लव जिहाद के मामले में बरेली कोर्ट के फैसले में सुप्रीम मुहर लगने के बाद पीड़िता ने इस पर खुशी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट में उस टिप्पणी को हटाने की अपील की गई थी जो बरेली फास्ट ट्रैक कोर्ट ने लव जिहाद का फैसला सुनाते हुए अपने आदेश में कहा था। लेकिन स
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हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़कियों से दूर रहना चाहिए
पीड़िता ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में कहा कि मैंने अपनी लड़ाई अकेले लड़ी है सारे समाज ने मुझे ठुकराया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मैं बहुत खुश हूं। यह बिल्कुल फैसला सही हुआ है। मैं सारी हिंदू लड़कियों से यही बोलना चाहूंगी यह मुस्लिम लड़कों से दूर दूरी बनाकर रखें। ये लोग हिंदू बनकर अपने प्रेम जाल में फंसाकर धर्मांतरण कराते हैं। फिर बाद में उन्हें टॉर्चर करते हैं या उनको मार देते।
पीड़िता ने सीएम योगी से मांगी मदद
लव जिहाद की शिकार हुई पीड़िता काफी परेशान है। उसका कहना है कि समाज ने उसे अलग थलग कर दिया हैं। पीड़िता का कहना है कि योगी आदित्यनाथ जी मेरी सहायता करे। समाज की तरफ से मुझे उस नजर से ना देखा जाए। मुझे समाज के सहारे की बहुत जरूरत है।
लव जिहाद का मकसद गैर मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम में लाना
लव जिहाद का मुख्य मकसद डेमोग्राफी चेंज और अंतर्राष्ट्रीय तनाव बढ़ाना है और सुनियोजिति षडयंत्र के तहत गैर मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम में लाना है। बरेली फास्ट कोर्ट के इस अहम फैसले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। सुप्रीम अदालत ने निचले कोर्ट की बरेली के एक सनसनीखेज मामले में की गई टिप्पणी को साक्ष्य आधारित मानते हुए हटाने से इंकार कर दिया है। शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता अनस नामक शख्स को फटकार भी लगाई है। बरेली फास्ट ट्रेक कोर्ट ने दुष्कर्म और अन्य अपराधों में मुस्लिम समुदाय से जुड़े अभियुक्त आलिम को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
बरेली के देवरनिया का है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद के जिस मामले में निचली अदालत की ओर से की गई टिप्पणी को साक्ष्य आधारित माना है, वह बरेली के थाना देवरनिया क्षेत्र से जुड़ा है। बरेली में मोहम्मद आलिम नामक युवक ने कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पढ़ाई कर रही एक छात्रा को अपना नाम आनंद बताकर लव जिहाद का शिकार बनाया था। एक ही इलाके में रहने के कारण दोनों अक्सर साथ बरेली आते थे और उनकी पहचान हो गई थी। मुस्लिम युवक हाथ में कलावा बांधता था और खुद को हिन्दू बताता था। 13 मार्च 2022 को आरोपी युवक छात्रा को बहाने से एक मंदिर ले गया और उसकी मांग में सिंदूर भर दिया। इसके बाद आलिम ने छात्रा को दोस्त तालिम के कमरे पर ले जाकर कई बार शारीरिक सम्बंध बनाए।
आरोपी के घर पहुंचने पर हुआ खुलासा
गर्भवती होने पर छात्रा आरोपी युवक के गांव गई पता लगा कि वह आनंद नहीं, बल्कि उसका असली नाम मोहम्मद आलिम है। भेद खुलने पर आलिम और उसके परिवार ने छात्रा पर गर्भपात को दबाव बनाया था और विरोध पर पीटकर घर से निकाल दिया था। इतना ही नहीं, आरोपी मोहम्मद आलिम ने बाद में छात्रा को गर्भपात की दवा खिला दी थी। हालत बिगड़ने पर आलिम छात्रा को एक नर्सिंग होम ले गया और उसका जबरन उसका गर्भपात करा दिया था। पीड़ित छात्रा ने न्याय के लिए पुलिस में दस्तक दी तो उसकी एफआईआर दर्ज हुई थी। फास्ट ट्रेक कोर्ट ने इस चर्चित मामले में सुनवाई करते हुए नाम बदलकर और शादी का झांसा देकर रेप व गर्भपात कराने का दोषी मानते हुए मोहम्मद आलिम को उम्र कैद और 10 साल कैद की सजा सुनाते हुए लव जिहाद मामले में सख्त टिप्पणी की थी।
कोर्ट ने विदेशी फंडिंग का भी किया था जिक्र
बरेली कोर्ट ने कहा कि सम्बंधित मामला लव जिहाद के माध्यम से अवैध धर्मांतरण का है। लव जिहाद में मुस्लिम पुरुष शादी के जरिए इस्लाम में धर्मांतरण के लिए हिन्दू महिलाओं को निशाना बनाते हैं। जैसे कि मोहम्मद आलिम ने अपना नाम आनंद बताकर पीड़िता को धोखे में रखकर उससे शादी और बलात्कार किया। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि क्योंकि लव जिहाद में काफी पैसों की जरूरत होती है, इसलिए विदेशी फंडिंग के तथ्य से इंकार नहीं किया सकता है। इसके जरिए देश में पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे हालात पैदा करने की कोशिश की जा रही है। लव जिहाद का मकसद जनसांख्यिकीय बदलना और अंतराष्ट्रीय तनाव को भड़काना है। यह देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए खतरा है। इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। समय रहते इस पर रोक नहीं लगाई गई तो गंभीर परिणाम होंगे।
यूपी में बना है अवैध धर्मांतरण को लेकर कानून
देश में लव जिहाद पर कानून बनाने वाला सबसे पहला राज्य यूपी है। प्रदेश में अवैध धर्मांतरण के मामले बढ़ने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ा कानून बनाने का निर्देश दिए थे। जिसके बाद राज्य में 28 नवंबर 2020 को उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 लागू किया गया था, जिसे विधानमंडल से मंजूरी भी मिल गई थी। पहले ऐसे मामलों में अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा और 50 हजार तक जुर्माना निर्धारित किया गया था। पिछले साल संशोधन कर ऐसे मामलों में सजा को बढ़ाकर उम्रकैद तक कर दिया गया था। यह कानून बनने के बाद से यूपी में पीड़ितों के लिए न्याय की राह आसान हुई और मामलों में जल्दी कानूनी फैसले भी आते भी देखे जा रहे हैं।