29 नवंबर 2024 को कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रम्प से मिले। डिनर टेबल पर ट्रम्प ने कहा कि कनाडा को अमेरिका का ’51वां राज्य’ बन जाना चाहिए। इस मुलाकात से जुड़ी पोस्ट में भी ट्रम्प ने कनाडा के पीएम को ‘गवर्नर ट्रूड
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पिछले दो दिनों में ट्रम्प ने अपने एक्सपैंशन प्लान में दो नए नाम जोड़े हैं- दुनिया के सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड और सबसे व्यस्त व्यापारिक रूट में से एक पनामा नहर। ट्रम्प ने कहा कि नेशनल सिक्योरिटी और कमर्शियल इंट्रेस्ट के लिए ये दोनों अमेरिका के कंट्रोल में होना बेहद जरूरी है।
ग्रीनलैंड, कनाडा और पनामा पर ट्रम्प ने ऐसे बातें क्यों की, क्या है उनकी ‘ग्रेटर अमेरिका’ पॉलिसी और इसके लिए ट्रम्प किस हद तक जा सकते हैं; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
ट्रंप ने टर्निंग पॉइंट एक्शन की एनुअल कॉन्फ्रेंस में हजारों कंजर्वेटिव एक्टिविस्ट के सामने पनामा नहर पर कब्जा करने की बात की।
सवाल-1: ट्रम्प ने ये बातें मजाक में कही हैं या वो इसे लेकर सीरियस हैं?
जवाब: डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर ऐसी बातें लिखी हैं, जिन पर आसानी से भरोसा नहीं होता। इसलिए कुछ लोगों को ये बातें मजाक लग रही हैं। लेकिन कई एक्सपर्ट्स का मानना हैं कि इसबार ट्रम्प इन बातों को लेकर सीरियस हैं।
डेनमार्क के रॉयल डेनिश डिफेंस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर मार्क जैकबसन के मुताबिक,
ट्रम्प के इस बयान पर डेनमार्क ने नाराजगी जाहिर की है। लेकिन, लंबे समय से आजादी की मांग कर रहे ग्रीनलैंड के लोग ट्रम्प की इच्छा का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका के साथ इकोनॉमिक रिलेशंस और मजबूत कर सकते हैं।
अमेरिकी विदेश अधिकारी रहे और अटलांटिक काउंसिल के सीनियर फेलो डेविड एल. गोल्डविन के मुताबिक,
ग्रीनलैंड में काफी नेचुरल रिसोर्सेस हैं। इनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक व्हीकल, विंड टर्बाइन जैसी टेक्नोलॉजी में किया जाता है।
लेकिन विदेश मामलों के जानकार और JNU के प्रोफेसर राजन कुमार मानते हैं कि ट्रम्प ने ये बातें मजाक में कही हैं और ऐसा वह पहले भी कर चुके हैं। राजन कुमार कहते हैं,
ट्रम्प के बयान को वही मतलब नहीं होता है जो वह बोलते हैं। कनाडा पर ट्रम्प का बयान मजाकिया है और अमेरिकी इंफ्लुएंस को बढ़ाने के लिए है। इन बयानों को ट्रम्प के बड़बोलेपन के तौर पर देखना चाहिए।
सवाल-2: ग्रीनलैंड में आखिर ऐसा क्या है, जिस पर अमेरिका दशकों से नजर गड़ाए बैठा है?
जवाबः अमेरिका के लिए ग्रीनलैंड सिक्योरिटी और इकोनॉमी के मोर्चे पर काफी अहम है। दरअसल, ग्रीनलैंड में अमेरिका का मिलिट्री बेस है और यहां दुर्लभ नेचुरल रिसोर्सेस भी मौजूद हैं। नॉर्थ अटलांटिक सागर में मौजूद ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बड़ा आईलैंड है। इसकी स्ट्रेटजिक पोजिशन के कारण रूस, अमेरिका जैसे कई देश इस पर कंट्रोल करने की होड़ में लगे रहते हैं।
डेनमार्क की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक, 18वीं शताब्दी से लेकर 1979 तक इस आईलैंड पर डेनमार्क का शासन था। अब यह सेल्फ-रूल्ड यानी स्वशासित है, खासकर स्थानीय मामलों में। यानी ग्रीनलैंड स्वशासित है, लेकिन ऊपरी तौर पर यहां डेनमार्क का कब्जा है।
ट्रम्प ने कहा कि ग्रीनलैंड को कंट्रोल में लेने का मकसद नेशनल सिक्योरिटी है। दरअसल, यहां अमेरिकी मिलिट्री का एक बेस है। अमेरिकी स्पेस फोर्स के मुताबिक इस बेस का नाम पिटफिक स्पेस बेस है, जो मिसाइल डिफेंस और स्पेस सर्विलांस के लिए स्ट्रेटजिक लोकेशन है। यानी अमेरिका के लिए ये बेस काफी अहम है। ये बेस कोल्ड वॉर के शुरुआती वक्त में बनाया गया था।
23 दिसंबर को ट्रम्प ने सोशल मीडिया ‘ट्रूथ’ पर ग्रीनलैंड में एंबेस्डर की नियक्ति का एलान करते हुए लिखा कि दुनिया में नेशनल सिक्योरिटी और आजादी के लिए ग्रीनलैंड पर अमेरिका कंट्रोल होना बेहद जरूरी है।
23 दिसंबर को ट्रम्प ने सोशल मीडिया ‘ट्रूथ’ पर अमेरिका को ग्रीनलैंड पर कंट्रोल करने के बात की।
ट्रम्प के बयान पर पलटवार करते हुए ग्रीनलैंड के पीएम म्यूट बी एगेडे ने एक बयान में कहा,
ग्रीनलैंड हमारा है। हम बिकाऊ नहीं हैं और न कभी बिकाऊ होंगे। हमें आजादी के लिए अपने लंबे संघर्ष को नहीं खोना चाहिए।
ग्रीनलैंड को लेकर ट्रम्प का इंट्रेस्ट कोई नई बात नहीं है। उन्होंने 2017 से 2021 तक के अपने पहले कार्यकाल में इस इलाके को कंट्रोल में लेने की इच्छा जाहिर की थी। 2019 में भी ट्रम्प ने ग्रीनलैंड खरीदने के संकेत दिए थे।
ट्रम्प इस मामले को उठाने वाले पहले राष्ट्रपति नहीं हैं। 1860 के दशक में राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन के एडमिनिस्ट्रेशन ने ग्रीनलैंड पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसके मुताबिक, ग्रीनलैंड के नेचुरल रिसोर्सेस इसे एक स्ट्रेटजिकल इन्वेस्टमेंट बना सकते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूर्व राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन ने ग्रीनलैंड के लिए 100 मिलियन डॉलर की पेशकश की थी।
2019 में द वाशिंगटन पोस्ट ने अनुमान लगाया था कि ग्रीनलैंड की खरीद में करीब 1.7 ट्रिलियन डॉलर खर्च हो सकते हैं।
सवाल-3: पनामा नहर पर कंट्रोल से ट्रम्प क्या हासिल करना चाहते हैं?
जवाबः 22 दिसंबर को एरिजोना में एक कार्यक्रम में ट्रम्प ने पनामा नहर का मुद्दा उठाया। ट्रम्प ने कहा,
पनामा अमेरिकी जहाजों से बहुत ज्यादा टैक्स लिया जा रहा है, जो गलत है। पनामा नहर अमेरिका को वापस कर दी जाए।
23 दिसंबर को ट्रम्प ने सोशल मीडिया ‘ट्रूथ’ पर अमेरिकी फ्लैग के साथ पनामा नहर की एक तस्वीर साझा की और लिखा ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ कैनाल में आपका स्वागत है।’
पलटवार करते हुए पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा कि पनामा नहर और आसपास का इलाका पनामा का है और पनामा का ही रहेगा।
दरअसल, अमेरिका का बिजनेस पनामा नहर पर निर्भर है। हर साल पनामा नहर से 14 हजार से ज्यादा जहाज गुजरते हैं। ग्लोबल ओशन बिजनेस में इस जलमार्ग का 2.5% हिस्सा है। अमेरिका के 40% कंटेनर यहीं से गुजरते हैं। ये नहर अमेरिकी बिजनेस को एशिया से जोड़ती है।
82 किलोमीटर लंबी ये नहर पनामा से होते हुए प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर को जोड़ती है। इसके कारण शिपिंग में कई दिनों और किलोमीटर का सफर कम होता है। इन वजहों से ट्रम्प पनामा नहर पर कंट्रोल करना चाहते हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, एक निजी वजह से भी ट्रम्प पनामा नहर पर कंट्रोल की बात कर रहे हैं। दरअसल, 2018 में पनामा पुलिस के दबाव में ट्रम्प को पनामा सिटी में मौजूद ओशन क्लब इंटरनेशल होटल और टॉपर से अपना दावा छोड़ना पड़ा था।
1904 से 1914 के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट ने ही पनामा नहर बनवाई थी। 1999 में अमेरिका ने इसे पनामा को दे दिया था। तब से यहां पनामा सरकार का कंट्रोल है।
फ्लोरिडा से रिपब्लिकन पार्टी के रिप्रेजेंटेटिव कार्लोस गिमेनेज का कहना है कि ट्रम्प का पनामा को लेकर बयान भले ही थोड़े अजीब हैं, लेकिन इसे गंभीरता से लेना चाहिए, ये पनामा के लिए खतरे की घंटी है।
विदेशी मामलों के जानकार राजन कुमार कहते हैं,
पनामा नहर पर कंट्रोल से ट्रम्प घुसपैठ और इकोनॉमिक ट्रेड्स को काबू करना चाहते हैं।
सवाल-4: कनाडा को अमेरिका का 51वां स्टेट क्यों बनाना चाहते हैं ट्रम्प?
जवाबः नवंबर में फ्लोरिडा के मार-ए-लागो एस्टेट में कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो और डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका में हो रही घुसपैठ को लेकर बातचीत की। लेकिन डिनर टेबल पर ट्रम्प ने मजाक करते हुए ट्रूडो से कहा कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बना दिया जाए।
10 दिसंबर को ट्रम्प ने सोशल मीडिया ‘ट्रूथ’ पर एक पोस्ट करते हुए जस्टिन ट्रूडो को ‘कनाडा स्टेट के गवर्नर’ कहा।
नवंबर में ट्रूडो और ट्रंप ने साथ में डिनर किया था, जिस पर 10 दिसंबर को ट्रंप ने पोस्ट की।
18 दिंसबर को डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर लिखा कि पड़ोसी कनाडा अमेरिका के 51वें राज्य के तौर पर जुड़ सकता है। सोशल मीडिया ट्रूथ पर उन्होंने लिखा, ‘कई कनाडाई चाहते हैं कि कनाडा 51वां राज्य बने। वे करों और सैन्य सुरक्षा पर भारी बचत करेंगे।‘
18 दिंसबर को ट्रंप ने पोस्ट में लिखा कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाना अच्छा विचार है।
इस ट्रूडो के सलाहकार रहे गेराल्ड बट्स ने कहा, ‘ट्रम्प एक मुक्केबाज की तरह हैं, जो कट पर काम कर रहे हैं।’ यानी ट्रम्प कनाडा की कमजोरी को भांपते हुए उस पर अटैक कर रहे हैं। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो राजनीतिक संकट और पीएम की कुर्सी की कशमकश में फंसे हैं।
ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर मैक्स कैमरून के मुताबिक,
ट्रम्प इससे कनाडा सरकार पर दवाब बना रहे हैं, जिससे वे अमेरिकी नीतियों पर सहमत हो और समर्थन करें।
फॉक्स न्यूज के मुताबिक, ‘ट्रम्प को लगता है कि कनाडा के अमेरिका में शामिल होने से ड्रग्स तस्करी और अवैध प्रवास यानी घुसपैठ पर रोक लग जाएगी।’
सवाल-5: अमेरिका का एक्सपैंशन कर ‘ग्रेटर अमेरिका’ बनाने वाली ट्रम्प की पॉलिसी क्या है?
जवाबः अगर पनामा नहर, कनाडा और ग्रीनलैंड पर अमेरिका का कंट्रोल होता है, तो अमेरिका से ‘ग्रेटर अमेरिका’ देखने को मिलेगा। दरअसल, ऐसा होने से अमेरिका का क्षेत्रफल इतना बढ़ जाएगा कि वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन जाएगा। साथ ही अमेरिका का बिजनेस बढ़ेगा और उसकी इकोनॉमी मजबूत होगी।
नवंबर में कनाडाई पीएम ट्रूडो ने डोनाल्ड ट्रंप के साथ डिनर किया था। इसकी तस्वीर ट्रूडो ने सोशल मीडिया पर शेयर की थी।
ट्रम्प ने एक इंटरव्यू में कहा है कि वर्ल्ड पर्सपेक्टिव में उनकी सोच नियम-कायदों से चलने वाले लोगों से बहुत अलग है। उनके दूसरे टर्म की प्लानिंग के मुकाबले पहला टर्म तो पार्क में घूमने जैसा था। यानी ट्रम्प अपनी विस्तारवादी सोच और अमेरिका फर्स्ट की पॉलिसी के लिए दूसरे टर्म में किसी भी रूल्स एंड रेगुलेशन की फिक्र नहीं करेंगे।
चीन में जर्मनी के एंबेस्डर रहे माइकल शेफर का कहना है कि WTO जैसे ओर्गनाइजेशंस को ट्रम्प ज्यादा भाव नहीं देते हैं। उनका मानना है कि इनमें होने वाले समझौते और काम केवल समय की बर्बादी है। वे अपने बनाए रूल्स को मानते हैं।
लेकिन JNU के प्रोफेसर राजन कुमार मानते हैं कि ग्रेटर अमेरिका’ जैसा कोई पॉलिसी नहीं है। वे कहते हैं,
ट्रम्प के पास ग्रेटर अमेरिका को लेकर कोई प्लान नहीं है। हालांकि वे अमेरिका के इन्फ्लुएंस और टैरिफ को बढ़ाना चाहते हैं। ट्रम्प अमेरिका के बिजनेस और मिलिट्री को देश में ही रखना चाहते हैं। ट्रम्प आइसोलेशन की पॉलिसी को मानते हैं न कि एक्सपेंशन की पॉलिसी को।
सवाल-6: अपने विस्तारवादी प्लान के लिए ट्रम्प किस हद तक जा सकते हैं?
जवाबः अमेरिका के दोनों ही सदनों में डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी मजबूत है। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की 100 में से 53 और सीनेट की 435 में से 220 सीटों पर रिपब्लिकंस काबिज हैं। यानी बहुमत रिपब्लिकन को है। ऐसे में अगर ट्रम्प किसी देश को कंट्रोल में लेने का प्रस्ताव लाते हैं तो वे उसे पास करा सकते हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि ट्रम्प बेहतर ऑर्गनाइजेशन, बेहतर स्टाफ और बेहतर एडमिनिस्ट्रेशन के साथ सत्ता में आएंगे। साथ ही पिछली बार के मुकाबले रिपब्लिकन पार्टी और अमेरिका पर अपना दबदबा कायम करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे।
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ट्रम्प किसी भी देश के बॉर्डर पर उसकी संप्रभुता नहीं मानते हैं। जब रूस ने यूक्रेन की सीमा में घुसकर उसके इलाकों पर कब्जा किया, तब ट्रम्प ने रूस की निंदा के बजाय उसकी तरफदारी की। उन्होंने इसे पुतिन का असरदार कदम बताया था। वहीं ट्रम्प यूक्रेन के बॉर्डर बहाल करने के बजाय समझौते की मांग कर रहे हैं।
लंदन में रहने वाले वकील ऋषभ भंडारी अपने आर्टिकल में लिखते हैं,
ट्रम्प ने हमेशा ग्रेटर अमेरिका को लेकर कड़े कदम उठाएं हैं। वे हर जगह अमेरिका का डोमिनेंस चाहते हैं। ट्रम्प अपने नए कार्यकाल में और ज्यादा रूढ़िवादी एजेंडा आगे बढ़ा सकते हैं। वे बड़े डिसीजन लेने से पीछे नहीं हटेंगे।
लेकिन BHU में यूनेस्को चेयर फॉर पीस प्रोफेसर प्रियांकर उपाध्याय मानते हैं कि अमेरिका की ऐसी स्थिति नहीं है कि वो किसी पर कब्जा करे। वे कहते हैं, ‘ट्रम्प बयानों में कुछ भी बोलते हैं, लेकिन जब बात एडमिनिस्ट्रेशन और पॉलिटिक्स की आती है तो उनका नजरिया अलग हो जाता है। ट्रम्प ये नहीं चाहेंगे कि अमेरिकी आर्मी किसी युद्ध में शामिल हो। साथ ही अमेरिकी इकोनॉमी अभी खतरे में है। ऐसे में ट्रम्प किसी देश पर कब्जा करना नहीं चुनेंगे।’
प्रोफेसर प्रियांकर उपाध्याय कहते हैं,
सत्ता में आने के बाद ट्रम्प इन बयानों पर कितना काम करेंगे, इस पर संदेह है। द्वितीय महायुद्ध के बाद अमेरिका को मात ही मिली है। जैसे वियतनाम और मिडिल ईस्ट में अमेरिका को नुकसान हुआ। कभी-कभी ट्रम्प बिना सोचे-समझे ऐसे बयान दे देते हैं। उन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।
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रिसर्च सहयोग: आयुष अग्रवाल
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