कहा- संयम का मार्ग सांसारिक जीवन से कहीं बेहतर है।
आमतौर पर जैन समुदाय के लोग दीक्षा लेते हैं, लेकिन गुजरात के सौराष्ट्र में पहली बार राजपूत समुदाय की 20 वर्षीय लड़की ने दीक्षा ग्रहण करने का फैसला किया है। इस राजसी उत्सव के अंतर्गत रविवार, 4 मई को सुबह 7 बजे आशापुरा माताजी मंदिर, पैलेस रोड से विशाल श
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हेतवी ने कहा- जब मैं छोटी थी, तभी से माता-पिता ने मुझे धार्मिक संस्कार दिए। पिता ने मुझे संसार से ज्यादा सच्चा मार्ग संयम बताकर इस पर चलने के लिए प्रेरित किया। यह 48 दिन का उपवास था, जिसमें 48 दिन साधु की तरह रहना होता है। मुझे लगा कि मैं यह जीवन जी सकती हूं।
भगवान महावीर के करीब होने का अहसास होने पर मैंने दीक्षा लेने का फैसला किया। मैं राजपूत हूं, लेकिन मेरे पिछले जन्म का कोई लेन-देन होगा, जिससे मुझे यह जैन धर्म मिला है। मेरी जो आराधना बाकी है, उसे पूरी करने के लिए मुझे साध्वी बनने का विचार आया है। वर्तमान में संयम के मार्ग पर चल रही हूं, लेकिन मुझे परिवार छोड़ने का थोड़ा सा भी दुख नहीं है और संसार की तुलना में संयम का मार्ग बहुत ही श्रेष्ठ है।