शहर की सड़कों पर पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोगों ने नृत्य किया।
हजारीबाग में सरहुल पर्व धूमधाम से मनाया गया। शहर की सड़कों पर पारंपरिक वेशभूषा में सजे लोगों ने नृत्य किया। ढोल-नगाड़ों की थाप और पारंपरिक गीतों से माहौल संगीतमय हो गया।
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पर्यावरण और संस्कृति के संरक्षण का संदेश
आदिवासी समुदाय का यह प्रमुख त्योहार प्रकृति की पूजा का प्रतीक है। शोभायात्रा में बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं और बच्चे पारंपरिक पोशाक में शामिल हुए। सरना धर्मगुरुओं ने पर्यावरण और संस्कृति के संरक्षण का संदेश दिया।
शोभा यात्रा में शामिल बच्चे।
बैनर और पोस्टर के माध्यम से अपनी मांगें प्रस्तुत कीं
इस वर्ष की शोभायात्रा में 1932 खतियान नीति लागू करने की मांग प्रमुख रही। कई समूहों ने बैनर और पोस्टर के माध्यम से अपनी मांगें प्रस्तुत कीं। आदिवासी संगठनों ने खतियान आधारित स्थानीय नीति को शीघ्र लागू करने की मांग की।
प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए। पुलिस बल की तैनाती के साथ भीड़ नियंत्रण के विशेष प्रबंध किए गए। श्रद्धालुओं ने शांतिपूर्ण ढंग से पर्व मनाया।
कार्यक्रम के समापन पर आदिवासी समाज के वरिष्ठजनों ने जल, जंगल और जमीन के संरक्षण का संकल्प लिया। उन्होंने सभी को अपनी संस्कृति को जीवंत रखने का आह्वान किया।