार मेरी सुरक्षा करने वाले ही कहते थे, तुम्हारा रेप तो हुआ ही है। हमारे साथ भी संबंध बना लोगी, तो क्या बिगड़ जाएगा। वे मुझे छूने की कोशिश करते थे।

एक बार मैं कंप्यूटर की क्लास गई थी। वहां अधेड़ उम्र का एक आदमी मुझसे मिलने आया। मुझे देखते ही बोला, मैं आपकी मदद करना चाहता हूं। आपसे शादी करना चाहता हूं। उसकी बातें सुनकर मैं हैरान थी कि हमदर्दी के बहाने भी लोग अपना फायदा देखते हैं।

मन ही मन सोचने लगी ये कैसी मदद है। मेरी उम्र 20 साल और उसकी लगभग 45 साल। मैंने उससे कहा, ये नहीं हो सकता। मैं आपसे शादी कैसे कर सकती हूं। आपकी उम्र काफी ज्यादा है। मेरे इतना कहते ही वो खीजते हुए वहां से चला गया।

2015 में हिसार कोर्ट ने 4 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। 4 लोगों को बेल मिल गई। 8 ही लोग गिरफ्तार हुए थे। इनके खिलाफ हाईकोर्ट में मामला पेंडिंग है। अब मैं बतौर एडवोकेट खुद के मामले में पैरवी करना चाहती हूं। जो एडवोकेट मेरा केस लड़ रहे थे अब मैं उनके साथ ही प्रैक्टिस कर रही हूं। कुछ दिन पहले मेरी सिक्योरिटी हटा ली गई है। इसके खिलाफ भी हिसार कोर्ट में अपील कर रही हूं।

इसी महीने बार काउंसिल से लाइसेंस मिला है। घटना के बाद से कभी अपने गांव नहीं गई। अब जाना चाहती हूं। मैंने उसी दिन ठान लिया था कि अब गांव विक्टिम बनकर नहीं, एक सर्वाइवल बनकर, एडवोकेट बनकर जाउंगी।

जिस दिन लाइसेंस लेकर आई, अम्मी देखते ही रोने लगी। आज भी जब कभी हम इन बातों को दोहराते हैं तो आंसू से कपड़े गीले हो जाते हैं।

जिस दिन लाइसेंस लेकर आई, अम्मी देखते ही रोने लगी। आज भी जब कभी हम इन बातों को दोहराते हैं तो आंसू से कपड़े गीले हो जाते हैं।

अब यही सोचती हूं कि मेरे जैसी न जाने कितनी लड़कियां हैं। कई तो अपने लिए लड़ भी नहीं पाती हैं, मैं उनकी मदद करना चाहती हूं।

मेरे गांव की ही एक लड़की थी, जिसका रेप हुआ था। घरवालों ने उसकी शादी कर दी। शादी के बाद रेपिस्ट उसे परेशान करने लगे, वीडियो भेजने लगे। आज वो लड़की अपने मायके में है।

हिसार शहर से 8 किलोमीटर दूर मेरा गांव है। यहां ज्यादातर आबादी सवर्णों की है। एक दशक पहले की बात है। सवर्ण निचली बिरादरी के लोगों के साथ छुआछूत करते थे, लेकिन उनकी लड़कियों को छेड़ते थे।

मेरी बिरादरी में लड़की को बाहर पढ़ने-लिखने के लिए भेजने का कोई चलन नहीं था। लड़की के पैदा होते ही उसके हाथ में चूल्हा-चौका थमा दिया जाता था। घर का काम करती थी और फिर कम उम्र में शादी हो जाती थी।

अगर कोई लड़की पढ़ने की जिद करती, तो 8वीं क्लास तक ही घरवाले पढ़ाते। मैं इस मामले में थोड़ी खुशकिस्मत थी। एक बेटे की तरह मुझे पढ़ने-लिखने का मौका मिला। किसने सोचा था कि मेरे साथ ये सब हो जाएगा और हमारा सब कुछ बदल जाएगा।

ये सारी बातें सलमा ने भास्कर रिपोर्टर नीरज झा से शेयर की…

(पहचान छिपाने के लिए नाम बदले गए हैं)

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