चेन्नई10 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
स्टालिन ने संस्कृत और हिंदी के प्रचार-प्रसार पर भी सवाल उठाए। केंद् सरकार से मांग की कि थिरुवल्लुवर (Thiruvalluvar) की रचनाओं को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए।
तमिलनाडु CM एमके स्टालिन के नेतृत्व में बुधवार को जनगणना आधारित परिसीमन और ट्राई लैंग्वेज वॉर पर सर्वदलीय बैठक हुई। स्टालिन ने परिसीमन के मुद्दे पर दक्षिण भारतीय राज्यों के राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर एक जॉइंट एक्शन कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा।
स्टालिन ने कहा कि अगर संसद में सीटें बढ़ती है तो 1971 की जनगणना को आधार बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग करते हुए कहा कि 2026 के बाद अगले 30 साल तक लोकसभा सीटों के बाउंड्री करते समय 1971 की जनगणना को ही मानक माना जाए।
ट्राई लैंग्वेज को लेकर केंद्र पर हमला करते हुए स्टालिन ने कहा कि अगर भाजपा का यह दावा सच है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री को तमिल से बहुत प्यार है, तो यह कभी भी काम में क्यों नहीं दिखता?
इस बैठक में AIADMK, कांग्रेस, वाम दल (लेफ्ट पार्टी) और एक्टर विजय की पार्टी TVK समेत कई दलों ने हिस्सा लिया। वहीं, भाजपा, NTK और पूर्व केंद्रीय मंत्री जीके वासन की तमिल माणिला कांग्रेस (मूप्पनार) ने बैठक का बहिष्कार किया।

स्टालिन बोले- केंद्र सरकार के ऑफिस से हिंदी हटए
सोशल मीडिया X पर पोस्ट करते हुए स्टालिन ने लिखा- सिर्फ संसद में सेन्गोल लगाने से तमिल का सम्मान नहीं बढ़ेगा। तमिलनाडु में केंद्र सरकार के ऑफिस से हिंदी हटाओ, तमिल को हिंदी के बराबर ऑफिसीयल भाषा बनाओ और संस्कृत से ज्यादा फंड तमिल को दो।
स्टालिन ने संस्कृत और हिंदी के प्रचार-प्रसार पर भी सवाल उठाए। केंद्र सरकार से मांग की कि थिरुवल्लुवर (Thiruvalluvar) की रचनाओं को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए। उन्होंने कहा कि अगर पीएम मोदी सच में तमिल से प्रेम है, तो तमिलनाडु के लिए विशेष योजनाएं बनाए, आपदा राहत कोष दें और नए रेलवे प्रोजेक्ट शुरू करें।
हिंदी-संस्कृत थोपने का आरोप स्टालिन ने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी पखवाड़ा मनाने और योजनाओं में संस्कृत नाम देने पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। तमिलनाडु की ट्रेनों के नाम हिंदी में रखने की बजाय तमिल नाम दिए जाएं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि तेजस और वंदे भारत जैसी ट्रेनों के बजाय ‘सेम्मोझि’, ‘मुथुनगर’, ‘वैगई’, ‘मलैकोट्टई’ और ‘थिरुक्कुरल एक्सप्रेस’ जैसे नाम दिए जाएं।
परिसीमन क्या है?
परिसीमन यानी लोकसभा और विधानसभा सीट की सीमा तय करने की प्रक्रिया। परिसीमन के लिए आयोग बनता है। पहले भी 1952, 1963, 1973 और 2002 में आयोग गठित हो चुके हैं।
लोकसभा सीटों को लेकर परिसीमन प्रक्रिया की शुरुआत 2026 से होगी। ऐसे में 2029 के लोकसभा चुनाव में लगभग 78 सीटों के इजाफे की संभावना है। दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध किया है। इसलिए सरकार समानुपातिक परिसीमन की तरफ बढ़ेगी, जिसमें जनसंख्या संतुलन बनाए रखने का फ्रेमवर्क तैयार हो रहा है।
परिसीमन का फ्रेमवर्क क्या होगा?
परिसीमन आयोग से पहले सरकार ने फ्रेमवर्क पर काम शुरू कर दिया है। प्रतिनिधित्व को लेकर मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं होगी, बल्कि जनसांख्यिकी संतुलन को ध्यान में रखकर एक ब्रॉडर फ्रेमवर्क पर विचार जा रहा है।

सीटों में क्या बदलाव होगा
तमिलनाडु-पुडुचेरी में लोकसभा की 40 सीट है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान की 80 सीटों से 14 सीट बढ़ती हैं तो इसकी आधी यानी 7 सीट तमिलनाडु-पुडुचेरी में बढ़ाना समानुपातिक प्रतिनिधित्व है। अर्थात सीट बढ़ाने के लिए जनसंख्या ही एक मात्र विकल्प नहीं है।
आबादी के आधार पर जितनी सीटें हिंदी पट्टी में बढ़ेंगी उसी अनुपात में जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों में भी सीटें बढ़ेगी। किसी लोकसभा में 20 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा तो दूसरी जगह 10-12 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा।
अल्पसंख्यक बहुल सीटों का क्या होगा?
देश के 85 लोकसभा सीटों में अल्पसंख्यकों की आबादी 20%से 97%तक है। सूत्रों के अनुसार इन सीटों पर जनसांख्यिकी संतुलन कायम रखने के लिए परिसीमन के तहत लोकसभा क्षेत्रों को नए सिरे से ड्रा किया जा सकता है।
महिला आरक्षण के बाद क्या होगा?
1977 से लोकसभा सीटों की संख्या को फ्रीज रखा गया है, लेकिन अब महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के बाद इसे डिफ्रीज करना लाजमी है। जनसंख्या वृद्धि दर में प्रभावी नियंत्रण करने वाले राज्यों ने चेतावनी दी है कि इस आधार पर उनकी सीटों में कमी का विरोध होगा।
कैसे शुरू हुआ ट्राई लैंग्वेज वॉर
धर्मेंद्र प्रधान ने 15 फरवरी को वाराणसी के एक कार्यक्रम में तमिलनाडु की राज्य सरकार पर राजनीतिक हितों को साधने का आरोप लगाया था।

18 फरवरी को उदयनिधि स्टालिन बोले- केंद्र लैंग्वेज वॉर शुरू न करें
चेन्नई में डीएमके की रैली में उदयनिधि स्टालिन ने कहा- ” धर्मेंद्र प्रधान ने हमें खुलेआम धमकी दी है कि फंड तभी जारी किया जाएगा जब हम तीन-भाषा फॉर्मूला स्वीकार करेंगे। लेकिन हम आपसे भीख नहीं मांग रहे हैं। जो राज्य हिंदी को स्वीकार करते हैं, वे अपनी मातृभाषा खो देते हैं। केंद्र लैंग्वेज वॉर शुरू न करें।
23 फरवरी को शिक्षा मंत्री ने स्टालिन को लेटर लिखा
ट्राई लैंग्वेज विवाद पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन को लेटर लिखा था। उन्होंने राज्य में हो रहे नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) के विरोध की आलोचना की।
उन्होंने लिखा, ‘किसी भी भाषा को थोपने का सवाल नहीं है। लेकिन विदेशी भाषाओं पर अत्यधिक निर्भरता खुद की भाषा को सीमित करती है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) इसे ही ठीक करने का प्रयास कर रही है। NEP भाषाई स्वतंत्रता को कायम रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि स्टूडेंट अपनी पसंद की भाषा सीखना जारी रखें।’
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने लेटर में मई 2022 में चेन्नई में पीएम मोदी के ‘तमिल भाषा शाश्वत है’ के बायन का जिक्र करते हुए लिखा- मोदी सरकार तमिल संस्कृति और भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। मैं अपील करता हूं कि शिक्षा का राजनीतिकरण न करें।
25 फरवरी को एमके स्टालिन बोले- हम लैंग्वेज वॉर के लिए तैयार हैं
तमिलनाडु CM एमके स्टालिन ने कहा- केंद्र हमारे ऊपर हिंदी न थोपे। अगर जरूरत पड़ी तो उनका राज्य एक और लैंग्वेज वॉर के लिए तैयार है।

NEP 2020 के तहत, स्टूडेंट्स को 3 भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की आजादी है कि वे कौन-सी 3 भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं।
प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है। वहीं, मिडिल क्लासेस (क्लास 6 से 10 तक) में 3 भाषाओं की पढ़ाई करना अनिवार्य है। गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। सेकेंड्री सेक्शन यानी 11वीं और 12वीं में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे।
गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी दूसरी भाषा
5वीं और जहां संभव हो 8वीं तक की क्लासेस की पढ़ाई मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में करने पर जोर है। वहीं, गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जा सकती है। साथ ही, हिंदी भाषी राज्यों में दूसरी भाषा के रूप में कोई अन्य भारतीय भाषा (जैसे- तमिल, बंगाली, तेलुगु आदि) हो सकती है।
किसी भाषा को अपनाना अनिवार्य नहीं
राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की स्वतंत्रता है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाएंगे। किसी भी भाषा को अनिवार्य रूप से थोपने का प्रावधान नहीं है।
ये खबर भी पढ़ें…
तमिलनाडु CM बोले- हिंदी ने 25 भाषाओं को खत्म किया: यूपी-बिहार कभी हिंदी क्षेत्र नहीं थे; हिंदी मुखौटा और संस्कृत छुपा हुआ चेहरा

तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन ने 27 फरवरी को कहा था कि जबरन हिंदी थोपने से 100 सालों में 25 नॉर्थ इंडियन भाषाएं खत्म हो गई। स्टालिन ने गुरुवार को X पर पोस्ट करते हुए कहा- एक अखंड हिंदी पहचान की कोशिश प्राचीन भाषाओं को खत्म कर रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार कभी भी हिंदी क्षेत्र नहीं थे। अब उनकी असली भाषाएं अतीत की निशानी बन गई है। पूरी खबर पढ़ें…