Konark Sun Temple: कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है. ‘कोणार्क’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- ‘कोना’ जिसका अर्थ है ‘कोना’ और ‘अर्क’ जिसका अर्थ है ‘सूर्य’. इसका अर्थ हुआ “कोने का सूर्य”. यह मंदिर पुरी के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थित है. यह मंदिर सबसे अद्भुत वास्तुशिल्प चमत्कारों में से एक है. इस मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में…
मंदिर की अनोखी संरचना
मंदिर को एक विशाल रथ के रूप में डिजाइन किया गया है, जिसमें 24 विशाल पहिए और 7 पत्थर के घोड़े हैं. हर पहिया लगभग 12 फीट ऊंचा है और इसमें 8 तीलियां हैं, जो दिन के आठ भागों को दर्शाती हैं. मंदिर के पहिए सूरज की दिशा के अनुसार समय दिखाने वाले धूपघड़ी के रूप में काम करते हैं और इससे दिन-रात का समय मिनट के हिसाब से बताया जा सकता है.
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह खड़े हैं, जो हाथियों को दबाए हुए हैं और हाथी एक मानव को दबाए हुए हैं. यह चित्रण ईश्वरीय शक्ति की विजय को दर्शाता है. मंदिर की दीवारों पर नृत्य, संगीत, जीवन के विभिन्न पहलुओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं.
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चुंबकीय पत्थर का रहस्य
कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक इसके चुंबकीय पत्थर की है. कहा जाता है कि मंदिर के शिखर पर एक विशाल चुंबकीय पत्थर लगा था, जिसकी वजह से आसपास से गुजरने वाले जहाजों के कंपास काम करना बंद कर देते थे.
ऐसा माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली नाविकों ने इस चुंबकीय पत्थर को हटा दिया, जिससे मंदिर की मुख्य संरचना कमजोर हो गई और गिर गई. हालांकि, इसका कोई पक्का प्रमाण नहीं है.
धर्मपद की कहानी
मंदिर से जुड़ी एक लोकप्रिय कथा धर्मपद नाम के एक 12 वर्षीय लड़के की है. कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 1200 कारीगरों द्वारा किया जा रहा था, लेकिन अंतिम पत्थर को रखने में कठिनाई हो रही थी. राजा ने चेतावनी दी कि अगर मंदिर समय पर पूरा नहीं हुआ, तो सभी कारीगरों को मौत की सजा दी जाएगी.
ऐसे में, धर्मपद ने अपनी बुद्धिमानी से इस समस्या का हल निकाल दिया. लेकिन कारीगरों को डर था कि राजा यह जानकर नाराज होंगे कि एक बच्चे ने यह काम कर दिखाया, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है.
इसलिए, धर्मपद ने खुद को चंद्रभागा नदी में कूदकर बलिदान दे दिया. यह कहानी त्याग और बलिदान का प्रतीक मानी जाती है.
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सांबा और सूर्य मंदिर की कथा
एक अन्य कथा भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा से जुड़ी है. कहा जाता है कि उन्हें ऋषि दुर्वासा के श्राप से कोढ़ हो गया था. इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने सूर्य देव की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें स्वस्थ कर दिया.