स्टील बनाने की प्रकिया में बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन होता है। कई देश इसे कम करने के लिए प्रयासरत हैं। यूरोपियन स्टील कंपनी रुक्की 1 टन स्टील बनाने में दुनिया में सबसे कम 1.8 से 2.3 टन कार्बन डाय ऑक्साइड (C02) का उत्सर्जन करती है।
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भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) भी निरंतर उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। बीएसपी स्टील बनाने की प्रक्रिया में कोयला, आयरन ओर, चूना पत्थर को गलाने के दौरान निकलने वाली गैसों का ईंधन के रूप में उपयोग करता आया है। अब वह चिमनियों से निकलने वाली गैस से एथेनॉल बनाने जा रहा है। इसके लिए सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) ने इसी कार्य में दक्ष श्रीराम कंपनी से अनुबंध किया है।
बीएसपी प्रबंधन के मुताबिक कंपनी ने ट्रायल शुरू कर दिया है। ट्रायल खत्म होने के बाद चिमनियों से होते हुए वायुमंडल में जाने वाली प्रति 25 टन C02 गैस से 2.5 टन एथेनाल बनना शुरू हो जाएगा। देश में होने वाले कुल कार्बन उत्सर्जन में स्टील कंपनियों का योगदान 12% होता है।
C02 से एथेनाल बनने से कार्बन उत्सर्जन के प्रतिशत में कमी आएगी। इससे वायुमंडल में प्रदूषण की मात्रा भी कम होगी। एथेनाल खुले बाजार में बेचने से बीएसपी को अतिरिक्त आय होने लगेगी। इससे बीएसपी खुले बाजार में अपना स्टील कुछ सस्ता बेच सकेगी।
कार्बन उत्सर्जन घटाने बीएसपी कर रही ये तीन प्रयास
अधिक गैस काे थर्मल प्लांट भेजेंगे, कोयला कम जलेगा बीएसपी प्लांट ने अंदर ही थर्मल पॉवर प्लांट लगाया गया है, जहां कोयला जलाकर बिजली तैयार की जाती है। कोयला जलने से कार्बन उत्सर्जन होता है। इसे कम करने बीएसपी अब लोहा की प्रक्रिया के दौरान स्वत: बनने वाली गैस की कुछ मात्रा थर्मल पॉवर प्लांट भेजेगा। इससे टर्बाइन चलाने में मदद ली जाएगी। दावा कि हर साल करीब 2.30 लाख टन कार्बनडाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हाेगा।
फर्नेस का तापमान स्थिर रखेगी वहीं की गैस
कोक, आयरन ओर, चूना पत्थर का मिश्रण होता है। इन सबको आपस में मिलाने के लिए बहुत ज्यादा तापमान की जरूरत होती है। ब्लास्ट फर्नेस में तीनों मिलते हैं। इंधन के लिए यहां पूर्व की प्रक्रिया में निकलने वाली गैस व बिजली इस्तेमाल होती है। तीनों के पिघलने के दौरान पुन: गैस बनती है जिसे अब ईंधन की तरह इस्तेमाल करेंगे।
सामान्य जरूरत की बिजली सोलर पैनल से लेंगे
स्टील प्लांट में, कई शहरों के बराबर बिजली एक दिन में खर्च हो जाती है। बिजली के मुख्य स्रोत कोयला व पानी है। दोनों का अधिक उपयोग प्रदूषण काे बढ़ावा देता है। इसलिए सेल अपने यहां जैसे रोशनी, एसी, पंखा, पानी आदि की बिजली जरूरतें पुरा करने सोलर पैनल लगा रहा है। करीब 70 मेगा वॉट के सोलर प्लांट लगा रहे हैं। मानना कि 1 मेगावॉट के प्लांट से हर साल वह 980 टन सीओ-2 उत्पादन कम करने में सफल होंगे।