खंडवा में व्याख्यानमाला को संबोधित करते भैय्याजी जोशी।
‘हिंदुत्व के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। हिंदू और भारत जुड़े हुए हैं। भारत के हिंदुत्व चिंतन में पराजित करने की नहीं बल्कि जीतने की परंपरा है। जीवन के मूल्यों को सुरक्षित रखना है तो अगर हमें अधर्म करना पड़े तो भी करेंगे। समाज के उत्थान के लि
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ये बात ‘हिंदुत्व की अवधारणा विषय’ पर स्वामी विवेकानंद व्याख्यानमाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश भैयाजी जोशी ने कही। उन्होंने कहा कि महाभारत में कौरवों ने युद्ध के नियमों का पालन किया। जबकि पांडवों ने नहीं किया। संध्याकाल के बाद युद्ध जारी रखना, समय के चक्र को बदला। इसलिए जीवन के मूल्यों को बचाना है तो कभी-कभी अधर्म भी करना चाहिए।
परमात्मा एक है, हमने कल्पना अनुसार रूप बनाएं भैयाजी जोशी ने कहा कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद जीवन मूल्यों में कोई अंतर नहीं होना चाहिए। हमें जो ऊपर दिखने वाले भेद हैं, उन्हें ध्यान में रखकर समझने की जरूरत है। किसी भी पंथ या संप्रदाय के लोग गीता और रामायण पढ़ते हैं। तीर्थ स्थल सभी के लिए हैं। हमारी काल गणना भी एक जैसी है। आज जो विज्ञान जहां तक नहीं पहुंच सका, उससे कहीं आगे हमारे ऋषि-मुनि पहुंचे थे।
हम सभी ये मानते हैं कि परमात्मा एक है, लेकिन रूप हमने अपनी कल्पना के अनुसार बनाए हैं। पंच महाभूतों का ज्ञान जो हमें मिला, वो हिंदुत्व से आया है। हिंदुत्व देवताओं और पूजा के आधार पर नहीं है। मूर्ति पूजा सामान्य देवता के पास जाने का सरल तरीका है। पंच महाभूतों के तत्वज्ञान को मानने वाले ही हिंदू हैं।
धर्मांतरण समस्या नहीं, भूमि के लिए भक्ति चाहिए भैयाजी ने कहा कि हिंदू होने के लिए भूमि के प्रति भक्ति होनी चाहिए। धर्मांतरण की समस्या मुसलमान या ईसाई बनने से नहीं है, बल्कि समस्या यह है कि धर्म बदलने के बाद व्यक्ति भूमि के प्रति प्रेम खो देता है। जो व्यक्ति धर्मांतरण करता है,वो भारत को पुण्यभूमि मानना बंद कर देता है। भारतीय संस्कृति सबको अपने मार्ग पर चलने की स्वतंत्रता देती है, लेकिन धर्मांतरित होकर व्यक्ति देश के प्रति समर्पित नहीं रह पाता।
पश्चिम की चकाचौंध में आकर मूल से भटक रहे जोशी ने कहा आज हम पश्चिम की चकाचौंध में आकर मूल से भटक रहे हैं। ये हिंदुत्व की चुनौती है। हमें मूल और मूल्यों से भटकना नहीं है। अंग्रेजों ने फैलाया था कि हम एक नहीं है और हमने मान लिया। यही हमारी फूट का कारण बना। हम आक्रमण नहीं करते लेकिन अपनी सुरक्षा करना जानते हैं। हिंदू चिंतन में कर्म को ही प्रधान माना है। हिंदुत्व के मूल्यों को बचाए रखना बहुत जरूरी है। मंदिर टूटे तो हिंदू उन्हें फिर से बना लेगा इसलिए हिंदुत्व की सबसे बड़ी रक्षा उसके मूल्यों को अपने आचरण में लाना है।