सीएमएचओ ने रविवार को सरकारी ऑफिस खुलवाकर बच्चे को मुंबई रेफर करने के दस्तावेज तैयार करवाए।
जबलपुर में 17 दिन के नवजात बच्चे के दिल में जन्मजात छेद पाया गया। इससे उसकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण परिजन प्राइवेट इलाज नहीं करा पा रहे थे। ऐसे में उन्होंने सरकारी स्वास्थ्य विभाग से मदद मांगी।
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मामला रविवार का है, जब सरकारी ऑफिस बंद रहता है। लेकिन बच्चे की हालत गंभीर होने के कारण स्वास्थ्य अधिकारियों ने अर्जेंट में ऑफिस खुलवाया। सीएमएचओ ने जरूरी दस्तावेज तैयार कराए। इसके बाद मासूम को सरकारी योजना के तहत इलाज के लिए मुंबई भिजवाया। बच्चे के इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाएगी।
CMHO को आया कॉल, नवजात की जान खतरे में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. संजय मिश्रा रविवार को घर पर छुट्टी के दिन भी काम कर रहे थे। तभी अचानक उन्हें कॉल आया। उनके अधीनस्थ अधिकारी ने बताया कि एक 15 दिन के नवजात शिशु की जान खतरे में है। डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे के दिल में छेद है और जल्द से जल्द किसी बड़े शहर में इलाज कराना आवश्यक है। यह सुनते ही डॉ. मिश्रा ने आदेश दिए कि कार्यालय खोला जाए और इलाज से संबंधित सभी अधिकारी-कर्मचारियों को बुलाकर आवश्यक दस्तावेज तैयार किए जाएं।
सीएमएचओ ने रविवार को कार्यालय खुलवाकर दस्तावेज तैयार करवाए।
दो लाख रुपए से ज्यादा था इलाज का खर्च जबलपुर के पाटन निवासी स्वप्निल पटेल (32) और उनकी पत्नी शालिनी को 17 दिन पहले संतान हुई थी। शुरुआत में बच्चा स्वस्थ था, लेकिन कुछ दिन बाद उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। एक निजी अस्पताल में डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि बच्चे को सांस लेने में तकलीफ हो रही है। आगे की जांच में पता चला कि नवजात के दिल में जन्मजात छेद है, जिससे उसकी हालत बिगड़ रही थी। इलाज का खर्च दो लाख रुपए से ज्यादा था, जो कि एक निजी नौकरी करने वाले स्वप्निल के लिए संभव नहीं था।

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम से बच्चे को मदद मिली।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम से मिली राहत इस बीच परिजन को किसी ने सुझाव दिया कि वे जिला अस्पताल जाकर राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) के तहत मदद मांग सकते हैं। स्वप्निल ने रविवार को RBSK के जिला प्रबंधक सुभाष शुक्ला से संपर्क किया और पूरी स्थिति बताई। इसके बाद सूचना CMHO डॉ. संजय मिश्रा तक पहुंचाई गई। यह भी बताया गया कि छुट्टी का दिन रविवार होने के कारण कार्यालय बंद है, ऐसे में कागजी कार्रवाई तैयार करना मुश्किल होगा। सीएमएचओ ने तुरंत ही RBSK विभाग से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों को कार्यालय खोलने के निर्देश दिए।

कुछ ही घंटों में दस्तावेज तैयार, सीएमएचओ- कलेक्टर ने किए साइन CMHO डॉ. संजय मिश्रा के साथ राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के जिला प्रबंधक सुभाष शुक्ला भी जिला अस्पताल पहुंचे। बच्चे के माता-पिता को भी बुलाकर उनसे जानकारी ली गई। मुंबई के नारायणा अस्पताल, जहां बच्चे का इलाज होना है, वहां के डॉक्टरों से संपर्क किया गया। दस्तावेजों पर कलेक्टर दीपक कुमार सक्सेना और CMHO के हस्ताक्षर कराए गए। उसके बाद आरबीएसके योजना के तहत सारी प्रक्रिया पूरी कर ली गई।

छुट्टी के दिन कागजी दस्तावेज तैयार करवाते हुए सीएमएचओ संजय मिश्रा।
तत्काल में रिजर्वेशन कराकर ट्रेन से भिजवाया मुंबई बच्चे और उसके माता-पिता को मुंबई तक भेजने की जिम्मेदारी भी जिला प्रशासन ने उठाई। रेलवे से संपर्क कर तत्काल रिजर्वेशन करवाया गया और रविवार शाम को स्वप्निल, शालिनी और बच्चा विनायक मुंबई के लिए रवाना हो गए। इलाज का खर्च राज्य सरकार उठाएगी।

मुंबई रवाना होने से पहले स्वप्निल और शालिनी ने स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन का धन्यवाद किया।
राज्य सरकार उठाएगी इलाज का पूरा खर्च डॉ. संजय मिश्रा ने बताया कि विनायक की स्थिति को देखते हुए तत्काल कार्यवाही की गई। नारायणा अस्पताल से राज्य सरकार का एमओयू है, जिसके तहत दिल में छेद जैसी जन्मजात बीमारियों का इलाज होता है और पूरा खर्च सरकार उठाती है। बच्चे के इलाज पर करीब 2.4 लाख रुपए खर्च होगा, जो राज्य सरकार वहन करेगी। साथ ही परिवार को ट्रेन से मुंबई भेजने का खर्च भी सरकार ने उठाया।

विनायक का मुंबई में इलाज होगा। माता-पिता खुश होकर बोले-आपका आभार।
2023 में भी दिखाई गई थी ऐसी तत्परता डॉ. संजय मिश्रा ने बताया कि 2023 में भी एक मरीज की गंभीर हालत के कारण रविवार को कार्यालय खोला गया था। मरीज को नागपुर रेफर किया गया था और आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण 108 एंबुलेंस से भेजने की विशेष अनुमति दी गई थी। मरीज स्वस्थ होकर लौट आया था। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी 24×7 होती है, और ऐसे मामलों में इंसानियत और कर्तव्य सबसे पहले आते हैं।

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बिपाशा बसु की बेटी के दिल में जन्म से ही दो सुराख थे। जब वह 3 महीने की हुई तब उसकी ओपन हार्ट सर्जरी की गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में करीब 25 फीसदी बच्चे दिल में सुराख और ऐसे ही दूसरे ‘हार्ट डिफेक्ट्स’ के साथ जन्म लेते हैं और बहुत बार इसका पता नहीं चल पाता।
कितने साल सर्वाइव कर पाता है बच्चा वक्त से पता चल जाए तो 99 फीसदी मामलों में इलाज से बच्चे ठीक हो जाते हैं। सुराख ज्यादा बड़ा न हो तो 95 फीसदी बच्चे 18 साल की उम्र तक ही जी पाते हैं। सुराख बड़ा होने पर 75 फीसदी बच्चे मुश्किल से एक साल गुजार पाते हैं। पूरी खबर पढ़ें…