मैनपुरी के दिहुली नरसंहार में मंगलवार को स्पेशल डकैती कोर्ट की ADJ इंद्रा सिंह ने फैसला सुनाया। 24 दलितों की सामूहिक हत्या में तीन डकैतों कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा दी है। 50-50 हजार का जुर्माना भी लगाया है।
.
11 मार्च को स्पेशल जज ने तीनों को दोषी ठहराया था। इस मामले में 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था। जिनमें 13 की मौत हो चुकी है। एक आरोपी भगोड़ा घोषित है।
साल 1982 में डकैतों के गिरोह ने दलितों के गांव पर हमला बोल दिया था। अंधाधुंध गोलियां बरसाकर 24 लोगों की हत्या कर दी थी। जिसमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। डकैतों ने मुखबिरी के शक में दलितों की हत्या की थी।
सामूहिक नरसंहार से तब की केंद्र और प्रदेश सरकार हिल गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री बीपी सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेई भी पीडितों का दर्द बांटने दिहुली गांव पहुंचे थे।
जिस वक्त ये नरसंहार हुआ, उस समय दिहुली गांव फिरोजाबाद के थाना जसराना क्षेत्र में आता था। मैनपुरी जिला बनने के बाद फिरोजाबाद से केस मैनपुरी ट्रांसफर कर दिया गया।
फैसला सुनते ही रोने लगे दोषी वकील रोहित शुक्ला ने बताया- सामूहिक हत्याकांड के पीछे मुखबिरी और गवाही का मामला मुख्य रूप से सामने आया था। नाराज डकैतों ने बदले की भावना से गांव में पहुंचकर हमला किया था। 1983 में चार्जशीट दाखिल की हुई थी। दोषियों को अपने किए पर पछतावा है। फैसला आया तो वह रो पड़े। वहीं, आरोपी कप्तान सिंह ने बताया- हमको झूठा फंसाया गया है। मैंने कुछ नहीं किया है।
3 फोटो देखिए…

दोषी डकैतों को अदालत के आदेश पर जेल भेज दिया गया।

कड़ी सुरक्षा में दोषियों को कोर्ट में पेश किया गया था।
अब जानिए पूरा मामला…
डकैतों ने कहा था- मारो और भून डालो साल 1981… तारीख 18 नवंबर। शाम 6 बजे का वक्त था। डकैत राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष उर्फ संतोषा के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही के विरोध में दिहुली गांव में धावा बोला। डकैतों ने मारो और भून डालो का ऐलान किया था।
राधे और संतोष ने अपने 22 अन्य साथियों के साथ गांव में ऐसा तांडव मचाया कि गांव की जमीन लाल हो गई। 24 दलितों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे भी शामिल थे। डकैतों ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी।
दिहुली के लायक सिंह ने 19 नवंबर, 1981 को थाना जसराना में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 17 लोग नामजद किए गए।
ये हत्याकांड पूरे देश में गूंजा था। मैनपुरी से लेकर इलाहाबाद तक यह मामला कोर्ट में चला। इसके बाद 19 अक्तूबर, 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। जिला जज के आदेश पर विशेष डकैती कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने गांव का दौरा किया था। मृतकों के परिजनों से घटना के बारे में जानकारी लेने के साथ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की थी।
44 साल बाद पीड़ित परिवारों को मिला न्याय मंगलवार को कड़ी सुरक्षा में डकैत कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को अदालत लाया गया। अदालत ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई।
44 साल बीतने के बाद भी अभी तक पीड़ित परिवारों के परिजन न्याय की आस लगाए बैठे थे। पीड़ित परिवारों ने आरोपियों को फांसी दिए जाने की मांग की थी।
इन 24 लोगों की हुई थी मौत रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर, प्रीतम सिंह, आशा देवी, लालाराम, गीतम की हत्या हुई थी।

1981 में 18 नवंबर की शाम 6 बजे डकैतों ने गांव में नरसंहार किया था। हत्या के बाद रोते-बिलखते परिजन।
अब पढ़िए उन परिवारों का दर्द, जिन लोगों ने अपनों का खोया दिहुली गांव में रहने वाले ज्ञान सिंह ने बताया- डकैतों ने उनके बाबा ज्वाला प्रसाद, पिता भूरे लाल और चाचा मुन्नेश कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जब गांव में डकैतों ने नरसंहार किया था, उस समय उनकी उम्र एक वर्ष थी। जब वो परिजनों और अपनी मां से इस घटना के बारे में सुनते हैं, तो उनके आंसू बह निकलते हैं।
वे कहते हैं- नरसंहार में कई परिवारों ने अपनों को खो दिया था। तमाम परिवार शिकोहाबाद के बोझिया के साथ आगरा, नारखी, सैलई एवं अन्य जगहों पर रहे हैं।
न्याय मिलने में बहुत देरी हुई मीना देवी ने बताया- नरसंहार के दौरान उनके परिवार के लीलाधर और गीतम सिंह की मौत हुई थी। फैसला आया तो है, लेकिन अब तो आंसू भी सूख चुके हैं।
मीना कहती हैं- गांव में आए 24 लोगों ने तांडव मचाया था। 24 में से 21 आरोपियों की तो मौत भी हो चुकी है। जिनमें दोनों प्रमुख आरोपी राधे और संतोषा भी हैं।
90 वर्ष की जय देवी का कहना है कि अपने परिवार के लोगों के खोने का दर्द अभी भी नहीं भूल पाए हैं, न्याय मिलने में बहुत देरी हुई है। उन्होंने हमलावरों से छिपकर अपनी जान बचाई थी।

ज्ञान सिंह ने बताया- जब गांव में दबंगों ने नरसंहार किया था, उस समय उनकी उम्र एक वर्ष थी।
मुख्य आरोपी संतोष और राधे सहित 13 आरोपियों की हो चुकी मौत इस नरसंहार को अंजाम देने का आरोप जिस संतोष उर्फ संतोषा और राधे के गिरोह पर था, उसके 17 सदस्यों को इस वारदात में आरोपी बनाया गया। आरोपियों में से गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के सदस्य कमरुद्दीन, श्यामवीर, प्रमोद राना, मलखान, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मुंशी सिंह और पंचम पुत्र मुंशी सिंह की मौत हो चुकी है।
पांच गवाहों की गवाही से अभी तक चला केस कोर्ट में लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की गवाही हुई। इनकी गवाही के सहारे ही पूरा केस कोर्ट में टिका रहा। कुमर प्रसाद की गवाही सबसे अहम रही। उन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपनी गवाही दी थी। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट की भी बात कही गई।

पीड़ित परिवारों में कई लोग गांव से पलायन कर गए।
नरसंहार का एक आरोपी अभी भी है फरार एडीजे डकैती इंद्रा सिंह की कोर्ट से मंगलवार को फैसला आ गया है। मगर, इस नरसंहार की फाइल अभी अदालत में पूर्ण रूप से बंद नहीं होगी। दरअसल, एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी भी फरार है।
अदालत ने 15 जुलाई 2023 को उसे भगोड़ा घोषित करार देते हुए उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर रखे हैं। जब तक ज्ञानचंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो जाती या फिर वह खुद ही कोर्ट में सरेंडर नहीं कर देता, उसकी फाइल जिंदा रहेगी।
———————————
ये भी खबर पढ़ें…
बृजभूषण शरण सिंह बोले- षडयंत्रकारी सफल नहीं हुए:कुश्ती संघ पर UP का कब्जा; 26 महीने बाद WFI से खेल मंत्रालय ने निलंबन वापस लिया

खेल मंत्रालय ने मंगलवार को भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) पर लगा निलंबन हटा लिया है। पूर्व WFI प्रमुख और भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने मंत्रालय के इस फैसले को खिलाड़ियों की जीत करार दिया। पढ़ें पूरी खबर…