नई दिल्ली50 मिनट पहले
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सोनिया गांधी ने लिखा – शिक्षा नीति भारत के युवाओं और बच्चों की शिक्षा के प्रति सरकार की गहरी उदासीनता को दिखाती है।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की आलोचना की है।
अंग्रेजी अखबार द हिंदू के एक आर्टिकल में सोनिया गांधी ने लिखा ‘केंद्र सरकार शिक्षा नीति के माध्यम से अपने 3 सी एजेंडे (केंद्रीकरण , व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकता) को आगे बढ़ा रही है। शिक्षा नीति भारत के युवाओं और बच्चों की शिक्षा के प्रति सरकार की गहरी उदासीनता को दिखाती है।

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का द हिंदू में प्रकाशित आर्टिकल।
सोनिया गांधी के लेख की 4 प्रमुख बातें –
1. मोदी सरकार शिक्षा के ढांचे को कमजोर कर रही है
सोनिया ने अपने लेख में केंद्र पर संघीय शिक्षा ढांचे को कमजोर करने का आरोप लगाया। लिखा कि मोदी सरकार राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णयों से बाहर रखकर शिक्षा के संघीय ढांचे को कमजोर कर रही है। शिक्षा नीति में केंद्र सरकार ने सारी ताकत अपने हाथ में ले ली है, और सिलेबस और संस्थानों में सांप्रदायिकता फैलाई जा रही है।
सोनिया ने शिक्षा नीति के लिए निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में राज्य सरकारों को दरकिनार करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने बताया कि केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक सितंबर 2019 से नहीं हुई है। जिसमें केंद्र और राज्य दोनों के मंत्री शामिल हैं।
2. सरकारी स्कूलों की जगह प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा अभियान (SSA) के लिए अनुदान रोककर राज्य सरकारों को पीएम-श्री (पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को लागू करने के लिए “मजबूर” किया है।
उन्होंने लिखा, ये फंड राज्यों को कई सालों से बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम को लागू करने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता के हिस्से के रूप में दिए जा रहे हैं।
शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति ने भी SSA निधियों को बिना शर्त जारी करने का आह्वान किया था।
गांधी ने सरकार पर स्कूली शिक्षा के “अनियंत्रित निजीकरण” को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। RTE ने सभी बच्चों की पहुंच प्राथमिक स्कूलों तक सुनिश्चित की थी।
इसके तहत एक किलोमीटर के भीतर एक निम्न प्राथमिक विद्यालय (कक्षा I-V) और तीन किलोमीटर के भीतर एक उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा VI-VIII) होना चाहिए। NEP “स्कूल परिसरों” के विचार को बढ़ावा देकर RTE के तहत इन पड़ोस के स्कूलों की अवधारणा को कमजोर करता है।
2014 से देश भर में 89,441 पब्लिक स्कूलों बंद हो गए, जबकि 42,944 निजी स्कूल खुले है। NEP में देश के गरीबों को सार्वजनिक शिक्षा से बाहर कर दिया गया है।

3. यूनिवर्सिटी को कर्ज लेने पर मजबूर किया जा रहा
उन्होंने 2025 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के लिए नए मसौदा दिशानिर्देशों की ओर इशारा किया, उन्होंने लिखा राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के चयन में राज्य सरकारों की भूमिका को लगभग खत्म कर दिया गया है। यह संघवाद के लिए गंभीर खतरा है।
उच्च शिक्षा में, केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा फाइनेंसिंग एजेंसी (HEFA) की शुरुआत की है। विश्वविद्यालयों को HEFA से बाजार ब्याज दरों पर ऋण लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। जिसे राज्यों को बाद में अपने राजस्व से चुकाना होगा। ऋण चुकाने के लिए छात्रों की फीस बढ़ोत्तरी का सामना करना पड़ता है।
अनुदान की मांग पर अपनी 364वीं रिपोर्ट में, संसदीय स्थायी समिति ने पाया कि इन ऋणों का 78% से 100% हिस्सा विश्वविद्यालयों द्वारा छात्र शुल्क के माध्यम से चुकाया जा रहा है।
4. सरकार शिक्षा प्रणाली के माध्यम से घृणा फैला रही
सोनिया गांधी ने सरकार पर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से घृणा फैलाने और उसे बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की किताबों से इतिहास से जुड़े महत्वपूर्ण हिस्से हटाए गए हैं।
मुगल काल और महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े हिस्सों को पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया, लेकिन जनता के विरोध के बाद संविधान की प्रस्तावना को वापस जोड़ा गया। शैक्षणिक योग्यता के बजाय वैचारिक विचारों के आधार पर सदस्यों की नियुक्ति की आलोचना की।
उन्होंने लिखा, “प्रमुख संस्थानों में नेतृत्व के पद दब्बू विचारधारा वालों के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं,” उन्होंने चेतावनी दी कि प्रोफेसरों और कुलपतियों के लिए योग्यताओं को कम करना इस एजेंडे का हिस्सा है।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा – सोनिया को अधिक जानकारी हासिल करनी चाहिए
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोनिया गांधी के लेख पर टिप्पणी करते हुए कहा ‘सोनिया गांधी को अधिक जानकारी हासिल करनी चाहिए और भारतीय शिक्षा प्रणाली के ‘भारतीयकरण’ का समर्थन करना चाहिए।’ फडणवीस ने नई शिक्षा नीति (NEP) की सराहना करते हुए कहा कि NEP भारत की शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण है।
जानिए क्यों शुरू हुआ ये विवाद
NEP 2020 के तहत, स्टूडेंट्स को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की आजादी है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं। किसी भी भाषा की अनिवार्यता का प्रावधान नहीं है।
प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है। वहीं, मिडिल क्लासेस (क्लास 6 से 10 तक) में तीन भाषाओं की पढ़ाई करना अनिवार्य है। गैर-हिंदी भाषी राज्य में अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। सेकेंड्री सेक्शन यानी 11वीं और 12वीं में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे। कई नेता NEP 2020 से असहमत थे।
संसद के बजट सत्र के पहले दिन से DMK सांसदों ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया था। प्रदर्शन करते हुए सांसद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के करीब पहुंचे थे और जमकर नारेबाजी की थी।

भाजपा हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध – राजनाथ सिंह
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भाषा के आधार पर देश को बांटने की प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भाजपा हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। “कुछ लोग तमिल और हिंदी भाषाओं को लेकर बेवजह विवाद पैदा कर रहे हैं।
हालांकि, भाजपा हिंदी और अन्य सभी भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि उनके बीच सहयोग की भावना है।
हिंदी सभी भारतीय भाषाओं को मजबूत करती है और सभी भारतीय भाषाएं हिंदी को मजबूत करती हैं।