Wednesday, June 18, 2025
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हरियाणा चुनाव,वोटिंग से 2 हफ्ते पहले कांग्रेस बहुमत के करीब: जाट-दलित बंटे तो BJP 25 पार; इनेलो को 2-4 सीटें, JJP-AAP मुकाबले से बाहर – Haryana News


‘हरियाणा में प्रॉपर्टी ID और पोर्टल-राज के कारण हुई परेशानी बड़ा इश्यू है। जिन लोगों के मकान 50-60 साल पहले बने थे, उन पर लाखों की रिकवरी निकाल दी गई। जमकर लूट-खसोट मचाई। 70 से 80% प्रॉपर्टी ID गलत थीं। घर-दुकान-शोरूम-प्लाट खरीदने वाले भी परेशान हैं

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ये पीड़ा सिर्फ हरियाणा के यमुनानगर में रहने वाले प्रॉपर्टी डीलर अशोक गुप्ता की नहीं है। प्रदेश में जिसके नाम पर भी घर, मकान, दुकान या प्लाट है, वह इसी मुश्किल का सामना कर रहा है। अशोक गुप्ता तो तंग आकर प्रॉपर्टी डीलिंग का काम ही छोड़ गए। जिन लोगों ने 50-60 साल पुराने नक्शे वगैरह संभाल कर नहीं रखे, वह दफ्तरों के धक्के खा रहे हैं।

कैथल में दुकान चला रहे विश्व कहते हैं कि 5 साल में काम नहीं हुए। नायब सैनी ने CM बनने के बाद कुछ अच्छे फैसले लिए लेकिन उससे पहले खट्टर साहब से लोग खुश नहीं रहे। किसान और जाट BJP से खुश नहीं हैं।

हरियाणा में BJP अपनी सरकार के पोर्टल सिस्टम को करप्शन खत्म करने का सबसे बड़ा हथियार बताती रही है। दूसरी ओर कांग्रेस सत्ता में आते ही इसे खत्म करने का वादा कर रही है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि मनोहर लाल खट्‌टर ने बतौर सीएम पहले टर्म (2014-19) में अच्छी सरकार दी लेकिन दूसरे कार्यकाल में गाड़ी बेपटरी हो गई।

हरियाणा की 90 सीटों पर 5 अक्टूबर को एक साथ वोट डाले जाएंगे और नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। प्रदेश में हवा का रुख समझने के लिए दैनिक भास्कर ने लोकल लोगों, पॉलिटिकल पार्टियों और एक्सपर्ट्स से बात की।

सबसे पहले 6 प्वाइंट्स में समझिए रुझान और सियासी समीकरण…

  1. प्रदेश में मुख्य मुकाबला BJP बनाम कांग्रेस है। लगभग 20 साल बाद कांग्रेस अपने बूते बहुमत का आंकड़ा हासिल कर सकती है। पोलिंग से 2 हफ्ते पहले पार्टी 90 में से 40 से 42 सीटों पर अच्छी पोजिशन में दिख रही है। मतदान की तारीख आने तक ये नंबर घट-बढ़ सकता है। 10 साल से सरकार चला रही BJP दूसरे नंबर पर रहते हुए 18 से 25 सीटें जीत सकती है। जीटी रोड और अहीरवाल बेल्ट में उसके प्रदर्शन पर काफी कुछ निर्भर करेगा। पार्टी के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि कांग्रेस की तरफ जा रहे वोट बैंक में इनेलो, जेजेपी, AAP और बागी-निर्दलीय सेंध लगाकर उसकी राह आसान कर सकते हैं।
  2. निर्दलीय हमेशा से हरियाणा में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। इस बार भी 5 से 8 सीटों पर निर्दलीय कैंडिडेट जीत सकते हैं।
  3. रीजनल पार्टियों में ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) से गठबंधन किया है। इन्हें 2 से 4 सीटें मिल सकती है। दूसरा क्षेत्रीय दल दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) है। दुष्यंत ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) से गठजोड़ किया है लेकिन इनका खाता खुलना मुश्किल है। आम आदमी पार्टी (AAP) पहली बार अपने बूते लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उसका वोट शेयर बढ़ सकता है।
  4. हरियाणा की कुल आबादी में 20% से ज्यादा अनुसूचित जातियां (SC) है। राज्य की 17 सीटें इनके लिए रिजर्व हैं। 2019 में BJP ने इनमें से 5 और कांग्रेस 7 सीटें जीती। बाकी JJP-निर्दलीय को गईं। भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों रिजर्व सीटें अंबाला-सिरसा हार गई। कांग्रेस 17 रिजर्व सीटों में से 11 पर आगे रही। अगर इनेलो-BSP और JJP-ASP गठबंधन के चलते दलित वोट बंटे तो फायदा भाजपा को मिलेगा। कांग्रेस के लिए सांसद कुमारी सैलजा की नाराजगी कोढ़ में खाज साबित हो सकती है।
  5. भाजपा-कांग्रेस, दोनों बागियों से जूझ रही हैं। कांग्रेस अपने 36 और BJP 33 बागियों को मना चुकी है लेकिन आज भी 15 सीटों पर भाजपा के 19 और 20 सीटों पर कांग्रेस के 29 बागी मैदान में हैं। बागी जिस पार्टी के वोटबैंक में जितनी ज्यादा सेंध लगाएंगे, उसे उतना ही नुकसान होगा।
  6. लोग BJP से कम और उसके नेताओं से ज्यादा नाराज हैं। हाईकमान भी इसे भांप चुका था इसलिए उसने अपने 41 विधायकों में से 15 के टिकट काट दिए। इनमें 4 मंत्री थे। लोगों को सबसे ज्यादा नाराजगी पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्‌टर से रही। इसी वजह से भाजपा को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी जगह नायब सैनी को CM कुर्सी पर बैठाना पड़ा। हालांकि ग्राउंड पर इसका खास असर नजर नहीं आता क्योंकि सैनी को परफॉर्मेंस दिखाने के लिए महज 51 दिन मिल पाए। इसके उलट कांग्रेस ने इस मुद्दे को भुनाने के लिए अपने सभी 31 विधायकों को रिपीट किया है।

अब पढ़िए राज्य की 7 बेल्ट में कौन सी पार्टी की सीटवाइज क्या स्थिति…

1. जीटी रोड बेल्ट : BJP के लिए गढ़ बचाना मुश्किल

भाजपा को सत्ता दिलाने में सबसे बड़ा योगदान इसी बेल्ट का रहा। 2014 में पार्टी की 47 में से 21 सीटें और 2019 में 40 में से 12 सीटें इसी इलाके से आईं। मनोहर लाल खट्टर, नायब सैनी के साथ-साथ सरकार में रहे अनिल विज, कंवरपाल गुर्जर, सुभाष सुधा, महिपाल ढांडा इसी एरिया से आते हैं। स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता भी यहीं से हैं।

इस रीजन में ज्यादातर वोटर गैर जाट हैं और BJP की सियासत इन्हीं के इर्दगिर्द घूमती है। इस बार खट्‌टर मैदान से बाहर हैं और सैनी को सीट बदलते हुए करनाल की जगह लाडवा से उतारा गया है। जगाधरी में AAP के टिकट पर उतरे कांग्रेस के बागी आदर्श पाल गुर्जर बिरादरी से आते हैं और वह शिक्षा मंत्री रहे कंवरपाल गुर्जर को सीधे नुकसान पहुंचा रहे हैं।

अंबाला कैंट में अनिल विज को पिछले 3-4 चुनाव के मुकाबले इस बार कई गुना ज्यादा पसीना बहाना पड़ रहा है। एंटी इनकम्बेंसी के कारण स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता और सुभाष सुधा की राह भी कठिन दिखती है। कांग्रेस 2019 के मुकाबले इस इलाके में बेहतर प्रदर्शन करेगी और BJP की सीटें सिंगल डिजिट तक समेट सकती है।

2. अहीरवाल बेल्ट: राव का विरोध बदल सकता है समीकरण

हरियाणा का ये दूसरा ऐसा इलाका है जहां BJP स्ट्रॉन्ग रही है। उसने 2014 में यहां की सभी 11 और 2019 में 11 में से 8 सीटें जीती। अहीर बाहुल्य इस इलाके में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा या प्लस पाॅइंट कहें तो वह राव इंद्रजीत सिंह हैं। कांग्रेस के बड़े लीडरों में कैप्टन अजय सिंह यादव और राव दान सिंह इसी बेल्ट से आते हैं।

भाजपा में अभय सिंह यादव और राव नरबीर जैसे इक्का-दुक्का चेहरों को छोड़ दें तो पूरी अहीर बेल्ट को राव इंद्रजीत अपने हिसाब से हांकते रहे हैं। उनका यही स्टाइल इस बार उनकी मुसीबतें बढ़ाता दिख रहा है। अटेली से अपना पॉलिटिकल डेब्यू करने जा रही उनकी बेटी आरती पहले ही चुनाव में फंसी हुई नजर आती हैं। यहां राव विरोधी उनकी मुश्किलें बढ़ाने में जुटे हैं। नारनौल में ओमप्रकाश यादव और नांगल चौधरी में अभय सिंह यादव की स्थिति कुछ ठीक है।

कांग्रेस की बात करें तो महेंद्रगढ़ सीट पर राव दान सिंह और रेवाड़ी में कैप्टन अजय यादव के बेटे और लालू प्रसाद यादव के दामाद चिरंजीव राव कंफर्टेबल पोजिशन में हैं। राव इंद्रजीत के भाई राव यदुवेंद्र ने ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया तो कोसली में कांग्रेस के जगदीश यादव जीत सकते हैं।

गुरुग्राम, बादशाहपुर, सोहना, पटौदी और बावल में अगले 10-12 दिन में ऊंट किसी भी तरफ बैठ सकता है।

3. साउथ हरियाणा: BJP पर 2019 का प्रदर्शन दोहराने का दबाव

यूपी और दिल्ली से लगते फरीदाबाद-पलवल की 9 सीटें दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण हैं। मोदी लहर के बावजूद 2014 में BJP यहां ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन 2019 में उसने यहां की 9 में से 7 सीटें जीत ली।

ब्रजभूमि से लगते इस इलाके में गुर्जरों का प्रभाव है। फरीदाबाद से लगातार तीसरी बार लोकसभा सांसद बने BJP के कृष्णपाल गुर्जर इस बिरादरी का प्रमुख चेहरा हैं। इस बार वह फरीदाबाद NIT सीट से अपने बेटे देवेंद्र चौधरी के लिए टिकट चाहते थे। इसके चलते यहां कैंडिडेट का ऐलान नॉमिनेशन के आखिरी दिन तक रुका रहा। उसके बाद पार्टी ने गुर्जर के बेटे की जगह विपुल गोयल को टिकट थमा दिया। कांग्रेस में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष चौधरी उदयभान के अलावा नीरज शर्मा और करण दलाल इसी इलाके से हैं।

दिल्ली से सटे होने के कारण यहां आम आदमी पार्टी का असर है। शहरी वोटरों ने साथ दिया तो फरीदाबाद सीट BJP के खाते में जा सकती है। फरीदाबाद NIT, बड़खल, पलवल और होडल में कांग्रेस की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर दिखती है। हथीन, तिगांव और पृथला में मुकाबला 50-50 है।

4. बांगर बेल्ट: दिग्गज नेताओं की भावी पीढ़ी का टेस्ट, दुष्यंत मुश्किल में

हरियाणा का हार्ट कही जाने वाली इस बेल्ट पर बड़े चेहरों के आमने-सामने होने के कारण सबकी नजर रहती है। सर छोटूराम के नाती बीरेंद्र सिंह के साथ-साथ कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला और जयप्रकाश जेपी इसी इलाके से आते हैं। 2019 में इन तीनों परिवारों को हार झेलनी पड़ी थी।

इस बार इन तीनों नेताओं के बेटे कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। कैथल में रणदीप के बेटे आदित्य सुरजेवाला को शुरुआती एज है लेकिन कलायत में जयप्रकाश जेपी ने विवादित बयानबाजी से अपने बेटे विकास सहारण की राह मुश्किल बना दी है।

जींद की हाईप्रोफाइल सीट उचाना में बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह कड़े मुकाबले में फंसे हैं। जाट वोट बंटे तो 2019 में अपनी मां प्रेमलता को JJP नेता दुष्यंत चौटाला के हाथों मिली हार का बदला लेने की बृजेंद्र सिंह की राह मुश्किल हो जाएगी।

चौटाला परिवार भी उचाना से ताल ठोकता रहा है। ओमप्रकाश चौटाला को सजा होने के बाद, उनके पोते दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बनाते हुए ये सीट खुद के लिए चुनी लेकिन इस बार के नतीजे उनके लिए शायद ही सुखद रहें।

जींद की जुलाना सीट रेसलर विनेश फोगाट की वजह से चर्चा में है। विनेश का यह पहला चुनाव है और उन्हें जिताना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।

सफीदों और जींद शहर में कांग्रेस-भाजपा की सीधी टक्कर है। नरवाना में इनेलो कैंडिडेट विद्यारानी चौंका सकती हैं।

कैथल की पूंडरी सीट पर 6 बार से निर्दलीय उम्मीदवार जीतता रहा है और इस बार भी कांग्रेस के बागी सतबीर भाणा यह रिकॉर्ड बरकरार रख सकते हैं। गौसेवा करते रहे भाणा 2 चुनाव हार चुके हैं इसलिए वोटरों में उनके प्रति कुछ सहानुभूति है।

ओबीसी वर्ग से आने वाले सतबीर भाणा को रोड बिरादरी के वोट कांग्रेस-BJP में बंटने का फायदा मिल सकता है। भाणा कांग्रेस में रणदीप सुरजेवाला ग्रुप से जुड़े थे और पार्टी टिकट सुल्तान जडौला के हिस्से में जाने पर वह निर्दलीय उतर गए।

5. देशवाल बेल्ट: हुड्‌डा की अपने गढ़ में बादशाहत कायम रहेगी

पुराना रोहतक और जाटलैंड कहलाने वाले इस इलाके में कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का दबदबा है। रोहतक-झज्जर और सोनीपत के इस एरिया में मोदी वेव के बावजूद BJP न तो 2014 में बढ़त बना पाई और न 2019 में।

इस बार हुड्‌डा अपने किले में ज्यादा मजबूत दिख रहे हैं। रोहतक-झज्जर की 8 में से 7 सीटें कांग्रेस को जाती दिख रही हैं। अगर कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई ने नुकसान नहीं किया तो महम सीट भी दांगी परिवार जीत सकता है। कांग्रेस के पुराने दिग्गज आनंद सिंह दांगी 2019 का चुनाव महम में निर्दलीय बलराज कुंडू से हार गए थे। इस बार आनंद सिंह दांगी ने अपने बेटे बलराम दांगी को टिकट दिलाया है।

सोनीपत की 6 में से 4 सीटों- बरौदा, गोहाना, राई व खरखौदा में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। गन्नौर में कांग्रेस कैंडिडेट कुलदीप शर्मा और सोनीपत में सुरेंद्र पंवार को सबसे बड़ा सहारा हुड्‌डा का है। गन्नौर में जाट वोटरों का झुकाव BJP के बागी देवेंद्र कादियान की तरफ है। गन्नौर सीट पर अब तक 13 चुनाव हुए हैं और इनमें से 6 बार विनिंग मार्जिन 2 हजार से कम रहा है। सिर्फ 3 चुनाव ऐसे रहे जब जीत का अंतर 10 हजार से अधिक पहुंचा। इस बार भी यहां करीबी मुकाबला है।

सोनीपत सीट से 2019 में विधानसभा चुनाव जीते सुरेंद्र पंवार पर पिछले दिनों ED की रेड पड़ी थी। वह 24 जुलाई से जेल में हैं। पंवार का प्रचार उनकी पुत्रवधु समीक्षा पंवार और दोस्तों ने संभाल रखा है। सोनीपत में कांग्रेस को भाजपा की गुटबाजी का फायदा मिल सकता है। यहां पूर्व कैबिनेट मंत्री कविता जैन और उनका परिवार कांग्रेस से आकर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ रहे निखिल मदान की मदद से इनकार कर चुका है।

6. बागड़ बेल्ट: पिछले दो चुनाव की तरह मिक्स रिजल्ट के आसार

यह इलाका हरियाणा के तीनों लाल परिवारों- देवीलाल, बंसीलाल और भजनलाल की कर्मभूमि रहा है। विधानसभा सीटों के लिहाज से यह जीटी रोड बेल्ट के बाद राज्य का दूसरा सबसे बड़ा एरिया है। यहां के पांचों जिलों में जाट वोटरों का डॉमिनेंस है। 2014 हो या फिर 2019, कोई पार्टी इस इलाके में एकतरफा जीत दर्ज नहीं कर पाई। इस बार भी रिजल्ट मिक्स रहने के चांस हैं।

सिरसा की पांच सीटों पर देवीलाल कुनबे का दबदबा रहा है लेकिन परिवार में हुई फूट के बाद 2019 के नतीजे चौटाला फैमिली के लिए सुखद नहीं रहे। ओपी चौटाला की राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे अभय चौटाला सिर्फ ऐलनाबाद सीट जीत पाए।

यहां की 3 सीटों पर इस बार भी चौटाला परिवार आमने-सामने है। रानियां से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रणजीत चौटाला के सामने अभय चौटाला के बेटे अर्जुन चौटाला हैं। अभय के बड़े भाई अजय चौटाला की JJP यहां रणजीत का समर्थन कर रही है। डबवाली में इनेलो ने BJP छोड़कर आए आदित्य देवीलाल चौटाला को टिकट दिया है जिनके सामने उन्हीं के भतीजे और JJP महासचिव दिग्विजय चौटाला है। इस बार इनेलो सिरसा की दो से तीन सीटों पर मुख्य मुकाबले में है।

हिसार की 7 सीटों में से 3 पर भाजपा, 3 पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय भारी दिख रही हैं। आदमपुर में लोकल बनाम बाहरी का जो नारा चल रहा है, वह कुलदीप बिश्नाई के बेटे भव्य के पक्ष में काम कर सकता है। हिसार शहर सीट पर निर्दलीय सावित्री जिंदल ने BJP के कमल गुप्ता की राह में कांटे बो दिए हैं।

भिवानी की चारों और फतेहाबाद की तीनों सीटों पर मुकाबला किसी भी तरफ जा सकता है। तोशाम सीट जीतना किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति के लिए नाक का सवाल बन गया है। चरखी-दादरी की दोनों सीटों पर कांग्रेस को अपर हैंड कह सकते हैं।

7. मेवात: मुस्लिम कांग्रेस के साथ, नूंह में BJP को ध्रुवीकरण की आस

मुस्लिम बाहुल्य इस जिले की तीनों सीटें 2019 में कांग्रेस ने जीती थी। 2014 में यहां 2 सीटों पर इनेलो के विधायक बने जबकि तीसरी सीट निर्दलीय के पक्ष में गई।

पिछले साल हिंदू संगठनों की ब्रजमंडल यात्रा के दौरान हुए दंगों के कारण नूंह देश-दुनिया में सुर्खियां बना। उसके बाद हुई गिरफ्तारियों और बुलडोजर एक्शन से मुस्लिमों के मन में यह भावना और गहरे तक घर कर गई कि BJP उनके खिलाफ है। इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा।

हिंसा का सबसे ज्यादा असर नूंह शहर और इससे लगते इलाकों में पड़ा था। भाजपा ने इस सीट से हिंदू कार्ड खेलते हुए अपने मुस्लिम नेता जाकिर हुसैन की जगह संजय सिंह को उतारा है। राजपूत बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह 2019 में सोहना से विधायक बने थे। इस बार उन्हें नूंह शिफ्ट किया गया।

31 जुलाई 2023 को हिंसा के कारण अधूरी रह गई ब्रजमंडल यात्रा को दोबारा निकालने की आवाज बुलंद करने वालों में संजय सिंह सबसे आगे थे। BJP के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि नूंह विधानसभा हलके में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा उसे मिल सकता है। यहां संजय सिंह का मुकाबला कांग्रेस के आफताब अहमद से है।

भाजपा ने इस जिले की फिरोजपुर झिरका सीट से नसीम अहमद और पुन्हाना से एजाज खान को टिकट दिया है। इनका मुकाबला कांग्रेस के मामन खान और मोहम्मद इलियास से है।

एक्सपर्ट्स बोले- भाजपा के प्रति एंटी इनकम्बेंसी, कांग्रेस को गुटबाजी से नुकसान वेटरन जर्नलिस्ट विजय सभरवाल के मुताबिक 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम चला। इस बार मोदी का असर कम है। किसानों के आंदोलन की वजह से ग्रामीण एरिया भाजपा के खिलाफ है। दूसरा कारण, मनोहर लाल ने जाटों के नेता निपटा दिए, अनिल विज को खुड्‌डेलाइन लगा दिया। ये चीजें मैटर करती हैं। पुराने नेताओं को खत्म करने का नुकसान भाजपा को होगा।

चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. भारत की राय कुछ अलग है। भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बात वह भी मानते हैं लेकिन उन्हें लगता है कि सब कुछ BJP के विरोध में आंकना ठीक नहीं होगा।

डॉ. भारत के अनुसार, कांग्रेस 10 साल से सत्ता से बाहर है। पार्टी में नेताओं की अंतर्कलह साफ दिख रही है। सैलजा की नाराजगी और सीएम चेहरे को लेकर जो संशय है, वह पार्टी के खिलाफ जा सकता है।

अब पढ़िए कांग्रेस-भाजपा के 7-7 बड़े चुनावी वादे…

भाजपा-कांग्रेस के दावे…

क्या कहते हैं वोटर….

वेदपाल बोले- भाजपा राज में भ्रष्टाचार ज्यादा सोनीपत के हरसाना खुर्द गांव में रहने वाले वेदपाल कहते हैं कि BJP सरकार से लोग नाराज हैं क्योंकि भ्रष्टाचार बहुत है। बच्चों की नौकरी नहीं लग पा रही। अफसर-कर्मचारी सुनवाई नहीं करते। ये चुनाव मुद्दों का है। इस बार कैंडिडेट देखकर नहीं, भ्रष्टाचार देखकर वोट देंगे। कांग्रेस के टाइम पर इतना भ्रष्टाचार नहीं था। अग्निवीर लगने वाला बच्चा 4 साल में क्या करेगा। उसे रिटायर होने पर पेंशन तक नहीं मिलेगी जबकि विधायकों-पूर्व विधायकों को हर कार्यकाल की अलग पेंशन मिलती है।

मदन गोयल बोले- भाजपा ने बहुत काम किया हिसार के रहने वाले मदन गोयल का दावा है कि भाजपा ने पिछले 10 साल में बहुत काम किया है। सारी गलियों को पक्का करवाया। फ्लाईओवर-रेलवे स्टेशन और तिरंगा लाइट लगवाई। घरों में पीने का पानी सही आने लगा। भाजपा ने पूरे शहर को चमका दिया।



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