विधानसभा चुनाव से पहले CM नीतीश कुमार प्रगति यात्रा पर हैं। शुरू होने से पहले ही यात्रा के नाम पर बवाल हो गया। CM पहले महिला संवाद यात्रा पर निकलने वाले थे। बवाल के बाद यात्रा का नाम और तारिख दोनों बदल गए। 15 दिसंबर से शुरू होने वाली महिला संवाद यात्
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फर्स्ट फेज में नीतीश कुमार 4 जिलों पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी और शिवहर में अपनी यात्रा पूरी कर चुके हैं। इस फेज में दो जिले मुजफ्फरपुर और वैशाली में जाना था लेकिन पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के निधन के अब CM यहां 5 और 6 जनवरी को जाएंगे।
नीतीश कुमार की यात्रा के 3 बड़े इम्पैक्ट
1. दलितों के बिखराव को समेटने की कोशिश
CM नीतीश कुमार ने अपनी यात्रा की शुरुआत पश्चिम चंपारण के थरुअट क्षेत्र से की है। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में थारु जाति को ओबीसी से जनजाति का दर्जा दिए जाने के बाद ये NDA का कोर वोट बैंक माना जाता है। इसी तरह मोतिहारी या शिवहर में नीतीश कुमार के कार्यक्रम के लिए दलित या महादलित आबादी वाले गांव को चुना गया।
नीतीश के इस सेलेक्शन पर पॉलिटिकल एनालिस्ट अरुण कुमार पांडेय बताते हैं, “इस यात्रा में नीतीश कुमार दलित, महादलित और अतिपिछड़ा तीनों वर्ग को टारगेट करने की कोशिश कर रहे हैं। वह इस बात को अच्छे से समझ रहे हैं कि पिछली बार बेहतर काम करने के बाद भी वे तीसरे नंबर पर पहुंच गए थे। इस बार वे इसे रिकवर करना चाहते हैं। इसके लिए वे किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं।”

जब सीएम दलित गांव में जाते हैं तो वहां न केवल गांव की तस्वीर बदलती है, बल्कि इसका मैसेज पूरे वर्ग में जाता है। यही कारण है कि चुनाव से पहले वे सरकारी खर्चे पर दलितों, महादलितों और आदिवासियों के इलाके में जा रहे हैं।
2. महिलाओं को मैसेज- नीतीश ने ही उनका भला किया
बिहार में लगातार महिलाओं की वोटिंग का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। पिछले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के ट्रेंड बता रहे हैं कि चुनाव में महिलाएं निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। यही कारण है कि उनके लिए लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। राजद ने मौके की नजाकत को समझते हुए पहले ही महिलाओं के लिए घोषणाएं कर दी है।
बिहार में 2010 के चुनाव से ही महिलाएं नीतीश कुमार को अपना नेता मानते आ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार भोला नाथ कहते हैं, “विवाद के बाद सीएम ने भले इस यात्रा का नाम बदल दिया हो, लेकिन उनका फोकस महिलाएं ही हैं। पिछले कुछ चुनाव से महिलाओं का वोटिंग पर्सेटेज पुरुषों की तुलना में ज्यादा रहा है।”

अगर आंकड़ों की देखें तो 2019 से लेकर 2024 तक के चुनाव तक बिहार में एवरेज वोटिंग पर्सेटेज देखें तो पुरुषों की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने वोटिंग में हिस्सा लिया है। इन सभी चुनावों में उस गठबंधन को फायदा हुआ है। जिसके साथ नीतीश कुमार रहे हैं।
3. NDA को इंटैक्ट रखने की कोशिश
नीतीश कुमार ने अपनी यात्रा की शुरुआत हर बार की तरह इस बार भी पश्चिम चंपारण से किया है, लेकिन इस बार यात्रा का रूट मैप NDA के गढ़ से होकर गुजर रहा है। फर्स्ट फेज में नीतीश कुमार की यात्रा जिन 7 जिलों से गुजर रही हैं, वो NDA का गढ़ है। इन सातों जिलों में विधानसभा की कुल 49 सीटें हैं। इनमें लगभग 65 फीसदी यानी 32 सीटों पर NDA का कब्जा है। पश्चिम चंपारण की तो 9 में से 8 सीटों पर NDA के विधायक हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय कहते हैं-

2020 विधानसभा चुनाव में केवल चिराग पासवान के कारण ही नीतीश की जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी। जदयू के लगभग 35-40 कैंडिडेट चिराग की LJP के कारण हार गए थे। लेकिन बार वह भी नीतीश फर्स्ट कह रहे हैं। इनके अलावा उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी को भी NDA के साथ जोड़ा है।

26 दिसंबर को CM नीतीश कुमार ने शिवहर की यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने 187 करोड़ रुपए की लागत से 231 योजनाओं का उद्घाटन एवं शिलान्यास किया था।
20% आबादी पर हर पार्टी की नजर
बिहार सरकार के जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट की मानें तो बिहार में अत्यंत पिछड़ा की आबादी 36 फीसदी, पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी 19 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.68 फीसदी है।
विधानसभा चुनाव में इसी 20 आबादी पर हर पार्टी की नजर है। एक तरफ जहां कांग्रेस संविधान और अंबेडकर के मुद्दे के सहारे इस वोट को हासिल करना चाहती है तो दूसरी तरफ बिहार में पहली बार चुनाव लड़ रहे प्रशांत किशोर भी इस वोट बैंक में सेंधमारी करना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्होंने अपनी पार्टी का पहला अध्यक्ष भी दलित को ही बनाया है।
दलितों का एक चंक पहले ही रामविलास पासवान के साथ एकजुट रहा है। उनके निधन के बाद चिराग पासवान उनके नेता बन गए हैं। मौजूदा बिहार में चिराग पासवान को दलित के 6.5 फीसदी वोट की गारंटी मानी जाती है। जीतन राम मांझी खुद को दलित का नेता जरूर बताते हैं, लेकिन 1 फीसदी से ज्यादा वोट का समर्थन उन्हें नहीं मिल पाता है।

अब समझिए, नीतीश 2010 को कैसे दोहराना चाहते हैं
दरअसल, 2010 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू बिहार की सबसे पार्टी थी। 22.6 फीसदी वोट शेयर के साथ इन्हें 115 सीटे मिलीं थी। अब लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर से नीतीश कुमार की उम्मीद को बढ़ा दिया है।
40 लोकसभा के भीतर पड़ने वाले सभी 243 विधानसभा सीटों के परिणाम के मुताबिक, 74 विधानसभा सीटों पर जदयू को बढ़त है। वहीं, भाजपा 68 तो राजद मात्र 35 सीटों पर बढ़त बना पाई है। जदयू के नेता अपनी हर मीटिंग में इस बात को दोहरा रहे हैं। यही कारण है कि पॉलिटिक्स से अपने रिटायरमेंट के पहले नीतीश कुमार एक बार फिर से जदयू को राज्य की तीसरे नंबर की पार्टी से सबसे बड़ी पार्टी बनाने के अभियान में जुट गए हैं।
चुनाव से ठीक 10 महीने पहले सीएम की इस यात्रा पर सरकार के खजाने से लगभग 250 करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है। इसको लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने निशाना भी साधा है।
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बेतिया में यात्रा के दौरान सीएम से मिलने की कोशिश में JDU के 3 नेता एक-एक कर गिर पड़े। इस पूरे वाकये का वीडियो भी सामने आया है।
वीडियो में दिख रहा है कि सीएम नीतीश हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी भी उनके साथ हैं। इस दौरान जदयू के कुछ नेता सीएम नीतीश से मिलने के लिए आगे बढ़ते हैं। लेकिन बांस से बैरिकेडिंग की हुई थी, और जमीन भी ऊंची-नीची थी। पूरी खबर पढ़ें