मुंबई8 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत 5 साल से जेल में बंद 24 साल के आरोपी को जमानत दे दी। कोर्ट ने कहा कि लड़की के साथ जो हुआ उसे इसकी पूरी समझ थी। वह अपनी मर्जी से आरोपी के पास गई थी।
जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने कहा- मामला भले ही पॉक्सो एक्ट के तहत था और पीड़िता नाबालिग थी। लेकिन लड़की अपने माता-पिता को बताए बिना घर छोड़कर आरोपी के साथ चार दिनों तक रही।
मामले के फैक्ट्स को देखने से समझ आ रहा था कि उसे इस बात की पूरी जानकारी थी कि वो क्या कर रही है, उसने अपनी मर्जी से आरोपी के साथ चार दिन बिताए थे।
जानिए क्या है पूरा मामला
मामला साल 2019 का है। मुंबई के डीएन नगर पुलिस स्टेशन में उत्तर प्रदेश के रहने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। यह FIR एक 14 साल की नाबालिग लड़की के पिता ने दर्ज कराई थी।पिता के मुताबिक उनकी बेटी 19 नवंबर 2019 से गुमशुदा थी। मामला दर्ज होने के बाद 25 नवंबर को वह आरोपी और उसके दोस्त के साथ जुहू चौपाटी के पास मिली, जिसके बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।आरोपी के मुताबिक घटना के समय उसकी उम्र 19 साल थी। वह लड़की को करीब दो साल से जानता था। आरोपी ने कई बार जमानत की अर्जी दी लेकिन निचली अदालतों ने लड़की की उम्र को आधार बनाकर उसे खारिज कर दिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट से कैसे मिली जमानत, 2 पॉइंट…
- बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बेंच को पुलिस रिपोर्ट और लड़की के बाद में दिए गए बयानों में अंतर दिखा जिसमें मेडिकल जांच के दौरान भी बदलाव था।
- लड़की ने यह कहा कि वह आरोपी के साथ रिलेशनशिप में थी। होटल मालिक के बयान से यह भी सामने आया कि लड़की के पिता को उनके रिश्ते के बारे में जानकारी थी।
आरोपी पक्ष ने कहा- लड़की की सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं है अदालत में आरोपी पक्ष ने तर्क दिया कि चूंकि लड़की नाबालिग थी इसलिए उसकी सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकती। हालांकि बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी का कोई पहले से आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था और उसने पहले ही पांच साल से अधिक जेल में काट लिए हैं।
कोर्ट ने कहा- जमानत देने के साथ बाकी पहलुओं पर भी गौर किया गया कोर्ट ने कहा कि जमानत का निर्णय लेते समय यह देखना जरूरी है कि आरोपी मुकदमे के लिए हाजिर रहेगा या नहीं। इसके अलावा अपराध की गंभीरता, आरोपी द्वारा फिर से अपराध करने की संभावना, गवाहों को प्रभावित करने या सबूत से छेड़छाड़ करने की संभावना और आरोपी का आपराधिक इतिहास भी ध्यान में रखना जरूरी है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जमानत के दौरान आरोपी को यह ध्यान रखना होगा कि वह कानून का पालन करे और मुकदमे में बाधा डालने का कोई प्रयास न करे।
———————————–
यह खबर भी पढ़ें….
SC ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला पलटा:कहा- ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज का आरोप लगाना जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज की मांग का आरोप लगाना जरूरी नहीं है। यह कानून 1983 में शादीशुदा महिलाओं को पति और ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से बचाने के लिए लागू किया गया था। पूरी खबर पढ़ें