बाल विवाह के बाद अब नाबालिगों के लिव इन रिलेशन बड़ी चुनौती बन गए हैं। दिसंबर और जनवरी में ही ऐसे चार मामले सामने आए हैं। एक मामले में हाई कोर्ट ने भी इस पर चिंता व्यक्त की। लिव इन में रहने के दौरान नाबालिग गर्भवती हुई तो पार्टनर छोड़कर चला गया। बच्चे क
.
महिला एवं बाल विकास विभाग के जिला स्तरीय बाल विवाह उड़नदस्ता के 1992 से सदस्य महेंद्र पाठक और देवेंद्र पाठक अब तक 1965 बाल विवाह रोक चुके हैं। वे बताते हैं, पहले परिवार के दबाव में बाल विवाह की जानकारी पड़ोसी या परिजन देते थे।
अब लिव इन में विवाद के कई केसेस सामने आ रहे हैं। इंदौर में औसत एक हजार शादियां हर साल होती हैं। वर्ष में 60 से 70 शिकायतें बाल विवाह की आती हैं। लिव इन में कोई रहे तो उसे हम नहीं रोक सकते। महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यक्रम अधिकारी रामनिवास बुधोलिया कहते हैं, 2019-20 से 2024-25 तक बाल विवाह की 50 शिकायतें सही मिलीं।
इस बीच 48 विवाह रोके गए और नौ मामलों में एफआईआर भी कराई गई। बाल विवाह में शामिल पंडित, मौलवी एवं गार्डन संचालक पर भी एफआईआर कराई गई।
ज्यादातर सोशल मीडिया पर दोस्ती के बाद रहने लगे लिव इन में
केस-1 : लिव इन टूटा तो परिवार ने बाल विवाह की कोशिश की जंजीरावाला से लगे क्षेत्र की 17 वर्षीय नाबालिग पास ही रहने वाले 19 वर्षीय युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रही। गर्भवती हुई तो युवक छोड़कर चला गया। नाबालिग को 7 माह का गर्भ था। लड़की व माता-पिता ने अस्पताल को लिखकर दे दिया कि वे होने वाले बच्चे का पालन–पोषण नहीं कर पाएंगे। इससे पहले परिजन ने नाबालिग की शादी कराने की कोशिश की, लेकिन सूचना मिलने पर उड़नदस्ता वहां पहुंचा और शादी रुकवा दी। फिलहाल बच्चा प्रशासन की देखरेख में है।
केस-2: गर्भवती की सूचना अस्पताल से मिली ग्राम मालाखेड़ी निवासी बालिका की इंदौर के एक लड़के से सोशल मीडिया पर दोस्ती हुई। दोनों नाबालिग अलग मकान लेकर लिव-इन में रहने लगे। लड़की गर्भवती हुई तो लड़का उसे छोड़कर अपने घर पहुंच गया। यहां भी बच्चे के जन्म में वही कहानी दोहराई गई। हालांकि यहां सूचना भी बाद में मिली वह भी हॉस्पिटल से।
केस-3 : परिवार ही कहीं और चला गया खातीवाला टेंक में एक युवती पास के जिले से पढ़ने आई। सीनियर से प्रेम हुआ, उसके साथ रहने लगी। जब बात आगे बढ़ गई तो युवक फरार हो गया। युवती के पास न घर जाने का विकल्प था, न किसी को बताने का। अचानक पूरा परिवार ही यहां से बिना बताए कहीं चला गया।
लिव इन में पैदा संतान वैधानिक बशर्ते मां बालिग हो
^अधिवक्ता मनोज बिनीवाले के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को ना केवल मान्यता दी है, बल्कि इससे पैदा हुई संतान को भी कानूनी मान्यता दी गई है। वर्ष 2008 में शीर्ष अदालत ने तुलसादेवी विरुद्ध दुर्घटिया केस में फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चे जायज हैं। हां लिव इन में नाबालिग मां बनी है तो वह मां की संपत्ति पर ही क्लेम कर सकता है।