घटना की आधिकारिक पुष्टि शुक्रवार की सुबह 5.24 बजे हुई थी।
गुजरात के सूरत में शुक्रवार की तड़के सुबह किम रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक के साथ छेड़छाड़ की गई थी। यहां अप लाइन की पटरी से फिश प्लेट और 71 कीज हटा दी गई थीं। वहीं, दो फिश प्लेट उसी पटरी पर रख दी गई थीं। लेकिन, समय रहते ही की-मैन सुभाष कुमार ने य
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की-मैन सुभाष कुमार ने ही रची थी साजिश
अब इसी मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि यह साजिश खुद की-मैन सुभाष कुमार ने ही रची थी। रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार सुभाष ने प्रमोशन पाने के लिए इस पूरे षड़यंत्र को अंजाम दिया था। कीज और फिश प्लेटें भी उसी ने ही निकाली थीं। अब पुलिस इस जांच में जुटी है कि सुभाष ने इसमें किन-किन लोगों की मदद ली थी। देश में लगातार ट्रेनों को बेपटरी करने की वारदात से सुभाष को यह आइडिया आया था। उसने सोचा था कि बड़ा हादसे रोकने की उसकी सतर्कता से उसे जल्द ही प्रमोशन मिल जाएगा।
सुभाष ने ही रेलवे मास्टर को दी थी सूचना
पटरियों को लॉक रखने वाली 71 कीज भी हटा दी गई थीं।
कीम रेलवे स्टेशन मास्टर को सबसे पहले की-मैन सुभाष कुमार ने ही इसकी जानकारी दी थी। सुभाष ने बताया था कि वह अपनी ड्यूटी के दौरान रेलवे ट्रैक का निरीक्षण कर रहा था। इसी दौरान उसने देखा कि ट्रैक से फिश प्लेट और कीज के पार्ट निकालकर उन्हें अप मेन लाइन के ऊपर रख दिया गया है।
सूचना मिलते ही स्टेशन मास्टर ने इस ट्रैक से कुछ ही देर में गुजरने वाली दो पैसेंजर ट्रेनें रुकवा दी थीं। ट्रैक से 5.30 बजे गरीब रथ को गुजरना था। उसके बाद 5.45 बजे सुपरफास्ट अगस्त क्रांति ट्रेन गुजरने वाली थी। हालांकि 20 मिनट में ही नई फिश प्लेट लगाने के बाद रेलवे सेवा बहाल कर दी गई थी।
अब जानिए, वे दो बड़ी वजहें, जिससे रेलवे अधिकारियों को सुभाष पर शक हो गया था…
दो फिश प्लेट खोलकर उन्हें ट्रैक पर दोनों तरफ रख दिया गया था।
शक की पहली वजह: अनुभवी व्यक्ति भी 30 मिनट में दो फिश प्लेट ही खोल सकता है इस घटना में एक किमी की दूरी पर दो फिश प्लेट व 78 पेडलॉक निकाले गए हैं। इस गतिविधि में एक घंटे तक का समय लग सकता है। ट्रैक पर इतने लंबे समय तक काम करना संभव नहीं है। इससे साफ था कि यह काम करने वाला रेलवे का अनुभवी था।
रेलवे के अनुभवी कर्मचारी होने के अलावा उसके पास पर्याप्त औजार होने चाहिए। इसके बावजूद भी दो फिश प्लेट खोलने में ही 30 मिनट का समय लग सकता है। जांच के लिए रेलवे के तकनीकी विशेषज्ञों के अलावा स्थानीय पुलिस, एटीएस व एनआईए की टीम को भी शामिल किया गया था।
शक की दूसरी वजह: 5 किमी तक का सर्च ऑपरेशन
रेलवे के टेक्निकल एक्सपर्ट्स के साथ एटीएस व एनआईए की टीम भी जांच में शामिल थीं।
आरोपियों और औजारों की तलाश के लिए स्थानीय पुलिस की 5 टीमों के अलावा आरपीएफ और जीआरपीएफ की टीमों ने ट्रैक के दोनों तरफ 5 किमी तक सर्च ऑपरेशन चलाया था। पुलिस को आशंका थी कि आरोपी औजार कहीं फेंक कर जा सकते हैं, लेकिन कुछ नहीं मिला। इसके अलावा ट्रैक के आसपास एक से ज्यादा व्यक्ति का आवाजाही के भी सुबूत नहीं मिले।
जांच टीम ने घटना के समय इस ट्रैक से गुजरने वाली दो ट्रेनों के लोको पायलट से भी पूछताछ की। लेकिन, इन दोनों ट्रेनों के लोको पायलट को दो से तीन किमी के दायरे में इंसानी गतिविधि नजर नहीं आई थी। इसके अलावा आसपास के दर्जनों सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले गए थे, लेकिन उनमें भी कोई संदिग्ध गतिविधी दिखाई नहीं दी।
घटना की सूचना मिलने से 20 मिनट के अंतराल ये दो ट्रेनें गुजरी थीं…
ट्रैक से हुई आवाजाही की शिनाख्त के लिए डॉग स्क्वॉड की भी मदद ली गई थी।
घटना की आधिकारिक पुष्टि सुबह 5.24 बजे हुई थी। इससे पहले 20 मिनट के अंतराल पर यहां से दो ट्रेनें गुजरी थीं। इनमें 14808 डाउन दादर भगत की कोठी (सुबह 4.38-4.44 बजे के बीच डाउन लाइन पर कीम-कोसंबा स्टेशन से 110 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से क्रॉस हुई थी। इसके बाद सुबह 4.53/4.58 बजे के बीच 12952 दिल्ली-मुंबई राजधानी एक्सप्रेस 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से क्रॉस हुई थी।
कोसंबा से कीम रेलवे स्टेशन के करीब 5 किमी तक के इलाके की जांच की गई थी।