नई दिल्ली2 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (23 मई) को एक ऐसे व्यक्ति को सजा नहीं दी, जिसे POCSO एक्ट 2012 के तहत दोषी ठहराया गया था। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा, ‘जांच रिपोर्ट के मुताबिक, ये सच है कि कानून की नजर में यह एक अपराध है, लेकिन पीड़ित को ऐसा महसूस नहीं हुआ। उसे सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात से हुई कि उसे लगातार पुलिस और कोर्ट में जाना पड़ा और आरोपी को सजा से बचाने की कोशिशें करनी पड़ीं।’
दरअसल, मामले में युवक को उस समय दोषी ठहराया गया था जब उसने एक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। हालांकि, बाद में लड़की के बालिग होने पर दोनों ने शादी कर ली और अब वे अपने बच्चे के साथ रह रहे हैं।
कोर्ट बोला- पीड़ित लड़की को सही विकल्प चुनने का मौका नहीं दिया गया
कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और मानवीय पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है, इसलिए अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए सजा नहीं दी गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता को पहले कोई सही विकल्प चुनने का मौका ही नहीं मिला।
समाज ने उसे जज किया, कानून उसकी मदद नहीं कर सका और उसके परिवार ने उसे अकेला छोड़ दिया। अब वह महिला दोषी व्यक्ति से भावनात्मक रूप से जुड़ चुकी है और अपने छोटे से परिवार को लेकर बहुत संवेदनशील है। वह परिवार की रक्षा करना चाहती है।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2023 में युवक को बरी कर दिया था
यह मामला की सुनवाई 2023 में कलकत्ता हाई कोर्ट में हुई थी। तब हाई कोर्ट ने आरोपी युवक को बरी करते हुए कुछ विवादित टिप्पणियां की थीं।
हाई कोर्ट ने उसकी 20 साल की सजा को पलटते हुए नाबालिग लड़कियों और उनके तथाकथित ‘नैतिक कर्तव्यों’ को लेकर आपत्तिजनक बातें कही थीं।
हाई कोर्ट ने कहा था कि युवा लड़कियों को ‘अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए’ और यह भी कहा कि समाज ऐसे मामलों में लड़की को ही ‘हारने वाली’ मानता है।
इन टिप्पणियों की आलोचना होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया था। 20 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और युवक की को फिर दोषी करार दे दिया था।
कोर्ट ने पीड़ित लड़की के मानसिक स्वास्थ्य के आकलन का आदेश दिया
हालांकि, युवक को दोषी करार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उसे तुरंत सजा नहीं सुनाई। कोर्ट ने पहले पीड़ित लड़की की वर्तमान स्थिति और उसकी राय जानने के लिए प्रक्रिया का आदेश दिया।
इसके लिए पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया गया कि वह एक विशेषज्ञ समिति गठित करे, जिसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस (NIMHANS) या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) जैसे संस्थानों के विशेषज्ञ और एक बाल कल्याण अधिकारी शामिल हों।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह समिति पीड़ित से बात कर उसकी मानसिक और सामाजिक स्थिति का आकलन करे। साथ ही पीड़ित लड़की को उसकी भलाई से जुड़ी सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी दे और यह सुनिश्चित करे कि वह जो भी फैसले ले, वे पूरी जानकारी और समझ के साथ हों।
सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित को व्यवसायिक ट्रेनिंग दिए जाने की बात कही
इस साल 3 अप्रैल को जब कोर्ट ने रिपोर्ट पढ़ी और खुद पीड़ित लड़की से बात की, तो पाया कि उसे आर्थिक मदद की जरूरत है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि 10वीं की परीक्षा के बाद उसे कोई व्यवसायिक ट्रेनिंग या पार्ट-टाइम नौकरी देने पर विचार किया जाए।
कोर्ट ने रिपोर्ट के आधार पर कहा कि पीड़ित लड़की अब आरोपी से भावनात्मक रूप से जुड़ चुकी है और अपने छोटे से परिवार को लेकर बहुत संवेदनशील है। कोर्ट ने यह भी कहा, ‘उसे पहले सही जानकारी और विकल्पों के साथ फैसला लेने का मौका ही नहीं मिला। सिस्टम ने हर स्तर पर उसे असफल किया।’