श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में दोहे पर विशेष चर्चा आयोजित की गई। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रभु त्रिवेदी ने दोहे की विधा पर विस्तृत जानकारी साझा की। त्रिवेदी ने बताया कि दोहा कोई अलग विधा नहीं है। यह गीत विधा का ही एक रूप है। उन्होंने कहा कि
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मंच पर बैठे अतिथि एवं वक्ता
विशेषज्ञ ने वर्तमान दोहा लेखन पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आजकल केवल 13-11, 11-13 के नियम का पालन ही पर्याप्त नहीं माना जा सकता। दोहे में भाषा और व्याकरण की शुद्धता भी आवश्यक है। यति मिलाने के लिए विभिन्न भाषाओं के शब्दों का मिश्रण दोहे की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. वसुधा गाडगिल ने किया। अंतरा करवड़े ने भाषा, व्याकरण और शब्द चयन जैसे विषयों पर प्रश्न उठाए। त्रिवेदी जी ने अपने कुछ दोहे सुनाकर विषय को समझाया। उनका प्रसिद्ध दोहा ‘करुणा, क्रंदन, कालिमा, नीड, निराशा, नेह। आँखों में क्या-क्या भरा शर्म, स्वप्न, संदेह।’ विशेष रूप से सराहा गया।
तकनीक के महत्व पर त्रिवेदी ने कहा कि यह रचना में सहायक हो सकती है, लेकिन ज्ञान नहीं दे सकती। कार्यक्रम में स्वागत प्रचारमंत्री हरेराम वाजपेयी ने किया। आभार प्रदीप नवीन ने व्यक्त किया।