पुलिस पदाधिकारी विशेष अभियान चलाकर उन लोगों की पहचान करें, जो सार्वजनिक कार्यक्रमों, बसों, ट्रक और ऑटो-रिक्शा में अश्लील और द्विअर्थी (डबल मीनिंग) भोजपुरी गाने बजाकर माहौल खराब करते हैं। ये गाने महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बच्चों की
.
यह आदेश 7 मार्च को बिहार के ADGP ने जारी किया था। इसके बाद कुछ हद तक कार्रवाई हुई, लेकिन माननीयों के कार्यक्रम में ही ऐसे गाने बजते भी दिखे।
होली के मौके पर भोजपुरी गानों की दशा-दिशा किसी से छिपी नहीं है। हर साल, बीते साल से भी खराब गाने बनते हैं। ये गाने यूट्यूब और बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड करते हैं और फिर लोग इन्हें भूल जाते हैं।
हमने होली के अश्लील गानों सहित भोजपुरी गानों में इसके बढ़ते ट्रेंड को समझने की कोशिश की। पढ़िए और देखिए इस स्पेशल रिपोर्ट में…।
पटना में रिकॉर्डिंग स्टूडियो चलाने वाले आकाशवाणी के ग्रेड-ए वाइस ओवर आर्टिस्ट श्रीकांत सिन्हा भोजपुरी अभिनय और संगीत की दुनिया में तीसरी पीढ़ी हैं। बीते 40 साल में उनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो से भोजपुरी के सभी सम्मानित गायक गाने रिकॉर्ड कर चुके हैं। लेकिन अब वो भोजपुरी गानों की रिकॉर्डिंग नहीं करते हैं।
इन दिनों भजन या नए-नए चलन में आए ऑडियो एप के लिए कहानियां रिकॉर्ड करते हैं। इसका कारण बताते हुए वो कहते हैं,
चोली-घाघरा वाले गाने रिकॉर्ड करके हम पाप नहीं करना चाहते हैं। सिर्फ पटना में ही सैकड़ों रिकॉर्डिंग स्टूडियो हैं जहां से होली के दिनों में हर साल 2 सौ से ज्यादा गंदे गाने यूट्यूब पर रिलीज होते हैं। हम उनमें से एक नहीं हो बनना चाहते हैं।
यूट्यूब पर भोजपुरी एक्टर और गायक खेसारी लाल यादव के तकरीबन 7 गाने होली पर रिलीज हुए हैं। स्टार गायक पवन सिंह के भी तकरीबन इतने ही गाने रिलीज हुए हैं। इनमें से सभी के व्यूज एक मिलियन (10 लाख ) से लेकर 10 मिलियन तक है। कई गानों को तो अब तक 25 मिलियन बार सुना जा चुका है। देवर-भाभी, चोली-घाघरा और पिचकारी जैसे रुपकों के साथ अब इन गानों के दो अर्थ भी नहीं निकलते हैं। यूट्यूब पर गानों के रिलीज बढ़ने के कई कारण हैं।

यूट्यूब ने सबके हाथ में माइक थमा दिया
बीते 3 दशकों से भोजपुरी एल्बम के लिए वीडियो शूट करने वाले टी सीरीज से जुड़े डायरेक्टर दीप श्रेष्ठ डबल मीनिंग और अश्लील गानों के बनने का बड़ा कारण रिकॉर्डिंग मॉडल में बदलाव को मानते हैं।
वो कहते हैं, ‘1995 के बाद और यूट्यूब के आने के पहले तक भोजपुरी इंडस्ट्री में गानों के बनने और मार्केट में आने का तौर-तरीका अब से बिल्कुल अलग था। उस दौर में गाना बनाने वाली कंपनियों की टीम बैठती थी। गाना तय होता था, फिर गायक तय किया जाता था। रिकॉर्डिंग में गायक के साथ-साथ सभी म्यूजिशियन बैठते, सबकुछ लाइव रिकॉर्ड होता था।’

अगर वीडियो बनता था तो इसकी फीस कई बार कंपनियां देती थीं। कई बार गायक पैसा लगाते थे। इसके बाद गाना रिलीज होता था। ऐसे में अगर वो सच में अच्छा गायक नहीं है या उसके पास वेरायटी नहीं है तो वो धीरे-धीरे मार्केट से बाहर हो जाता था। लेकिन यूट्यूब के आने से सबके हाथ में माइक आ गया।
गानों में डिजिटल के दुनिया के बढ़ते प्रभाव को समझाने की कोशिश में रिकॉर्डिंग स्टूडियो चलाने वाले श्रीकांत सिन्हा बताते हैं, ‘यूट्यूब के आने के बाद सबकुछ गायक केंद्रित हो गया है। ऐसे में गायक की इच्छा ही चलती है। सबको वायरल होना है और कोई फिल्टर नहीं है तो फिर कोई कुछ भी गा रहा है।’

भोजपुरी में गाना बनाना बहुत आसान
श्रीकांत सिन्हा ने बताया कि बीते पांच-सात सालों में भोजपुरी में गाना बनाना बहुत आसान हो गया है।
‘तीन हजार से पांच हजार रुपए में भोजपुरी का अश्लील गाना बना कर लॉन्च किया जा सकता है। आजकल 10 हजार रुपए में वीडियो के साथ गाना लॉन्च हो सकता है। स्टूडियो का खर्च एक हजार रुपए आता है। साउंड-मिक्सिंग वगैरह का खर्च एक हजार या पंद्रह सौ रुपए, इससे भी कम पैसों में म्यूजिक ट्रैक मिल जाता है।’

मैंने वो जमाना भी देखा है जब गाने का एल्बम बनवाने के लिए लोग अपना खेत बेच कर रिकॉर्डिंग करवाते थे।
श्रीकांत बताते हैं, ‘भोजपुरी के गानों में बहुत बदलाव आ चुका है। मैं नहीं चाहता कि चोली-घाघरा के गाने रिकॉर्ड कराऊं, इसलिए मैंने लाइन चेंज कर दी है। मेरे स्टूडियो में भोजपुरी के लगभग सभी पुराने गायक- गायिका रिकॉर्ड कर चुके हैं। हम आज भी बढ़िया भोजपुरी गाने रिकॉर्ड करते हैं, मगर नए गाने वालों को मैं खुद ही मना कर दूंगा।’
यूट्यूब पर गानों की भरमार के बीच ऐसा नहीं है कि बेहतर गाने नहीं हैं। लेकिन हमारी चॉइस अल्गोरिद्म की भेंट चढ़ चुकी है। यूट्यूब या बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर किसी खास किस्म के दो वीडियो लगातार देख लेने के बाद उसी किस्म के सजेशन आने लगते हैं।
डबल मीनिंग गानों की भरमार
लोक गायिका मनीषा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘ऐसा नहीं है कि यूट्यूब पर अच्छा गाना नहीं चलता है। लेकिन दुर्भाग्य है कि जब तक पांच अच्छे गाने आते हैं तब तक सौ द्विअर्थी गाने आ चुके होते हैं। छठ पर मेरे नए गाने को इंस्टाग्राम पर बहुत पसंद किया गया। उस पर पांच लाख एकाउंट से रील बने। मगर मैं अश्लील नहीं गाती तो मेरे सारे गाने ट्रेंड नहीं करते। होली का गाना अभी तक 56 हजार लोगों ने देखा है।’

मेरा नया गीत होली पर देवर-भौजाई की नोकझोंक भरी बात पर है। मगर वो बातें पर्दे पर रहकर हो रही हैं। मैंने उसमें घाघरा और अंगप्रत्यंग के नाम नहीं लिए है, इसलिए वो मिलियन व्यूज में नहीं है। मगर मेरा उद्देश्य यूट्यूब पर ट्रेंड करना भी नहीं है।

1971 में रिजेक्ट हुई 8वीं अनुसूची की मांग
जानकार बताते हैं कि 13 करोड़ से ज्यादा की आबादी की बोली को अभी तक भाषा का दर्जा न मिलना इसका बड़ा कारण है। 1971 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सांसद भोगेंद्र झा ने भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया।
पत्रकार और भोजपुरी भाषा के जानकार निराला बिदेसिया कहते हैं,

असली चुनौती तब से है जब आजादी के बाद इसे संविधान की 8वीं अनुसूची में जगह नहीं मिल पाई। एक तो संवैधानिक संरक्षण नहीं मिला, दूसरा भोजपुरी भाषी लोग देश के बाकी हिस्से में मेहनत- मजदूरी करने ही गए। वो अपनी भाषा में गौरव करने की बजाय पेट पालते रहे और भोजपुरी उच्च वर्ग की भाषा नहीं बन पाई। साधन-संसाधन संपन्न भोजपुरी भाषी व्यक्ति हिंदी बोलना और उसके ही गाने इंजॉय करने लगा और भोजपुरी पीछे छूटती चली गई।

भोजपुरी की लिपी- कैथी का एक पन्ना
भोजपुरी के आसपास की कई भाषाओं जैसे मैथिली, बंगाली, उड़िया और असमिया को संवैधानिक मान्यता मिल चुकी है। बीते डेढ़ दशक से भोजपुरी के दो बड़े गायक-अभिनेता रवि किशन और दिनेश लाल यादव निरहुआ संसद सदस्य रहे हैं। मगर संवैधानिक मान्यता के कानून पर कोई बात आज तक नहीं हुई।