31 अगस्त, यानी कल से केरल के पलक्कड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय समन्वय बैठक शुरू होगी। तीन दिन चलने वाली इस बैठक में RSS से जुड़े सभी संगठनों के राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधि शामिल होंगे। BJP की तरफ से संगठन मंत्री बीएल संतोष आने वाले है
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लोकसभा चुनाव के रिजल्ट और BJP से मनमुटाव की खबरें आने के बाद ये RSS की पहली समन्वय बैठक है। सोर्स बताते हैं कि बैठक में फोकस चुनाव पर ही होगा। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में सितंबर और अक्टूबर में वोटिंग है। RSS की इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक, यहां BJP के लिए हालात अच्छे नहीं हैं।
RSS की पिछली समन्वय बैठक 2023 में 14 से 16 सितंबर तक पुणे में हुई थी। इसमें 36 संगठनों के 267 पदाधिकारी शामिल हुए थे। फोटो सोर्स: RSS
सोर्स बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में अनदेखी की नाराजगी RSS सीधे सरकार के प्रतिनिधि के सामने रखेगा। ये भी तय करेगा कि लोकसभा चुनाव में जो हुआ, वो फिर न हो। इसके अलावा BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी RSS अपनी पसंद के नाम सौंपेगा।
समन्वय बैठक से पहले दैनिक भास्कर ने RSS के राष्ट्रीय और प्रांत स्तर के पदाधिकारियों से बात की। इनमें से कुछ पदाधिकारी बैठक में भी शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि कुल 6 मुद्दों पर फोकस रहने वाला है।
1. RSS और सरकार तल्खी भुलाकर पहले की तरह काम करें
लोकसभा चुनाव में BJP के कमजोर प्रदर्शन के बाद RSS और सरकार के बीच तल्खी सामने आई थी। सरसंघचालक मोहन भागवत के बयान से भी साफ हो गया कि उन्हें सरकार का रवैया पसंद नहीं आया। इसे उन्होंने अपने भाषण में जाहिर भी किया था। उन्होंने कहा कि हमें इस मानसिकता से छुटकारा पाना होगा कि सिर्फ हमारा विचार ही सही है, दूसरे का नहीं।
लोकसभा चुनाव के बाद ये पहली मीटिंग है, जिसमें RSS और सरकार के प्रतिनिधि के बीच खुलकर बात होगी कि किन मुद्दों पर RSS चुनावी मिशन से कट गया। आगे आने वाले चुनावों में उसकी भूमिका क्या होगी। RSS की सलाह और नेटवर्क दोनों पर सरकार का कितना दखल होना चाहिए।
2. हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में BJP की खराब स्थिति पर बात
BJP की सरकार वाले हरियाणा में 1 अक्टूबर को वोटिंग होनी है। वहीं, जम्मू कश्मीर में तीन फेज में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को वोटिंग होगी। दोनों जगह BJP और RSS की इंटरनल रिपोर्ट खुशखबरी लेकर नहीं आई है।
हरियाणा में 2023 में हुए नूंह दंगों का असर अब भी दिख रहा है। लोगों को लग रहा है कि यहां हिंदुओं की अनदेखी की गई। मोनू मानेसर जैसे कई गोरक्षक जेल में हैं। हिंदूवादी संगठन और सरकार, पीड़ित हिंदुओं के साथ नजर नहीं आए।
हरियाणा में बेरोजगारी और ड्रग्स का मुद्दा भी चुनाव में हावी होगा। किसान और पहलवानों के आंदोलन का असर BJP के पक्ष में नहीं है। हालांकि, संघ ने यहां बैठकें शुरू कर दी हैं। हिंदू समुदाय के बीच मैसेज भेजे जा रहे हैं, लेकिन उनके गुस्से और हताशा को उत्साह में बदलने के लिए आक्रामक रणनीति की जरूरत है।
जम्मू-कश्मीर में काम करने वाले RSS के पदाधिकारी बताते हैं कि यहां इलेक्शन के लिए कैंडिडेट्स की लिस्ट जारी कर वापस लेना BJP की कमजोर पकड़ का नतीजा है। RSS यहां के BJP नेताओं से नाराज है।
सोर्स बताते हैं कि कैंडिडेट्स की लिस्ट बनाते वक्त RSS ही नहीं, BJP के लोकल नेताओं की भी अनदेखी की गई। गौर करने वाली बात है कि वापस की गई लिस्ट को तैयार करने में PM नरेंद्र मोदी की सीधी भूमिका थी।
26 अगस्त को BJP का लिस्ट वापस लेना, RSS के एक्टिव होने का संकेत है। RSS के वरिष्ठ कार्यकर्ता राम माधव को जम्मू-कश्मीर भेजना RSS की सक्रियता और चुनाव से पहले बनी इंटरनल रिपोर्ट का ही नतीजा है।
3. BJP के नेशनल प्रेसिडेंट का चुनाव, RSS ने चुने तीन नाम
BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो गया है। पार्टी ने उनका कार्यकाल जून, 2024 तक बढ़ा दिया था। जेपी नड्डा अब सेंट्रल मिनिस्टर हैं। इसलिए BJP नए अध्यक्ष की तलाश कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, RSS ने BJP अध्यक्ष पद के लिए तीन नाम चुने हैं। सबसे ऊपर UP के डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य का नाम है। UP में पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह RSS के जमीनी कैडर की अनदेखी को माना गया। लिहाजा ऐसे व्यक्ति को पार्टी प्रेसिडेंट बनाने की सलाह दी जाएगी, जो BJP और RSS के बीच कड़ी बने।
RSS के बैकग्राउंड वाले व्यक्ति को अध्यक्ष बनाकर मैसेज दिया जाएगा कि RSS अब भी कमजोर नहीं है। RSS और सरकार काम करने के पुराने तरीके पर लौट आई है। संगठन पहले और सरकार बाद में है।
4. केरल में लोकसभा चुनाव में खाता खुला, अब ज्यादा सीटें जीतने पर जोर
केरल में RSS की अच्छी पैठ है। भारत में उसकी सबसे ज्यादा 5,142 शाखाएं केरल में ही हैं। यहां RSS 1946 से एक्टिव है। इसके बावजूद केरल में BJP को एंट्री का रास्ता नहीं मिला। पहली बार पार्टी ने त्रिशूर सीट जीतकर खाता खोला है। यहां से एक्टर सुरेश गोपी का चुनाव जीतना संकेत है कि RSS ने जो जमीन तैयार की है, उसमें अब सियासी फसल उगने लगी है।
अब रणनीति बनाई जाएगी कि 2026 के विधानसभा चुनाव में त्रिशूर फॉर्मूला इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती जाएं। फिलहाल नजर त्रिशूर और पलक्कड़ पर है।
त्रिशूर में BJP जीती और पलक्कड़ में उसे 24% वोट मिले। पार्टी कैंडिडेट सी. कृष्णकुमार तीसरे नंबर पर रहे। 2019 के मुकाबले 2024 में BJP को केरल में 4% ज्यादा, यानी 16.8% वोट मिले हैं। NDA को 19.4% वोट मिले।
केरल में RSS की तैयार जमीन पर सरकार कैसे अपनी योजनाएं लागू करे, जिससे वोटर्स का झुकाव पार्टी की तरफ हो। वहां के BJP नेताओं की केंद्र में भूमिका बढ़े ताकि वोटर्स को लगे कि BJP से जुड़े तो उनकी आवाज केंद्र तक पहुंचाई जाएगी।
केरल में BJP और RSS वर्कर्स को टारगेट किया जाता रहा है। दावा है कि BJP के 300 से ज्यादा वर्कर्स की हत्या की गई है। इसलिए वोटर्स के दिमाग में साफ है कि अगर इन्हें वोट दिया भी तो कोई फायदा नहीं।
RSS का मानना है कि कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगैंडा खत्म करने और BJP को ताकतवर दिखाने के लिए सेंट्रल लीडरशिप को केरल में दखल देना होगा। केरल के नेताओं को केंद्र में तवज्जो देनी होगी।
5. RSS वर्कर्स को मैसेज- सत्ता के सुख में न डूबें
समन्वय बैठक में RSS के कार्यकर्ताओं को भी मैसेज दिया जाएगा कि वे सत्ता के सुख में न डूबें। दरअसल RSS के कार्यकर्ताओं की शिकायतें आ रही हैं कि वे सत्ता की ताकत का फायदा उठा रहे हैं। कई संगठन मंत्रियों के खिलाफ भी शिकायतें हैं। बैठक में UP और हरियाणा के संगठन मंत्री बदलने पर फैसला होगा। जिन्हें बदला नहीं जाएगा, उन्हें चेतावनी दी जाएगी।
6. सहयोगी संगठनों को मिलेगा एक साल का टारगेट
बैठक में RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सभी 6 सह सरकार्यवाह समेत राष्ट्रीय पदाधिकारी शामिल होंगे। राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, विश्व हिंदू परिषद, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती, भारतीय मजदूर संघ सहित 32 संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, संगठन मंत्री और प्रमुख पदाधिकारी भी आएंगे।
इस दौरान RSS की शाखाओं के विस्तार और सभी संगठनों के कामकाज की समीक्षा होगी। संगठनों के लिए अगले एक साल का लक्ष्य तय होगा।
लोकसभा चुनाव में RSS के मुद्दों को इग्नोर किया, इससे बढ़ी दूरी
लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद RSS और BJP के बीच बढ़ी तल्खी पर दैनिक भास्कर ने रिपोर्ट की थी। सोर्स से पता चला कि चुनाव से पहले RSS ने BJP को मुद्दों की एक लिस्ट सौंपी थी।
रिपोर्ट में कहा गया था कि विपक्ष पर ED-CBI की कार्रवाई करने और उसे लुटेरा बताने की जगह अपने अचीवमेंट्स गिनाना चाहिए। ऐसे नैरेशन गढ़ने चाहिए कि देश की सुरक्षा, दुनियाभर में सम्मान और हिंदुत्व की पहचान के साथ अगर कोई पार्टी खड़ी है, तो वो BJP है।
नेशनल और इंटरनल सिक्योरिटी के मुद्दे पर सरकार के पास कई उपलब्धियां हैं। RSS की सलाह थी कि इन उपलब्धियों पर तथ्यों के साथ बात करें। ग्राउंड में जनता इन मुद्दों को सुनना भी चाहती है। इंटरनेशनल लेवल पर बनी इमेज पर बात करने की जरूरत है, क्योंकि हम इस पर रिपोर्ट कार्ड भी दे सकते थे।
वे मुद्दे, जिनकी वजह से RSS और BJP के बीच खाई पैदा होती गई…
1. राममंदिर पर RSS की हर सलाह किनारे करना भारी पड़ा
RSS के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, ‘राम मंदिर के मामले में BJP ने RSS की बात सुननी बंद कर दी थी। शुरुआत चंपत राय पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप से हुई थी। RSS ने चंपत राय को चित्रकूट की प्रतिनिधि सभा में बुलाया और सख्त चेतावनी भी दी। इसके बाद BJP ने राम मंदिर का मसला सीधा अपने हाथ में ले लिया। RSS की सलाह पर ध्यान देना भी जरूरी नहीं समझा।’
2. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को राजनीतिक नहीं, राष्ट्रीय आंदोलन बनाना था
इस मसले पर RSS ने BJP से सीधे बात की थी। उसका मानना था कि राम मंदिर राजनीतिक आंदोलन नहीं है। इस पर राजनीति से बचना चाहिए। ये हिंदुत्व का मुद्दा है। लोगों की आस्था है। अगर जनता को लगा कि राम मंदिर पर राजनीति हो रही है, तो वो BJP से दूर हो जाएगी। RSS की इस सलाह को भी नहीं माना गया। इसका असर ये हुआ कि BJP अयोध्या की सीट भी नहीं बचा पाई।
3. ED-CBI की सरकार नहीं चाहता था RSS
RSS लगातार ये बात BJP तक पहुंचा रहा था कि चुनाव में ED-CBI का इस्तेमाल न करें। इससे एक तबका विपक्ष को विक्टिम मान रहा है। BJP की छवि प्रताड़ित करने वाले तानाशाह की बन रही है। विपक्ष को इसका फायदा मिलेगा। ग्राउंड पर हमारे कार्यकर्ता इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे हैं। वे डिफेंसिव हो रहे हैं। BJP ने इस चेतावनी को भी इग्नोर किया।
4. RSS ने BJP से कहा था- वाशिंग मशीन मत बनो
RSS ने BJP की वाशिंग मशीन वाली छवि पर भी चेतावनी दी थी। पार्टी ऐसे नेताओं को शामिल कर रही थी, जिन पर करप्शन के आरोप थे। RSS ने बताया था कि ग्राउंड पर ये मुद्दा BJP को नुकसान पहुंचा रहा है। विपक्ष की छवि विक्टिम की बन रही है। राहुल गांधी लगातार BJP के सताए नेता के तौर पर सामने आ रहे हैं। हालांकि, एक बार फिर BJP अड़ी रही। RSS की सलाह ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
5. UP में टिकट बंटवारे पर सहमत नहीं था RSS
चुनाव में UP ने BJP को बड़ा झटका दिया है। इस झटके को RSS ने टिकट बंटवारे के वक्त ही भांप लिया था। RSS ने 10 से ज्यादा सीटों पर कैंडिडेट पर असहमति जताई थी। इनमें प्रतापगढ़, श्रावस्ती, कौशांबी, रायबरेली और कानपुर जैसी सीटें शामिल थीं। कानपुर के अलावा सभी सीटों पर BJP कैंडिडेट की हार हुई है।
RSS का कहना था कि कुछ सांसदों को छोड़कर, हमें नए लोगों को टिकट देना चाहिए, जैसा दिल्ली में किया है। हालांकि, टिकट बंटवारे के मामले में भी RSS बेबस ही दिखा।
6. मोदी सरकार और मोदी की गारंटी जैसे स्लोगन RSS को नापसंद
मोदी सरकार के नारे से RSS 2014 से ही नाराज है। ये नारा RSS की आइडियोलॉजी में फिट नहीं बैठता। RSS व्यक्ति को नहीं, संगठन या समूह को तरजीह देता है। मोदी सरकार के नारे से एक व्यक्ति सर्वोपरि दिखाई देता है।
अब इस पर चर्चा हो रही है कि क्या चुनाव में मोदी को सर्वोपरि मानना बड़ी गलती थी।
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