बिहार विधानसभा की 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, और यह चारों ही सीटें एनडीए ने जीत ली हैं। यह महागठबंधन के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि इन 4 में से 3 सीटों पर महागठबंधन का कब्जा था।
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नतीजों ने तेजस्वी यादव की रणनीति पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। वहीं जनसुराज भले ही चुनाव जीत नहीं सकी, लेकिन उसे जो वोट मिले, इससे पता चल रहा है कि उसने महागठबंधन को झटका दिया है। जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला है।
एनडीए के अंदर बीजेपी और जेडीयू के बीच समन्वय बनाने की जो कवायद चल रही थी, उसका पॉजिटिव असर दिखा है।
वोटिंग के पहले नीतीश कुमार ने अपने आवास पर एनडीए की बैठक बुलाकर जेडीयू-बीजेपी के बीच बेहतर समन्वय का टास्क दिया था।
रामगढ़ और बेलागंज सीट अब तक आरजेडी के पास थी। तरारी सीट माले के कब्जे में थी। वहीं, इमामगंज हम पार्टी के पास थी। भास्कर के इस एनालिसिस में पढ़िए चारों सीट पर किसकी और क्यों जीत हुई।
1.बेलागंज सीट
एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने सिर्फ बेलागंज में उम्मीदवार उतारा था। बाहुबली बिंदी यादव की पत्नी और दो बार एमएलसी रहीं मनोरमा देवी को उम्मीदवार बनाया था। उन्होंने आरजेडी के गढ़ को ढाह दिया। आरजेडी के विश्वनाथ दूसरे और जनसुराज के मो. अमजद तीसरे नंबर पर रहे। यहां से आरजेडी की हार के बाद गया के गढ़ में जेडीयू की एंट्री हो गई है।
विधानसभा चुनाव 2020 में बेलागंज में जेडीयू से अभय कुशवाहा दूसरे नंबर पर रहे थे। लेकिन लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने अभय कुशवाहा को अपनी तरफ मिला लिया और औरंगाबाद से लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया। अभय कुशवाहा आरजेडी के सांसद चुन लिए गए। यह नीतीश कुमार को चुनौती थी।
बेलागंज विधानसभा से 1990 के बाद से आरजेडी के सुरेन्द्र यादव चुनाव जीत रहे थे, इस बार जहानाबाद से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने बेटे डॉ. विश्वनाथ को आरजेडी से टिकट दिलवाया। लालू प्रसाद सिर्फ इसी सीट पर चुनाव प्रचार में गए थे। यही नहीं मुसलमान वोट बैंक को एकजुट करने के लिए शहाबुद्दीन के पुत्र ओसामा को भी बेलागंज भेजा गया था। लेकिन ओसामा का जादू भी नहीं चल पाया। जनसुराज के मो. अमजद ने मुसलमानों का खासा वोट काटा।
जिले में 10 विधानसभा सीटों में से 5 सीट पर आरजेडी का कब्जा रहा है। बाकी पांच में बीजेपी और हम पार्टी का कब्जा। अब उपचुनाव में जेडीयू की जीत से गया जिले की राजनीति में जेडीयू की एंट्री हो गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में शेरघाटी, बोधगया, बेलागंज, गुरुआ और अंतरी पर आरजेडी की जीत हुई थी और बाराचट्टी, टेकारी, इमामगंज में हम पार्टी की, गया टाउन और वजीरगंज में बीजेपी जीती थी।
इस लिहाज से गया जिले में आरजेडी एक पार्टी के तौर पर ताकतवर स्थिति में रहने के बावजूद बेलागंज की सीट नहीं बचा पाई। दो सांसदों सुरेन्द्र यादव और अभय कुशवाहा की ताकत भी जलवा नहीं दिखा सकी। याद करें तो तारापुर उपचुनाव में लालू प्रचार के जाने के बाद ही वहां आरजेडी की हार हो गई थी और जेडीयू जीती थी। कुछ वैसा ही इतिहास बेलागंज उपचुनाव में दोहरा गया। जेडीयू और बीजेपी का कॉर्डिनेशन बेहतर रहा। इसका असर इस मायने में आगे विधानसभा चुनाव 2025 पर पड़ेगा।
मनोरमा देवी के साथ सहानुभूति भी रही
मई 2016 में तत्कालीन जेडीयू विधान पार्षद मनोरमा देवी को पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। मनोरमा देवी के घर से शराब बरामद की गई थी। बिहार में शराबबंदी है इसलिए यह मामला काफी चर्चा में आया था। मनोरमा देवी के बेटे रॉकी यादव को पुलिस ने गया में आदित्य सचदेवा की हत्या के मामले में अरेस्ट किया था, इसी मामले में उनके पति बिंदी यादव को भी अरेस्ट किया गया था।
रोडरेज का मामला काफी सुर्खियों में रहा था। 20 सितंबर 2024 को बिहार में नक्सलियों से संबंध के आरोप में मनोरमा देवी के घर एनआईए ने छापेमारी की थी। गया और भभुआ में उनके और उनसे जुड़े लोगों के कुल 5 ठिकानों पर छापेमापी हुई थी। एनआईए को शक रहा कि मनोरमा देवी नक्सलियों को हथियार और धन उपलब्ध कराती हैं। छापेमारी में चार करोड़ रुपए, हथियार और कई आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए थे। मनोरमा देवी की जीत बता रही है कि यादवों का सहानुभूति वोट उन्होंने हासिल किया है।
बेलागंज में यादव-मुस्लिम ज्यादा
यहां सबसे बड़ी आबादी यादवों और मुसलमानों की है। इसलिए यह लालू प्रसाद के MY समीकरण वाला गढ़ है। यही वजह है कि यहां से सुरेन्द्र यादव जीतते रहे। यहां यादव 19 फीसदी के लगभग हैं तो मुसलमान 17 फीसदी के आसपास। उसके बाद बड़ा वोट बैंक मुसहर समाज का है। मुसहर यहां 11 फीसदी हैं। सवर्णों में सर्वाधिक सात फीसदी भूमिहार हैं। कोयरी छह फीसदी, बनिया दो फीसदी और बाकी ओबीसी छह फीसदी, ईबीसी 6 फीसदी है। पासवानों का वोट बैंक ईबीसी के बराबर ही छह फीसदी है। चमार जाति के लोग पांच फीसदी हैं। 2020 के बेलागंज विधान सभा चुनाव का परिणाम क्या रहा : सुरेन्द्र यादव (आरजेडी)- 79708 वोट, अभय कुशवाहा (जेडीयू)- 55745 वोट, रामाश्रय शर्मा (एलजेपी)- 12005 वोट।
2. इमामगंज सीट
यहां हम पार्टी से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी, आरजेडी से रौशन मांझी और जनसुराज से डॉ. जितेन्द्र पासवान लड़े। एलजेपीआर सुप्रीमो और केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान के चुनाव प्रचार में नहीं जाने के बावजूद हम पार्टी को मिली यह जीत बड़ी है। दूसरे नंबर पर आरजेडी के रौशन कुमार और तीसरे पर जनसुराज के जितेन्द्र पासवान रहे। जितेन्द्र पासवान ने पासवानों के अच्छे वोट लिए। यहां मुसहर सबसे बड़े आबादी हैं। इसका मतलब है कि मुसहरों के अलावा बीजेपी के कोर वोट बैंक वैश्यों और अतिपिछड़ों ने दीपा मांझी को वोट किया है। आरजेडी का मुसलमान वोट भी आरजेडी और जनसुराज के बीच बंटा।
इमामगंज का सामाजिक समीकरण : यहां मुसहर सबसे अधिक 18.6 परसेंट, मुसलमान 15.3 फीसदी, यादव 13.2 फीसदी, कुशवाहा वोट बैंक 10.82 फीसदी हैं। अनुसूचित जाति का कुल वोट बैंक 32 फीसदी के आसपास है। ओबीसी 30 फीसदी के लगभग है। राजपूत 4.3 फीसदी, ब्राह्मण व भूमिहार की आबादी कम है। सवर्ण 6 फीसदी के लगभग हैं।
2020 के विधान सभा चुनाव का परिणाम क्या रहा : जीतन राम मांझी (हम)- 78762 वोट,उदय नारायण चौधरी (आरजेडी)- 62728 वोट, कुमारी शोभा सिंहा- (एलजेपी)- 14197 वोट।
3. रामगढ़ सीट
यह आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और सांसद सुधाकर सिंह के लिए प्रतिष्ठा की सीट थी। आरजेडी ने सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत सिंह, बीजेपी ने अशोक कुमार सिंह, बीएसपी ने सतीश यादव उर्फ पिंटू यादव और जनसुराज ने सुशील कुमार कुशवाहा को उतारा था। बीजेपी के अशोक कुमार सिंह की जीत हुई। खास बात ये रही कि इस सीट पर आरजेडी नहीं बल्कि बीजेपी और बीएसपी के बीच कांटे की टक्कर हुई।
यूपी बॉर्डर से सटे होने के चलते इमामगंज में बसपा का ठीक–ठाक प्रभाव रहा है। इस बार आरजेडी और बसपा की लड़ाई में बीजेपी को फायदा मिल गया। जगदानंद सिंह और सुधाकर सिंह,अजीत सिंह को जीत नहीं दिलवा सके।
दूसरी तरफ पूर्व विधायक अंबिका यादव अपने भतीजे सतीश यादव को नहीं जिता पाए। दोनों परिवारवाद को लोगों ने नकार दिया। चुनाव से पहले अजीत सिंह आरजेडी में शामिल कराए गए थे। यहां यादवों ने लालू प्रसाद और तेजस्वी को भी नकारा है। यादवों का वोट आरजेडी और बसपा के बीच बंट गया। चमार जाति यहां अकेले 22 फीसदी है। दलितों के लगभग 29 फीसदी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा बसपा के साथ गया। तेजस्वी यादव ने रामगढ़ में 40 किमी का रोड शो किया था। इस मायने में तेजस्वी की भी हार यहां हुई।
अंबिका और जगदानंद की लड़ाई
2015 का चुनाव छोड़ दें तो इसी सीट पर साल 1985 से अब तक जगदानंद और उनसे जुड़े लोग ही जीतते रहे हैं। 2009 में बक्सर से सांसद बनने के बाद जगदानंद सिंह ने यह सीट छोड़ दी थी। तब आरजेडी ने जगदानंद के बेटे सुधाकर सिंह की जगह अंबिका यादव को उम्मीदवार बनाया था। वे चुनाव भी जीत गए। 2010 के चुनाव में जब अंबिका यादव को फिर से टिकट मिला तो सुधाकर सिंह ने बगावत कर दी। जगदानंद ने बागी बने पुत्र सुधाकर को हराने में ऐसी ताकत लगाई कि सुधाकर तीसरे नंबर पर चल गए।
2020 में आरजेडी ने सुधाकर सिंह को टिकट दिया और सुधाकर चुनाव जीत गए। वे 2022 में नीतीश-तेजस्वी सरकार में बिहार सरकार में कृषि मंत्री भी बनाए गए। लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ तीखी बयानबाजी की वजह से मंत्री पद छोड़ना पड़ा। सुधाकर को आरजेडी ने 2024 लोकसभा का टिकट दिया और वे बक्सर से सांसद चुन लिए गए। इस बार के विधान सभा चुनाव में अंबिका यादव ने अपने भतीजा सतीश यादव को बसपा से लड़वाया और बदला लेने की कोशिश की। लेकिन अंबिका यादव और जगदानंद सिंह की हार हुई। एनडीए की एकजुटता भारी पड़ी।
रामगढ़ का सामाजिक समीकरण : यहां चमार जाति अकेले 22 फीसदी है। दलितों का वोट बैंक लगभग 29 फीसदी है और ये वोट बैंक जीत-हार में मायने रखता है। राजपूत 8 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी हैं। सवर्ण 17.5 फीसदी हैं। यादव वोट बैंक 12 फीसदी और मुसलमान 8 फीसदी हैं। कोयरी-कुर्मी मिलाकर 8 फीसदी हैं। ओबसी 26 फीसदी हैं।
2020 के विधान सभा चुनाव का परिणाम क्या रहा : सुधाकर सिंह (आरजेडी)- 58083 वोट, अंबिका सिंह यादव (बीएसपी)- 57894 वोट, अशोक सिंह (बीजेपी)- 56084 वोट ।
4. तरारी सीट
यहां बीजेपी से बाहुबली सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत, माले से राजू यादव और जनसुराज से किरण देवी मैदान में थीं। बीजेपी ने जिस रणनीति से माले की घेराबंदी की वो सफल रही। दरअसल, बीजेपी ने पूरी प्लानिंग के साथ सुनील पांडेय और उनके बेटे विशाल प्रशांत को बीजेपी में शामिल करवाया था। उन्हें पारस गुट की राष्ट्रीय लोजपा से तोड़ा गया था। यह पूरी रणनीति दिलीप जायसवाल के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बनाई गई थी। इस मायने में यह प्रदेश अध्यक्ष की बड़ी जीत है। बीजेपी ने थोड़ा ही सही आरा लोकसभा में हार का बदला तरारी में लेने की कोशिश की। यहां भी बेलागंज की तरह बीजेपी और जेडीयू का समन्वय ठीक दिखा। यह 2025 के विधान सभा चुनाव में एनडीए को मजबूती देगा। इमामगंज की तरह यहां भी परिवारवाद को लोगों ने स्वीकारा। महागठबंधन से यादव उम्मीदवार होने की वजह से अतिपिछड़ों का वोट बीजेपी की तरफ गया।
तरारी का सामाजिक समीकरण : यादव 13.9 फीसदी, ईबीसी 12.3 फीसदी, मुसलमान और भूमिहार 10 फीसदी के आसपास हैं। राजपूत 8 फीसदी, पासवान 7 फीसदी हैं। सवर्ण वोट बैंक 24 फीसदी है। ह नक्सल प्रभावित इलाका रहा है। रणवीर सेना का संस्थापक माने जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या मामले में सुनील पांडेय का नाम भी आया था।
2020 के विधान सभा चुनाव का परिणाम क्या रहा : सुदामा प्रसाद (माले)- 73945, सुनील पांडेय ( निर्दलीय)- 62930 वोट, कौशल कुमार विद्यार्थी (बीजेपी)- 13833 वोट।
रणनीति जो सफल रहीः बीजेपी और जेडीयू के बड़े नेताओं का फोकस आपसी समन्वय पर रहा
पार्टियों ने सोशल इंजीनियरिंग पर तो फोकस किया ही साथ ही पार्टियों का एजेंडा भी साथ रहा। एनडीए ने नीतीश कुमार के विकास और नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडा को सामने रखा तो महागठबंधन की पार्टी आरजेडी ने बिहार के आरक्षण को 9 वीं अनुसूची में शामिल नहीं करने, स्मार्ट बिजली मीटर, तेजस्वी के 17माह की सरकार में सरकारी नौकरी को एजेंडा बनाया, माले ने भूमि सुधार, आंगनबाड़ी सेविका सहायिका आदि से जुड़े सवाल को एजेंडा बनाया था। वोटिंग के दिन पीएम मोदी का बिहार दौरा भी हुआ था। एनडीए में जेडीयू और बीजेपी के बीच बेहतर समन्वय हो इसकी कोशिश बीजेपी की तरफ से भी हुई और जेडीयू की तरफ से भी। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा चुनाव से पूर्व कई बार बिहार दौरे पर आए। नीतीश कुमार के आवास पर एनडीए की महत्वपूर्ण बैठक में भी रणनीति बनी। कई विकास योजनाओं की शुरूआत की गई।
आरजेडी की आगे की यात्रा कठिन होगी- प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार
राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण बागी कहते हैं कि ‘उपचुनाव में चारों सीटों पर एनडीए की जीत ने साबित कर दिया कि लोगों ने नीतीश कुमार और बीजेपी की सरकार के कामकाज पर अपनी मुहर लगाई है। आरजेडी के परिवारवाद को नकार दिया है। रामगढ़ में सुधाकर सिंह की इमेज बड़बोले नेता की हो गई, हालांकि वे बात सही बोलते हैं। इसका इफेक्ट पड़ा। यहां आरजेडी की हार जगदानंद सिंह के खिलाफ जनादेश है। तरारी में एनडीए का वोट इंटैक्ट हुआ। बेलागंज में आरजेडी की स्थिति पहले ही खराब दिख रही थी। इमामगंज में जीतन राम मांझी की बहू पहले से सक्रिय थी, पति संतोष सुमन बिहार सरकार में मंत्री हैं, ससुर जीतन राम मांझी भारत सरकार में मंत्री हैं। इस सब का असर हुआ कि दीपा मांझी की जीत हुई।’