हरियाणा विधानसभा चुनाव में इस बार 2019 के मुकाबले कम वोटिंग दर्ज की गई। इलेक्शन कमीशन के वोटर टर्नआउट एप पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस बार शाम 5 बजे तक प्रदेश में कुल 61.50% वोटिंग दर्ज की गई। हालांकि पोलिंग के फाइनल आंकड़े आने बाकी हैं लेकिन यह 2019
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10 साल से सरकार चला रही भाजपा के प्रति लोगों- खासकर जाटों की नाराजगी के बावजूद वोटिंग % में आई गिरावट के कई मायने हैं। वर्ष 2000 से 2024 तक, हरियाणा में हुए 5 विधानसभा चुनाव के पोलिंग % से जुड़े आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो एक और ट्रेंड निकलकर आता है। इन 24 बरसों में जब-जब वोटिंग % गिरा है, तब राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी है और उसका फायदा यहां सत्तारूढ़ रहे दल को मिला है।
इस बार प्रदेश का ग्रामीण वोटर काफी वोकल नजर आया। उसमें भाजपा के प्रति गुस्सा साफ नजर आ रहा था लेकिन लग रहा है कि कांग्रेस के रणनीतिकार कहीं न कहीं इस गुस्से को वोटों के अंदर बदलने में चूक गए। लगातार 10 साल से सत्ता में बैठी भाजपा के प्रति एंटी इनकम्बेंसी साफ दिखाई दे रही थी लेकिन कम वोटिंग % से लग रहा है कि भाजपा के रणनीतिकार वोटिंग का दिन आने तक कहीं न कहीं चीजों को मैनेज करने में काफी हद तक कामयाब रहे।
हरियाणा का ट्रेंड: वोटिंग बढ़ने पर ही बहुमत
साल 2000 में वोटिंग % बढ़ा तो विपक्षी दल सत्ता में आया हरियाणा में 2005 में हुए विधानसभा चुनाव के समय इनेलो की सरकार थी। साल 2000 में 69% वोटिंग हुई थी और इनेलो को 47 सीटें यानी पूर्ण बहुमत मिला था। 2005 के चुनाव में 71.5% वोटिंग हुई। चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। 90 सीटों वाली विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 67 सीटें यानी 46 के बहुमत के मुकाबले 21 सीटें ज्यादा जीती।
साल 2009 में वोटिंग % थोड़ा बढ़ा तो कांग्रेस बहुमत से चूकी साल 2009 के विधानसभा चुनाव में 72.3% वोटिंग हुई। जो 2004 के 71.5% से 0.8% की बढ़ोत्तरी हुई। मगर, किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस 46 के बहुमत से 6 कम यानी 40 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी जरूरी बनी। मगर, सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को 7 निर्दलीय विधायकों का सहारा लेना पड़ा।
साल 2014 में वोटिंग बढ़ी तो विपक्षी दल सत्ता में आया इसके 5 साल बाद यानी 2014 के चुनाव में 76.6% वोटिंग हुई। जो पिछले चुनाव यानी 2009 के मुकाबले 4.3% ज्यादा था। नतीजे आए तो BJP को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला। इस चुनाव में BJP ने 47 सीटें जीतीं। तब BJP ने मनोहर लाल खट्टर की अगुआई में सरकार बनाई।
साल 2019 में वोटिंग % गिरा तो BJP बहुमत से चूकी साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में 68.20 % वोटिंग हुई। जो 2014 के मुकाबले 11.03% कम था। जब नतीजे आए तो BJP बहुमत से चूक गई। भाजपा को बहुमत के 46 के आंकड़े से 6 कम यानी 40 सीटें मिली। फिर BJP ने दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) से मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई।

यहां समझिए बेल्ट वाइज क्या रही
जीटी रोड: BJP का दबदबा रहा, इस बार वोटिंग बढ़ी हरियाणा में जीटी रोड बेल्ट में 6 जिले आते हैं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में बीजेपी का ही दबदबा रहा है। 2014 और 2019 दोनों विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने यहां सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं। 2014 में बीजेपी ने यहां 23 में से 14 सीटें जीती थीं।
2019 में 23 में से 12 सीटों पर जीत मिली थी। इस चुनाव में बीजेपी को दो सीटों का नुकसान हुआ था। चूंकि हरियाणा में बीजेपी ने अभी तक जो भी चुनाव लड़े हैं, वह गैर जाट वोटरों पर ही लड़े हैं। इस रीजन में सबसे ज्यादा गैर जाट वोटर ही हैं।
चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव बीजेपी का यही कोर वोट बैंक रहता है। 2019 में यहां औसतन 62.71% वोटिंग हुई थी। हालांकि इस बार यह वोटिंग बढ़कर 69.38% हो गई है।

अहीरवाल बेल्ट : BJP का गढ़, इस बार वोटिंग बढ़ी अहीरवाल बेल्ट भाजपा का गढ़ माना जाता है। ये ही एक ऐसा रीजन है, जहां किसानों-पहलवानों के मुद्दों का ज्यादा असर नहीं होता। 2014 के विधानसभा चुनाव में BJP ने यहां सभी 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी, 2019 में 11 सीटों में से 8 सीटों पर विजय मिली थी। यहां का ओबीसी वोटर भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। इस बार भी अहीरवाल बेल्ट के वोटिंग प्रतिशत को देखते हुए बीजेपी कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है।
वहीं साउथ हरियाणा में बीजेपी-कांग्रेस की हमेशा से टक्कर रही है। ये गुर्जरों के प्रभाव बाला इलाका है। 2014 में बीजेपी की लहर होने के बाद भी यहां पार्टी का काफी खराब प्रदर्शन रहा था। 2019 में अपना प्रदर्शन सुधारते हुए बीजेपी ने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में यहां 58.94% वोटिंग हुई थी लेकिन इस बार यह बढ़कर 66.38% हो गई।

बांगर बेल्ट ने भी हमेशा चौकाया, इस बार वोटिंग घटी हरियाणा बांगर बेल्ट में दो जिलों की 9 विधानसभा सीटें आती हैं। ये रीजन हरियाणा की सियासत में समय-समय पर नई दिशा देता रहा है। यहां कांग्रेस के दो बड़े चेहरे चौधरी बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला सक्रिय रहते हैं। 2014 और 2019 में यहां से कांग्रेस ने 1-1 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बेल्ट में कैथल, जींद जिले की विधानसभाएं आती हैं। 2019 में यहां 74.55% वोटिंग हुई थी। जो इस घटकर 64.55% हो गई है।

देशवाल में हुड्डा का गढ़, यहां वोटिंग घटी हरियाणा की देशवाल बेल्ट में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का दबदबा रहा है। अभी तक के चुनावों में यह ट्रेंड रहा है कि यहां पर इस चुनाव में बीजेपी को सिर्फ गैर जाट वोटरों का ही सहारा रहा है। 2014 में जब मोदी वेव थी तो भी यहां बीजेपी कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी। यहीं हाल 2019 के विधानसभा चुनाव में भी रहा था। 2019 में यहां की सीटों पर औसतन 67.60% वोटिंग हुई थी। जो इस बार घटकर 59.08% रह गई है।

बागड़ बेल्ट में जाटों का दबदबा, यहां वोटिंग घटी हरियाणा की दूसरी सबसे बड़ी बागड़ बेल्ट में 5 जिलों की 21 विधानसभा सीटें आती हैं। इस रीजन में जाटों का दबदबा रहता है। इस रीजन से हरियाणा के तीन पूर्व सीएम के परिवारों का दबदबा रहता है। हालांकि 2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस, बीजेपी, INLD और अन्य क्षेत्रीय दलों की लहर थी। इस बेल्ट में 2019 में 74.06% वोटिंग हुई थी, जो इस बार घटकर 64.16% रह गई है।

मुस्लिम बाहुल्य मेवात बेल्ट, यहां वोटिंग घटी प्रदेश की मेवात बेल्ट में हमेशा से ही मुस्लिमों का ही दबदबा रहा है। 2014 तक के विधानसभा चुनावों में यहां पर इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) का ही वर्चस्व रहा, लेकिन 2019 आते-आते यहां पर कांग्रेस ने जिले की तीनों सीटों पर कब्जा कर लिया। 2019 में यहां 72.16% वोटिंग हुई थी जो इस बार घटकर 68.33% रह गई है।
