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47 साल जेल में बिताए, फिर निर्दोष साबित: जापान सरकार देगी ₹12 करोड़ मुआवजा; बॉस की हत्या के आरोप में मौत की सजा मिली थी


टोक्यो35 मिनट पहले

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89 साल के इवाओ हाकामाता 1968 से 2014 तक हत्या के आरोप में जापान की जेल में बंद थे। - Dainik Bhaskar

89 साल के इवाओ हाकामाता 1968 से 2014 तक हत्या के आरोप में जापान की जेल में बंद थे।

जापान की सरकार ने 89 साल के इवाओ हाकामाता को हत्या के झूठे आरोप में 47 साल जेल में रहने के बदले 12 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का फैसला किया है।

हाकामाता को 1968 में गिरफ्तार किया गया था।​​​​​​ वह 2014 तक सजा काट रहे थे।​ पिछले साल सितम्बर में जापान के शिजुओका शहर की एक अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था।

उन्हें 1966 में अपने बॉस, उसकी पत्नी और उनके दो बच्चों की हत्या, घर में आग लगाने और 200,000 येन (जापानी करेंसी) चुराने के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई थी।

हाकामाता के वकीलों के मुताबिक यह देश के इतिहास में किसी भी क्रिमिनल केस मे दिया गया सबसे बड़ा मुआवजा है।

हाकामाता और उनकी बहन 2014 में कोर्ट के सामने समर्थकों से बात करते हुए।

हाकामाता और उनकी बहन 2014 में कोर्ट के सामने समर्थकों से बात करते हुए।

बहन सबूत जुटाकर भाई को निर्दोष साबित कराया हाकामाता की बहन हिदेको ने अपने भाई को बेगुनाह साबित करने के लिए कई सालों तक मेहनत करके सबूत जुटाए। जिसके बाद कोर्ट ने 2014 में इस केस की फिर से सुनवाई शुरू की और हाकामाता को जेल से रिहा कर दिया।

हिदेको ने कहा कि मैं इस दिन का 57 साल से इंतजार कर रही थी और वह दिन आ गया। आखिरकार मेरे कंधों से एक बोझ उतर गया।

ज्यादा उम्र और बिगड़ती मानसिक स्थिति की वजह से उन्हें केस की सुनवाई में शामिल होने से छूट दी गई थी। वह अपनी 91 साल की बहन हिदेको की देखरेख में रह रहे थे।

हिदेको अपने भाई की तस्वीर दिखाते हुए।

हिदेको अपने भाई की तस्वीर दिखाते हुए।

पीड़ितों के DNA ने हाकामाता के DNA मेल नहीं खाया गिरफ्तारी के बाद हाकामाता ने शुरू में तो सभी आरोपों से इनकार किया था, लेकिन बाद में आरोपों को स्वीकार कर लिया था। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि हाकामाता की पिटाई करके उनसे जबरन कबूलनामा लिया गया था।

उनके वकीलों ने कहा कि पीड़ितों के कपड़ों से मिला DNA और हाकामाता का DNA मेल नहीं खाता है। आरोप लगाने के लिए झूठे सबूत गढ़े गए थे।

हाकामाता की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ा यह मामला जापान के सबसे लंबे और सबसे प्रसिद्ध कानूनी मामलों में से एक है। उनके वकीलों का कहना था कि वो दुनिया में सबसे लंबे वक्त तक मृत्युदंड की सजा पाने वाले कैदी बन गए हैं। इस सजा ने उनके मानसिक हेल्थ पर बुरा असर डाला।

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