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संभल के कल्कि विष्णु मंदिर के पुजारी महेंद्र शर्मा का मानना है कि भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि इसी जगह जन्म लेंगे। ये मंदिर उस शाही जामा मस्जिद से सिर्फ 200 मीटर दूर है, जहां 24 नवंबर को सर्वे के दौरान हिंसा भड़क गई थी। इसमें 4 लोग मारे गए। भीड़ के हमले में 20 से ज्यादा पुलिसवाले जख्मी हो गए।
हिंदू पक्ष का मानना है कि जामा मस्जिद की जगह कभी हरिहर मंदिर था। दावा है कि बाबर के राज में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। कोर्ट ने 19 नवंबर को इसके सर्वे के आदेश दिए थे। मंदिर का एक नक्शा वायरल हो रहा है, वो महेंद्र शर्मा के पास ही है।
मंदिर-मस्जिद का ये विवाद नया नहीं है। इसकी शुरुआत 146 साल पहले 1878 में हुई थी। इसके बाद 1976 में मस्जिद पर हमले के बाद दंगे भी हुए। यहीं से संभल के हिंदू और मुस्लिम बंट गए। संभल हिंसा की कवरेज के दौरान दैनिक भास्कर ने इन पुराने विवादों की पड़ताल की और इनसे जुड़े लोगों से मिला। पढ़िए ये रिपोर्ट-
मस्जिद से जुड़ा पहला विवाद साल 1878, जब कोर्ट का फैसला हिंदू पक्ष के खिलाफ गया संभल पर कभी तोमर और चौहान राजाओं का राज था। उनके बाद दिल्ली सल्तनत के आखिरी सुल्तान इब्राहिम लोदी ने यहां की सत्ता हासिल की। 1526 में बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हरा दिया। इसके बाद भारत में मुगल वंश की शुरुआत हुई। संभल भी मुगलों के अधीन आ गया।
अंग्रेजों की हुकूमत के दौरान 1874 में ब्रिटिश अफसर कार्लाइल संभल आए थे। उन्होंने शाही मस्जिद का निरीक्षण किया। कार्लाइल ने देखा कि मस्जिद का गुंबद हिंदू वास्तुकला के मुताबिक बना है। हालांकि, इसमें जो ईंटें इस्तेमाल हुई हैं, वे मुस्लिमों के बनाए स्ट्रक्चर में लगती हैं।
कार्लाइल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मस्जिद की बनावट के हिसाब से देखा जाए तो इसकी वास्तुकला बाबर के समय से भी पुरानी हो सकती है। मस्जिद की वास्तुकला, बदायूं और जौनपुर के पठानी शैली की इमारतों से मिलती-जुलती है।
1878 में शाही जामा मस्जिद को लेकर पहली बार कानूनी विवाद हुआ। हिंदू पक्ष ने मुरादाबाद की अदालत में याचिका लगाई। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद प्राचीन हिंदू मंदिर की जगह पर बनाई गई थी। मामला आगे बढ़ा, तो इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
तब मुख्य न्यायाधीश रहे सर रॉबर्ट स्टुअर्ट ने हिंदू पक्ष की अपील खारिज कर दी। बताया जाता है कि अपील खारिज होने की वजह सबूतों की कमी थी। मस्जिद के अंदर मूर्ति की परिक्रमा के लिए मार्ग नहीं था। हिंदू पक्ष के गवाह भी कमजोर माने गए क्योंकि वे खुद कभी मस्जिद के अंदर नहीं गए थे। इसका जिक्र सरकारी गजट में मिलता है।
दूसरा विवाद साल 1976, जब जलतेरस यात्रा के दौरान मस्जिद में घुसी भीड़ अगले करीब 100 साल संभल में शांति रही। ये शांति 1976 में एक दंगे ने खत्म कर दी। इसके बाद सदियों से मिल-जुलकर रह रहे हिंदू और मुस्लिम बंट गए। दंगे के बारे में जानने के लिए हम RTI एक्टिविस्ट और जर्नलिस्ट साद उस्मानी से मिले। 1976 में उनकी उम्र 17 साल थी।
साद बताते हैं, ‘ये शिवरात्रि की बात है। रात में कुछ लोग शाही जामा मस्जिद में घुस गए। उन्होंने इमाम मोहम्मद हुसैन को जिंदा जला दिया। वे संभल के अहरोला गांव के रहने वाले थे। मस्जिद में मोहम्मद हुसैन की मजार भी बनी है।’
साद आगे बताते हैं, ‘ये घटना 29 फरवरी, 1976 की है। शिवरात्रि पर जलतेरस यात्रा निकाली जा रही थी। रविवार-सोमवार की रात कुछ लोग मस्जिद में घुस गए। वे सुबह की नमाज से पहले वजूखाने के पास हिंदू विधि से पूजा करना चाहते थे।’
‘मस्जिद के इमाम मोहम्मद हुसैन ने उनका विरोध किया। वे मस्जिद में अकेले थे। मस्जिद में घुसे लोगों ने उन्हें गोली मार दी। तलवार से पैर काट दिया। कुरान जला दी। अगले दिन ये खबर फैली तो संभल में दंगा भड़क गया। कई दिन तक कर्फ्यू लगा रहा।’
‘उस वक्त देश में इमरजेंसी लगी थी। तब विधायक रहे शफीकुर्रहमान बर्क को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, वे जल्दी ही जेल से बाहर आ गए थे। बर्क तब भारतीय क्रांति दल के नेता थे। जनसंघ के विजय प्रकाश त्यागी भी गिरफ्तार हुए थे। उनकी मंदिर आंदोलन में मुख्य भूमिका रही है।’
1976 में हुई घटना के बारे में कल्कि मंदिर के पुजारी महेंद्र शर्मा बताते हैं, ‘उस दौरान मैं मस्जिद गया था। वहां कुछ सामान पड़ा हुआ था। कुछ कागज और कपड़े थे। मैंने कोई लाश नहीं देखी। हमारे मोहल्ले में इस पर चर्चा होती थी। सब यही कहते थे कि ये नौटंकीबाजी है। किसी की मौत नहीं हुई है। इस पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई।’
‘शिवरात्रि पर हर बार जुलूस निकलता है। इसका रास्ता मस्जिद के सामने है। वो नगर पालिका का रास्ता है। वहां से कोई भी जा सकता है। मस्जिद में जाने की मनाही है। अब तो वहां पुलिस की ड्यूटी रहती है।’
‘1976 से अगर किसी को हरिहर मंदिर देखने जाना होता था, तो एक प्रोसेस होती है। आपको DM और SP को सूचना देनी होती थी। आपके साथ पुलिस भी अंदर जाती थी। इसी वजह से मस्जिद के बाहर पुलिस बैठा दी गई। इसके बाद से कोई झगड़ा नहीं हुआ। हिंदू अब उस तरफ नहीं जाते।’
महेंद्र शर्मा आगे बताते हैं, ‘पुलिस जिस जगह बैठती है, वहां एक कूप है। कूप का मतलब पातालतोड़ कुआं है, जिसका कोई अंत नहीं मिलेगा। संभल में 19 कूप हैं। इन 19 कूपों के नाम भी हैं। मंदिर में कृष्ण कूप है। मस्जिद के बाहर वाले को धरनिवराह कूप बोलते हैं।’
‘मस्जिद के अंदर भी एक कूप है। इसे यज्ञ कूप कहते हैं। धरनिवराह कूप में पानी नहीं बचा, तो लोगों ने कचरा फेंकना शुरू कर दिया। इसमें किसी के गिरने का खतरा भी था, इसलिए उसे बंद कर दिया गया।’
दिवाली पर मस्जिद के कुएं पर दीया जलाने जाते थे लोग मस्जिद के पास ही हमें दिलीप कुमार गुप्ता मिले। वे बताते हैं, ‘1976 में पता चला था कि मंदिर (मस्जिद) के अंदर किसी को मार दिया गया है। कई दिन तक कर्फ्यू लगा रहा। वहां एक कुआं था। मैंने खुद देखा है महिलाएं वहां पूजा करती थीं। दिवाली पर लोग वहां दीया जलाने जाते थे।’
दैनिक भास्कर ने कांग्रेस लीडर और 1980 में विधायक रह चुके शरीयत उल्लाह खान से बात की। शरीयत उल्लाह खान की उम्र अभी 90 साल है। वे बताते हैं, ‘कल्कि अवतार कहां होगा, ये मजहबी आस्था है। किस जगह होगा, ये किसी को नहीं पता। संभल में कल्कि मंदिर सदियों से मौजूद है।’
‘जनसंघ से जुड़े विजय प्रकाश त्यागी ने कई बार मस्जिद के मंदिर होने का दावा किया था। वे लोगों को भड़काते थे। ये सच है कि 1976 में कुछ लोग मस्जिद में घुस गए थे। उन्होंने इमाम की हत्या कर दी थी। तब संभल में दंगे हुए थे।’
तीसरा विवाद: कल्कि धाम, कल्कि मंदिर या हरि मंदिर, कहां होगा अवतार जर्नलिस्ट साद उस्मानी बताते हैं कि कांग्रेस लीडर रहे आचार्य प्रमोद कृष्णम संभल में कल्कि धाम लेकर आए। इसे लेकर कई मिथक फैलने लगे। इसलिए भी दोनों पक्षों के बीच तनाव गहराता गया। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने 18 साल पहले श्री कल्कि धाम की स्थापना का सपना देखा था। उनका मानना है कि कल्कि अवतार संभल में होगा।
साद उस्मानी आगे कहते हैं, ‘प्रमोद कृष्णम 2014 में संभल और 2019 में लखनऊ से कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वे संभल के एचवाड़ा कम्बोह के रहने वाले हैं। उन्होंने कल्कि महोत्सव की शुरुआत की। ये हर साल फरवरी में होता है। इस साल हुए महोत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बड़े नेता आए थे।’
‘भगवान कल्कि का अवतार अब तक किताबों तक सीमित था, उसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में आचार्य प्रमोद कृष्णम की मुख्य भूमिका रही है।’
फरवरी में हुए कल्कि महोत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। इस दौरान उन्होंने श्री कल्कि धाम मंदिर की आधारशिला रखी थी।
साद उस्मानी बताते हैं, ‘इसके बाद केला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरि की एंट्री हुई। उनका मानना है कि कल्कि भगवान का अवतार एचवाड़ा में नहीं बल्कि संभल के एक प्राचीन मंदिर में होगा। ये मंदिर कल्कि धाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है इसे रानी अहिल्या बाई ने बनवाया था। दोनों पक्षों में बहस जारी है कि कल्कि भगवान का जन्म संभल में होगा या एचवाड़ा में होगा।’
वे आगे कहते हैं, ‘इस साल का कल्कि महोत्सव बहजोई में 28 सितंबर से 4 अक्टूबर तक हुआ था। बहजोई संभल जिले का हेडक्वार्टर है। कार्यक्रम की कवरेज के लिए बड़े चैनल और मीडियावाले मौजूद थे। इसमें DM, SP और SDM मौजूद रहे। इसके फौरन बाद शाही जामा मस्जिद पर दावा पेश किया गया।’
‘19 नवंबर को मस्जिद के सर्वे का आदेश जारी हुआ, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि पहले की है। इसकी काफी समय से तैयारी चल रही थी। कुछ भी अचानक नहीं हुआ। संभल संवेदनशील शहर है। इसलिए प्रशासन को दूसरी बार सर्वे कराने से पहले दोनों समुदायों के लोगों से बात करनी चाहिए थी। पीस कमेटी से मिलना चाहिए था। उसके बाद सर्वे करना चाहिए था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।’
कल्कि मंदिर के पुजारी बोले- मंदिर के परकोटे में होगा कल्कि अवतार संभल के श्री कल्कि विष्णु मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ये भारत में कल्कि भगवान का इकलौता मंदिर है। यहां के पुजारी 80 साल के महेंद्र शर्मा बताते हैं, ‘मंदिर के नक्शे से पता चलता है कि ये 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। नक्शे में मंदिर का नाम मनु श्री कल्कि मंदिर लिखा है। आखिरी बार इसका निर्माण लगभग 250 साल पहले अहिल्या बाई के परिवार ने कराया था। आज भी अहिल्या बाई ट्रस्ट की तरफ इसका काम होता है।’
महेंद्र शर्मा आगे कहते हैं, ‘संभल का इतिहास चारों युगों में मिलता है। सतयुग में इसका नाम सत्यव्रत था। त्रेता में इसे मेहदगिरी और द्वापरयुग में पिंगल के नाम से जाना गया। कलयुग में संभल का नाम शंभवालय है। इसका मतलब है भगवान शिव का घर। सतयुग में इसका नाम सत्यव्रत पड़ा, तब का इतिहास स्कंदपुराण में लिखा है।’
‘स्कंदपुराण के आखिरी खंड भूमिवारा में संभल के हर मंदिर का जिक्र है। हरि मंदिर संभल के बीचों-बीच है। संभल में 68 तीर्थ और 19 कूप हैं। संभल 36 कुएं और 52 सराय में बसा है। हरि मंदिर को केंद्र मानकर किसी भी मंदिर और तीर्थ के बारे में पता चल सकता है।’’
‘संभल में दो कोट हैं। इनका नाम भी कोट इसीलिए पड़ा क्योंकि वे परकोटे के अंदर हैं। इसके पूर्व में बसे मोहल्ले को कोट पूर्वी और पश्चिम में बसे मोहल्ले को कोट गर्बी कहते हैं। उर्दू में कोट गर्बी और कोट शर्गी कहते हैं। इसी परकोटे के अंदर रहने वाले किसी परिवार में कल्कि भगवान पैदा होंगे। इस पूरे परकोटे को मंदिर कहा जाएगा।’
‘यह परकोटा श्री कल्कि मंदिर से शुरू होकर सब्जी मंडी तक है। सरथल चौकी से नगर पालिका तक भी परकोटा है। पुराने समय में हरि मंदिर का इस्तेमाल राजाओं ने किले की तरह किया। किले के चारों तरफ एक नहर भी थी।’
महेंद्र आगे बताते हैं, ‘संभल में तीन मंदिर हैं, जहां परिक्रमा होती है। ये मनोकामना मंदिर, रेहत का मंदिर और हरिहर मंदिर हैं। मैं बचपन में मंदिर (जामा मस्जिद) गया था।’
‘गर्भगृह के सामने एक दीवार खड़ी करके उस पर कलमा लिख दिया गया है। उसके दोनों तरफ दरवाजे थे। मैंने हमेशा इन्हें बंद देखा है। इससे पता चलता है कि इसमें परिक्रमा मार्ग होगा। मस्जिद के आंगन में एक हवन कुंड भी था, जिसे ये लोग वजूखाना कहते हैं।’
हिंसा के बाद कैसा है संभल का माहौल हम मस्जिद से सटे कोट पूर्वी और कोट गर्बी इलाके में भी गए। यहां कोई भी कैमरे पर बात नहीं करना चाहता। लोग डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि कुछ भी बात करने से उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। कोट गर्बी मस्जिद के पीछे का इलाका है। यहां घरों पर ताले लटके हैं। इस बस्ती में ज्यादातर घर मुस्लिमों के हैं। कोट पूर्वी में हिंदू आबादी रहती है। यहां माहौल सामान्य है। दुकानें भी खुली हैं।
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संभल के जामा मस्जिद विवाद से जुड़ी ये स्टोरी भी पढ़ें…
1. जामा मस्जिद या हरिहर मंदिर, अचानक क्यों जल उठा संभल
काशी और मथुरा के बाद अब संभल में जामा मस्जिद की जगह मंदिर होने का विवाद बढ़ गया है। इस पर याचिका लगाने वालों में केला देवी मंदिर के महंत ऋषिराज गिरी भी हैं। महंत कहते हैं, ‘हरिहर मंदिर के लिए हमारी लड़ाई काफी साल से चल रही है। बस दुनिया के सामने आज आई है। हम इसे लेकर अब कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। पढ़िए पूरी खबर…
2. मस्जिद में तोड़फोड़ की अफवाह से संभल में भड़की हिंसा
24 नवंबर को सुबह 6 बजे टीम दोबारा मस्जिद का सर्वे करने पहुंची थी। एडवोकेट कमिश्नर, DM, SP के साथ RAF, PAC और उत्तर प्रदेश पुलिस की 8 गाड़ियां थीं। लोग सुबह की नमाज अदा करके मस्जिद से बाहर निकले। तभी अफवाह फैली की मस्जिद के अंदर तोड़फोड़ की जा रही है। इसी से हिंसा भड़की। पढ़िए पूरी खबर…