माना जाता है कि झारखंड विधानसभा चुनाव में तीन नेताओं की चली। इसमें असम के सीएम हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी शामिल थे।
भाजपा का झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा फुस्स हो गया है। शनिवार को आए 81 विधानसभा सीटों के रिजल्ट में भाजपा 21 सीटों पर सिमट गई है। जो 2019 के मुकाबले 4 सीट कम है। भाजपा की सबसे बड़ी हार एक बार फिर आदिवासी सीटों पर हुई है। 28 आदिवासी रिजर्व
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चुनावी आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों का भरोसा भाजपा पर अभी तक नहीं लौट पाया है। वह अब भी रघुवर दास के CNT एक्ट में बदलाव की कोशिशों को नहीं भूल पाए हैं। यह घाव चंपाई सोरेन के भाजपा में आने से भी नहीं भरा है।
आगे विस्तार से जानिए, भाजपा की हार की 5 बड़ी वजहें…
1. CNT एक्ट का घाव नहीं भूले आदिवासी
भाजपा की आदिवासी रिजर्व सीटों पर करारी हार हई है। इसका मतलब है कि रघुवर दास के CNT एक्ट (छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम) में बदलाव की कोशिशें आदिवासियों को आज भी याद है। इसकी भरपाई चंपाई सोरेन भी नहीं कर पाए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 2014 के पहले तक भाजपा आदिवासी रिजर्व सीटों पर ठीक-ठाक प्रदर्शन करती थी, लेकिन 2014 में किए गए प्रयोग से पार्टी को बड़ा धक्का लगा है। 2009 में भाजपा 28 आदिवासी रिजर्व सीटों में से 9, 2014 में 11 सीटें जीती थी। यह आंकड़ा 2019 में घटकर दो पर आ गया। और इस बार यानी 2024 में एक पर है।
दरअसल, नवंबर 2016 में तात्कालीन सीएम रघुवर दास ने सीएनटी एक्ट की धारा 46 में बदलाव का प्रस्ताव पास किया था। इस बदलाव के तहत आदिवासियों की जमीन के नेचर को बदला जा सकता था। उन्होंने राज्य में उद्योग लगाने को लेकर ऐसा किया था। हालांकि, आदिवासियों के बीच मैसेज गया कि एक्ट में बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने के लिए संशोधन हो रहा है। इस बदलाव से बिजनेसमैन जब चाहे सरकार से सीधे जमीन ले लेगा। इसका भारी विरोध हुआ। तब रघुवर सरकार को संशोधन का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था।
एक इंटरव्यू में रघुवर दास ने कहा था, ‘झामुमो, कांग्रेस आदिवासियों का विकास नहीं चाहते हैं। सीएनटी एक्ट में संशोधन सरकारी योजनाओं को लेकर जमीन के लिए किया जा रहा था। संशोधन में यह बात पूरी तरह से स्पष्ट भी थी। इस संशोधन से किसी भी निजी संस्था या संस्थान को लाभ नहीं होने वाला था।’
हेमंत-कल्पना का काट नहीं खोज पाई भाजपा
भाजपा चुनाव प्रचार में आक्रामक तो रही, लेकिन आदिवासी चेहरे की कमी खली। बाबूलाल मरांडी को छोड़कर ऐसा कोई आदिवासी नेता नहीं रहा, जो पूरे प्रदेश में प्रचार के दौरान घूमा हो। मरांडी को फ्री हैंड तो दिया गया, लेकिन वे चुनाव लड़ने आदिवासी सीट को छोड़कर जनरल सीट पर चले गए। इसका वोटरों में गलत मैसेज गया।
आदिवासी भाजपा से जुड़ाव नहीं महसूस कर पाए। भाजपा से दूसरी गलती ये हुई कि बाहरी नेता हेमंत सोरेन पर ज्यादा आक्रामक रहे। हेमंत को जेल भेजना भी आदिवासी वोटरों को नाराज कर गया। चुनाव के बीच में सेंट्रल एजेंसियों की रेड से लोगों के बीच मैसेज गया कि भाजपा जानबूझकर ऐसा कर रही है।
इस चुनाव प्रचार में भाजपा को महिला नेता की कमी भी खली। कल्पना के वोटरों से सीधा जुड़ाव का काट भाजपा के पास नहीं था।

10 नवंबर 2024 को पीएम नरेंद्र मोदी ने रांची में रोड शो करके कार्यकर्ताओं में जोश भरा था।
घुसपैठ पर आक्रामक प्रचार घातक साबित हुआ
भाजपा ने संथाल परगना के घुसपैठ के मुद्दे को पूरे राज्य का बड़ा मुद्दा बना दिया। आक्रामक तरीके से प्रचार करती रही। जहां घुसपैठ नहीं है वहां भी इसे मजबूती से उठाया गया, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा।
हिमंत बिस्व सरमा ने पूरे प्रचार को असम की तरह बना दिया। एक इलाके के घुसपैठ के मुद्दे को पूरे प्रदेश का बनाया। जबकि, सच्चाई ये है कि झारखंड के किसी इलाके का सीधा कनेक्शन विदेशी धरती (बांग्लादेश) से नहीं है।
इसका रिएक्शन ये हुआ कि घुसपैठ वाले इलाके में भी भाजपा की करारी हार हुई। पार्टी ने तीन बार से जीत रही राजमहल सीट को भी गंवा दिया। पार्टी संथाल परगना में एक सीट पर सिमट गई, जबकि 2019 में 4 सीटें जीती थी।

लोकल से ज्यादा बाहरी नेताओं की फौज से काडर कंफ्यूज
झारखंड विधानसभा चुनाव में अबकी बार भाजपा ने नया प्रयोग किया। लोकल नेताओं को किनारे लगाकर पूरी कमान सेंट्रल लीडरशीप ने ले ली। टिकट वितरण से लेकर प्रचार की कमान तक हिमंत बिस्व सरमा और शिवराज सिंह चौहान ने संभाल रखी थी।
लोकल नेता अपने एरिया तक सिमटे रहे। यहां तक की पड़ोसी राज्य बिहार के नेताओं तक को प्रचार में नहीं बुलाया गया। इससे काडर कंफ्यूज हो गए कि हमें क्या करना है? उनको हर चीज के लिए दूसरे नेताओं से पूछना पड़ रहा था।
2100 पर 2500 भारी, लोगों का हेमंत पर बढ़ा भरोसा
भाजपा ने संकल्प पत्र जारी किया। इसमें कमोबेश वैसे ही वादे किए गए थे, जैसा INDIA ने किया था। इस पर हेमंत सोरेन को सत्ता में रहने का लाभ मिला। लोगों ने उनके वादे पर ज्यादा भरोसा जताया।
खासकर महिलाओं ने हेमंत की मंईयां सम्मान योजना को पसंद किया और जमकर वोटिंग की। इसमें भी पहले चरण की वोटिंग से पहले आधी रात को महिलाओं के खाते में पैसा आ गया। जो गेम चेंजर साबित हुआ।

तीन वादे INDIA की तरह, यहीं मात खा गई
1. भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में महिलाओं को गोगो दीदी योजना के तहत 2100 रुपए हर महीने देने का वादा किया है। इसके बदले INDIA ने 2500 रुपए देने का वादा किया है। खास बात है कि हेमंत सरकार अभी 18 से 50 साल की महिलाओं को 1000 रुपए दे रही है। हालांकि, आचार संहिता लगने से पहले इसे बढ़ाकर 2500 रुपए कर चुकी है। इसी योजना का ऐलान अपने घोषणा पत्र में भी किया है।
2. भाजपा ने स्नातक और स्नातकोत्तर बेरोजगारों को दो साल तक प्रति माह 2 हजार रुपए भत्ता। पहले साल में डेढ़ लाख सरकारी पदों पर नियुक्ति। 5 साल में 2.87 लाख पदों पर नियुक्ति करने का वादा किया है। पांच साल में 5 लाख युवाओं को रोजगार दिया जाएगा। जबकि, INDIA गठबंधन ने युवाओं को रोजगार की गारंटी दी जाएगी। झारखंड के 10 लाख युवक-युवतियों को नौकरी एवं रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा।
3. भाजपा ने सभी परिवारों 500 रुपए में गैस सिलेंडर का वादा किया है। साथ ही दीवाली और रक्षाबंधन पर एक-एक फ्री सिलेंडर देने का ऐलान किया है। वहीं, INDIA ब्लॉक ने गरीब परिवार को 450 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया है।