गोपाल भार्गव के बाद मंत्री राजपूत पहुंचे पार्टी दफ्तर
.
भाजपा में जिलाध्यक्षों के नामों को हरि झंडी मिलने से पहले विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा। खासतौर पर सागर और धार जिले में नेताओं के अलग-अलग गुटों ने दबाव बना दिया है कि इनमें दो जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हो। सागर में तो नेताओं ने विधानसभाएं भी बांट दीं।
सभी ने पार्टी हाईकमान को कहा है कि रेहली, देवरी और बंडा विधानसभाओं को मिलाकर एक जिलाध्यक्ष नियुक्त हो और बाकी पांच विधानसभाओं सागर, खुरई, बीना, नरयावली और सुरखी का अलग जिलाध्यक्ष रखा जाएगा। सूत्रों का कहना है कि एक दिन पहले पूर्व मंत्री व सबसे सीनियर विधायक गोपाल भार्गव पार्टी दफ्तर पहुंचे थे। शनिवार को खाद्य मंत्री गोविंद सिंह राजपूत भी संगठन के नेताओं से मिले। प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ उनकी बात हुई।
राजपूत ने मुलाकात को रूटीन बताते हुए कहा कि अभी संगठन चुनाव चल रहे हैं तो थोड़ी बात संगठन की भी हुई। थोड़ी बात सागर कि भी हुई। राजपूत से पूछा गया कि सागर में जिलाध्यक्ष को लेकर विरोध चल रहा है। पूर्व मंत्री भार्गव भी आकर शीर्ष नेताओं से मिले। इस पर मंत्री ने कहा कि जो भी पार्टी करेगी वो अच्छा करेगी और आपको अच्छा ही देखने को मिलेगा।
यहां बता दें कि सागर में मंत्री राजपूत के साथ-साथ पूर्व मंत्री भार्गव व भूपेंद्र सिंह, विधायक शैलेंद्र जैन भी अपने व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनाने की ताकत लगा रहे हैं।
पार्टी के सूत्रों का यह भी कहना है कि 60 संगठनात्मक जिलों में से 20 से अधिक जिलों में वर्तमान जिलाध्यक्ष रिपीट होने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। इसके कारण भी जिलाध्यक्षों की लिस्ट के फाइनल होने में असमंजस की स्थिति बनी है। हालांकि यह भी बताया गया कि 30 से अधिक जिलों में एक नाम पर सहमति बन गई है।
भोपाल में जातिगत गणित उलझा भोपाल में मौजूदा जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी के साथ जातिगत गणित भी जोर पकड़ रहा है। पचौरी को एक तरफ स्थानीय नेताओं का साथ मिल रहा है तो दूसरी तरफ ओबीसी वर्ग से रविंद्र यती, जगदीश यादव और सुरजीत सिंह ने बड़ी दावेदारी पेश कर दी है। इसके अलावा सामान्य वर्ग से पचौरी के साथ विकास वीरानी, आरके बघेल, राम बंसल, अनिल अग्रवाल हैं तो महिलाओं में वंदन परिहार, वंदना जाचक के नाम हैं। दलित वर्ग से किशन सूर्यवंशी व बारेलाल अहिरवार के नाम हैं।
दिल्ली ने नेताओं से कहा-क्राइटेरिया का सख्ती से पालन करें पार्टी के नेताओं का कहना है कि दिल्ली ने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में क्राइटेरिया का सख्ती से पालन करने की बात कही है। संभावना है कि 60 वर्ष से अधिक का व्यक्ति जिलाध्यक्ष नहीं बनाया जाए। रिपीट करते समय भी पूरी कोशिश हो कि आम सहमति से ही निर्णय हो। विधायकों और सांसदों की राय को पूरी अहमियत मिले।