Wednesday, June 18, 2025
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IIT इंदौर ने खोजा ऐसा कंपाउंड: जो हर तरह की टीबी के उपचार में कारगर, स्वदेशी दवा निर्माण में मिलेगी मदद – Indore News



आईआईटी इंदौर ने ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के उन प्रकारों के निवारण की दवा खोज ली, जिन पर कोई दवा काम नहीं करती। केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश चेल्वम और बायो साइंस एंड सीओ मेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर अविनाश सोनवाणे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने ड्

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दुनिया के आधे से ज्यादा टीबी के मामले भारत में हैं। ऐसे में आईआईटी इंदौर द्वारा बनाया गया कंपाउंड इन बैक्टीरिया द्वारा बनाई जाने वाली सुरक्षा परत को बनने से रोकता है, जिससे उक्त बैक्टीरिया की आसानी से मौत हो सकती है। इस विशेष सुरक्षा परत को (एमए) माइकोलिक एसिड कहते हैं। एमए की यह परत बैक्टीरिया के जीवित रहने के लिए जरूरी है। टीम ने बताया इन कंपाउंड से बीमारी पर होने वाले खर्च में कमी आएगी और स्वदेशी दवा निर्माण में मदद मिल सकेगी।

चूहों पर चल रही है इसकी टेस्टिंग
आईआईटी द्वारा तैयार की गई इस दवा को बैक्टीरिया कल्चर पर टेस्ट किया है। इसके परिणाम आशाजनक रहे हैं। बीमारी वाले बैक्टीरिया को मारते हुए उन्होंने सैंपल में मौजूद इम्युनिटी बढ़ाने वाले सेल्स को कोई हानि नहीं पहुंचाई। इन कंपाउंड्स ने टीबी के उन प्रकारों को भी खत्म किया, जिन पर आइसोनियाजिड जैसी दवा ने काम करना बंद कर दिया। वर्तमान में इनमें से सबसे बेहतरीन कंपाउंड्स की टेस्टिंग चूहों पर की जा रही है, जिसका उद्देश्य एमडीआर और एक्सडीआर-टीबी के उपचार में सुधार करना है। जिस प्रक्रिया से ये कंपाउंड बनाए गए हैं, उस प्रक्रिया को भारत और यूएस दोनों में पेटेंट मिल चुका है।

अधिकांश एंटी-टीबी दवाएं निरर्थक हो जाती हैं
दुनिया में हर साल टीबी से 1.5 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है, लेकिन आजकल टीबी के ऐसे-ऐसे प्रकार आ रहे हैं, जो मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट (एमडीआर) और एक्स्ट्रीमली ड्रग-रेसिस्टेंट (एक्सडीआर) हैं। इस प्रकार की टीबी होने पर अधिकांश एंटी-टीबी दवाएं निरर्थक हो जाती हैं।

इंदौर में पिछले साल शुरुआती ढाई माह में टीबी के 1500 से ज्यादा नए मरीज आए थे
इंदौर में पिछले साल शुरुआती ढाई महीने में 1500 से ज्यादा नए टीबी मरीज आए थे। वहीं शहर में साल 2015 से 2022 की बात करें तो हर साल औसत 8 हजार नए मरीज आए हैं। ज्यादातर केस में मरीज को भर्ती नहीं किया जाता। घर पर रहकर ही दवाई दी जाती है। नियमित उपचार लें तो 90 फीसदी से ज्यादा मरीज ठीक हो जाते हैं।



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