Thursday, December 26, 2024
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मैटरनिटी लीव पर जवाब मांगा: याचिकाकर्ता बोली- 3 महीने से ज्यादा उम्र का बच्चा गोद लेने पर लीव नहीं मिलती, ये असंवैधानिक


नई दिल्ली33 मिनट पहले

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3 महीने से कम उम्र का बच्चा गोद लेने पर ऐसी माताओं को 12 हफ्ते की लीव का प्रावधान है।

सुप्रीम कोर्ट ने 12 नवंबर को केंद्र सरकार की मैटरनिटी लीव पॉलिसी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकारी की मैटरनिटी बेनिफिट अमेंडमेंट एक्ट के सेक्शन 5(4), 2017 की कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी को चुनौती दी है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि 3 महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों को गोद लेने पर मैटरनिटी लीव नहीं मिलती है। ऐसे में बच्चा गोद लेने वाली माताओं को दी गई कथित 12 सप्ताह की मैटरनिटी लीव सिर्फ एक दिखावा है।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस पंकज मिठल की बेंच ने इस संबंध में केंद्र सरकार से 3 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करने का कहा है। साथ ही जवाब की कॉपी पहले याचिकाकर्ता को देने के निर्देश दिए हैं।

अभी नियम ये है कि 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली या सरोगेट माताओं को 12 हफ्तों की छुट्टी मिलेगी। लेकिन 3 महीने से ज्यादा के बच्चों को गोद लेने पर मैटरनिटी लीव का कोई प्रावधान नहीं है।

SC ने केंद्र से 3 सप्ताह के अंदर मांगा जवाब जस्टिस पारदीवाला ने कहा- याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने 3 महीने की उम्र को सही ठहराते हुए अपना जवाब दाखिल किया है, लेकिन सुनवाई के दौरान कई मुद्दे सामने आए हैं जिन पर विचार करने की जरूरत है। ये क्या तर्क है कि बच्चा 3 महीने या उससे कम का होना चाहिए? मैटरनिटी लीव देने का मकसद क्या है? इसको लेकर केंद्र से 3 सप्ताह के अंदर जवाब पेश करे।

याचिका में ये बातें भी कही गईं

धारा 5(4) बच्चा गोद लेने वाली माताओं के साथ भेदभावपूर्ण और मनमानी के जैसी है। साथ ही 3 महीने और उससे ज्यादा उम्र के वो बच्चे जो अनाथ हैं, छोड़े गए हैं या सरेंडर (अनाथालय) किए गए हैं, उनके साथ भी मनमाना व्यवहार करती है। ये मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के मोटिव के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं करती है।

– धारा 5(4) बायोलॉजिकल माताओं को दिए जाने वाले 26 सप्ताह की मैटरनिटी लीव की तुलना बच्चा गोद लेने वाली माताओं को मिलने वाली 12 सप्ताह की लीव से करना संविधान के भाग III की बुनियादी जांच में भी नहीं टिक पाती है। इसमें मनमानी नजर आती है।

मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट (संशोधित) 2017 की मुख्य बातें जो आपको जाननी चाहिए…

  • यह महिला कर्मचारियों के रोजगार की गारंटी देने के साथ-साथ उन्हें मैटर्निटी बेनिफिट का अधिकारी बनाता है, ताकि वे बच्चे की देखभाल कर सकें।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात को अगले 6 महीने तक मां का दूध अनिवार्य होता है, जिससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट हो। इसके लिए महिला कर्मचारी को छुट्टी दी जाती है।
  • इस दौरान महिला कर्मचारियों को पूरी सैलरी दी जाती है।
  • यह कानून सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं पर लागू होता है, जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।
  • मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत पहले 24 हफ्तों की छुट्टी दी जाती थी, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 26 हफ्तों में तब्दील कर दिया गया है।
  • महिला चाहे तो डिलीवरी के 8 हफ्ते पहले से ही छुट्टी ले सकती है।
  • पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 हफ्ते की मैटर्निटी लीव का प्रावधान है।
  • तीसरे या उसके बाद के बच्चों के लिए 12 हफ्ते की छुट्टी का प्रावधान है।
  • 3 महीने से कम उम्र के बच्चों को गोद लेने वाली या सरोगेट मांओं को भी 12 हफ्तों की छुट्टी दी जाएगी।
  • ये छुट्टियां लेने के लिए किसी भी महिला की उसके संस्थान में पिछले 12 महीनों में कम-से-कम 80 दिनों की उपस्थिति होनी चाहिए।
  • अगर कोई संस्था या कंपनी इस कानून का पालन नहीं कर रही है, तब कंपनी के मालिक को सजा का प्रावधान भी है।
  • इसके अलावा पत्नी और नवजात बच्चे के लिए पिता भी पेड लीव ले सकते हैं। पितृत्व अवकाश 15 दिनों का होता है, जिसका फायदा पुरुष पूरी नौकरी के दौरान दो बार ले सकता है।
  • सीढ़ियां चढ़ने या ऐसा कोई काम जो महिला के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो तो महिला ऐसे काम को करने के लिए मना कर सकती है।
  • गर्भवती महिला को छुट्टी न देने पर 5000 रुपए का जुर्माना लग सकता है
  • अगर किसी भी संस्था द्वारा गर्भावस्था के दौरान महिला को मेडिकल लाभ नहीं दिया जाता है तब 20,000 रुपए का जुर्माना लग सकता है।
  • किसी महिला को छुट्टी के दौरान काम से निकाल देने पर 3 महीने की जेल का भी प्रावधान है।

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मैटरनिटी लीव से जुड़ीं ये खबरें भी पढ़ें…

संविदाकर्मी भी मैटरनिटी लीव की हकदार:सिविल सर्विसेज ट्रिब्यूनल ने दिए आदेश, फिर से नौकरी जॉइन कराने को कहा

दिल्ली हाईकोर्ट ने 24 अगस्त को कहा कि सभी प्रेग्नेंट वर्किंग विमेन मैटर्निटी बेनिफिट (गर्भावस्था के दौरान मिलने वाले लाभ) की हकदार हैं। उनके परमानेंट या कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने से फर्क नहीं पड़ता। उन्हें मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 2017 के तहत राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता। जस्टिस चंद्र धारी सिंह की बेंच ने दिल्ली स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (DSLSA) में संविदा पर काम करने वाली एक गर्भवती महिला को राहत देते हुए यह टिप्पणियां की थीं। पूरी खबर पढ़ें…

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