Saturday, March 15, 2025
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आनंद अखाड़े के संतों पर फिल्म देखने की पाबंदी: यहां सबसे कम साधु, नागा करते हैं तांत्रिक साधना


शैव संप्रदाय का तपोनिधि श्री पंचायती आनंद अखाड़ा है तो बहुत छोटा, लेकिन इसके काम बहुत बड़े-बड़े हैं। ये अपने तपस्वियों, तांत्रिकों और कठिन तपस्या पद्धतियों के लिए जाना जाता है। अखाड़ा उन साधकों के लिए बनाया गया है जो तांत्रिक साधनाओं में रुचि रखते हैं

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दैनिक भास्कर की अखाड़ों की कहानी सीरीज की आठवीं किस्त में पढ़िए श्री पंचायती आनंद अखाड़े की पूरी कहानी…

इस महाकुंभ में भी अखाड़े का शिविर निरंजनी अखाड़े के साथ ही लगा हुआ है। अंदर जाने के लिए सख्त नियम हैं। शाम चार बजे के बाद ही श्रद्धालु अंदर जा सकते हैं।

अखाड़े के अंदर जगह-जगह संत तप कर रहे हैं। इनका कहना है कि आनंद अखाड़ा चाहे सबसे छोटा है, लेकिन खासियत यही है कि यहां संत हमेशा तप ही करते हैं।

आनंद अखाड़े में तप करते नागा साधु।

जगह-जगह संत अपने-अपने धूणे के सामने बैठे हुए हैं। किसी ने लाखों रुद्राक्ष धारण कर रखे हैं तो कोई 11 साल से बाजू ऊपर किए हुए है। कोई खड़ा है तो किसी ने मौन व्रत लिया हुआ है।

आज यहां काफी चहल-पहल है। इसकी वजह है कि आनंद अखाड़े में आज एक संत नारायण गिरी का पट्‌टाभिषेक है। उन्हें महंत बनाया जा रहा है। चेहरा-मोहरा में अखाड़े के सभी संत धीरे- धीरे जमा हो रहे हैं। यह इनका कार्यालय है जिसे अखाड़े की भाषा में चेहरा-मोहरा कहते हैं।

यहां भीड़ बढ़ती जा रही है। एक बड़ी सी झोली में गुलाब के फूलों की बहुत सारी पंखुड़ियां रखी गई हैं। संत नारायण गिरी को बीच में बिठाया गया। मंत्रोच्चारण हो रहा है। उन पर एक चादर डाली गई और लगातार मंत्रोच्चारण के साथ गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां डाली गईं। कई तरह से अभिषेक किया गया। उसके बाद इष्ट देव के मंदिर में उनका माथा टिकवाया गया। इसके बाद उनके महंत बनने की घोषणा की गई।

इस अखाड़े के बाबा दिगंबर दिवाकर भारती महाराज की खूब चर्चा है। दिगंबर दिवाकर भारती 10 साल से अपनी एक बाजू ऊपर किए हुए हैं। इसे उर्दबाहु भी कहते हैं। वे बताते हैं कि यह किसी प्रकार का हठयोग नहीं है, सिर्फ एक योग है। अगर ऐसा मैं किसी दूसरे के कहने पर करता तो ये हठयोग कहलाता। उर्दबाहु का मतलब ही ऊपर किए गए हाथ से है।

दिगंबर दिवाकर भारती 10 साल से अपनी एक बाजू ऊपर किए हुए हैं

दिगंबर दिवाकर भारती 10 साल से अपनी एक बाजू ऊपर किए हुए हैं

दिगंबर दिवाकर भारती दिन में सिर्फ एक बार शाम को फलाहार करते हैं। बीते दस साल से उन्होंने अन्न नहीं खाया है। वह बताते हैं कि इसके पीछे भी कोई कारण नहीं है।

नागा बाबा निर्मल गिरी बरेली से आए हैं। वह खड़े रहने का हठयोग कर रहे हैं। वह 14 साल से फलाहारी हैं। वह कहते हैं, ‘मैं लगातार 41 दिन तक खड़ा रहूंगा। मुझे इसके लिए मेरे पंचगुरु ने आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि तुम खड़ेश्वरी हो जाओ, खड़े होकर तप करो।’

निर्मल गिरी कहते हैं कि आनंद अखाड़े से इसलिए जुड़े हैं क्योंकि यह एक तपोनिधी अखाड़ा है। यहां के संत हमेशा तपस्या करते रहते हैं। अखाड़े में बहुत कम महात्मा हैं, लेकिन तपस्वी सबसे ज्यादा हैं। इसलिए इसे तपोनिधी कहते हैं। दूसरा जब हम गुरु धारण करते हैं तो हमें नहीं पता होता कि वह किस अखाड़े से हैं। वह जिस अखाड़े से जुड़े होते हैं हम भी उसी अखाड़े में जाते हैं।

नागा बाबा निर्मल गिरी लगातार 41 दिन तक खड़े रहेंगे।

नागा बाबा निर्मल गिरी लगातार 41 दिन तक खड़े रहेंगे।

आनंद अखाड़ा हमेशा से निरंजनी अखाड़े के साथ ही रहता है। अर्द्ध कुंभ हो या महाकुंभ इसका शिविर निरंजनी अखाड़े के साथ ही लगता है। शाही स्नान से लेकर भोजन और रहने की व्यवस्था सहित सबकुछ निरंजनी अखाड़े के साथ ही होता है। अंतर बस इतना है कि निरंजनी अखाड़ा बड़ा है और आनंद अखाड़ा छोटा।

कुंभ आदि पर्वों पर निरंजनी अखाड़े के साथ अपनी पेशवाई निकालता है और शाही स्नान में शामिल होता है।

नागा संस्कार बाकी शैव अखाड़ों जैसे ही होते हैं। आनंद अखाड़े में भी शाही स्नान के वक्त सबसे पहले तीन भालों को स्नान करवाया जाता है। भालों को यहां देवता स्वरूप माना जाता है। इन तीन भालों के नाम हैं सूर्यप्रकाश, चंद्रप्रकाश और भैरोप्रकाश।

निर्मल गिरी कहते हैं आनंद अखाड़े में अगर कोई भी संन्यासी अखाड़े या धर्म के खिलाफ कोई काम करता है तो उसे एक कमेटी द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। फिल्म देखने पर भी साधु हो या संत, उसे अखाड़े से निकाल दिया जाता है। हालांकि साधु-संतों के स्मार्ट फोन उपयोग करने के बाद इस नियम में थोड़ी ढील दी गई है।

पूजा-पाठ करते आनंद अखाड़े के नागा साधु।

पूजा-पाठ करते आनंद अखाड़े के नागा साधु।

कुंभ के दौरान यहां कुंडलिनी जागरण, साधना के दौरान यंत्रों का उपयोग, मृत संजीवन साधनाओं सहित तमाम बड़े और अनसुने गुप्त अनुष्ठान होते हैं। तंत्र साधना, वैराग्य, और शैव परंपरा का प्रचार-प्रसार अखाड़े का उद्देश्य है।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि इस अखाड़े के देवता सूर्य हैं। सूर्य जीवन और आनंद प्रदान करते हैं, इसलिए इसे आनंद अखाड़ा नाम दिया गया। इसमें गिरि, पुरी, सरस्वती और भारती नाम के नागा प्रमुख होते हैं। वैसे, दशनामी संन्यासी परंपरा के अखाड़ों में सरस्वती, गिरि, पुरी, वन, भारती, तीर्थ, सागर, अरण्य और पर्वत नाम के साधु होते हैं।

महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि इस अखाड़े ने विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका जैसी व्यवस्था भी बनाई थी।

महंत रवींद्र पुरी बताते हैं कि इस अखाड़े ने विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका जैसी व्यवस्था भी बनाई थी।

इनमें से जो नागा संन्यासी गृहस्थ में प्रवेश कर जाते हैं, वे गोस्वामी कहे जाते हैं। संन्यास लेने वाले साधु को विजया होम संस्कार यानी अपने समेत तीन पीढ़ी का श्राद्ध करना पड़ता है। शिखा सूत्र यानी बालों की चोटी भी काटनी होती है।

यह एक ऐसा अखाड़ा है, जिसमें प्रजातंत्र का प्रशासनिक ढांचा देश की आजादी के पहले से ही लागू हो गया था।

अखाड़े में नागा संन्यासियों को दस नामों से संन्यास की दीक्षा दी जाती है। दशनामी परंपरा के अखाड़ों में आनंद अखाड़ा जूना और निरंजनी के बाद सबसे समृद्ध माना जाता है। इस अखाड़े की 52 मढ़ियां हैं।

अखाड़े के अध्यक्ष शंकरानंद सरस्वती बताते हैं कि आचार्य महामंडलेश्वर का पद सर्वोच्च होता है। इनकी नियुक्ति अखाड़ों के रमता पंचों और श्री महंतों की ओर से की जाती है। यह रमता पंच और श्रीमहंत चारों वेदों और उपनिषदों के ज्ञाता होते हैं। सनातन विरोधी या अखाड़े के विपरीत आचरण पर आचार्य महामंडलेश्वर को पद से हटाने का अधिकार भी इन्हें हासिल है।

शंकरानंद सरस्वती बताते हैं कि आचार्य महामंडलेश्वर की नियुक्ति रमता पंचों और श्री महंतों की ओर से की जाती है।

शंकरानंद सरस्वती बताते हैं कि आचार्य महामंडलेश्वर की नियुक्ति रमता पंचों और श्री महंतों की ओर से की जाती है।

आनंद अखाड़ा सामाजिक कामों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। यहां के साधु-संत दशनामी संन्यास परंपरा का पालन करते हैं। भारत में मुगल सल्तनत काल के शुरू होने से हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के मानने वालों को अपमान का सामना करना पड़ा था।

आनंद अखाड़े के रुद्राक्ष बाबा।

आनंद अखाड़े के रुद्राक्ष बाबा।

अखाड़े के नागा संन्यासियों ने इसके खिलाफ ना सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि अपने युद्ध कौशल से भारतीय धार्मिक सनातन परंपरा का निर्वहन किया और उसकी रक्षा भी की। खिलजी साम्राज्य के समय अखाड़े ने हिंदू धर्म रक्षा के बहुत से काम किए और धार्मिक प्रतीक चिन्हों व मठ-मंदिरों की रक्षा की।

अखाड़े की स्थापना लगभग 855 ईस्वी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी। अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं। इसकी शाखाएं प्रयागराज व उज्जैन में भी हैं। अखाड़े का केंद्रीय मुख्यालय वाराणसी में है। दशनामी नागा संन्यासी इस अखाड़े में हैं और पूरे देश में फैले हुए हैं। अखाड़े से जुड़े ज्यादातर नागा और साधु-संत त्र्यंबकेश्वर के हैं।

महंत गणेशानंद सरस्वती बताते हैं कि आनंद अखाड़ा पुराने अखाड़ों में से एक है। इष्ट देव के नाम पर दूसरे अखाड़ों से अलग है। अखाड़े में सूर्योदय और सूर्यास्त से पहले पूजा होती है। यह दोनों पूजाएं तांत्रिक योग से होती हैं। इस दौरान पूजन स्थल पर सिर्फ अखाड़े के पुरोहित ही जा सकते हैं। हमारे यहां आरती भी पंचांग देखकर होती है।

आनंद अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान।

आनंद अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान।

हर 6 साल में कुंभ में ही होता है चुनाव कुंभ मेले में हर 6 साल बाद हर अखाड़े का लोकतांत्रिक पद्धति से पदाधिकारियों का चुनाव होता है। श्री महन्त सचिव, कोठारी, कोतवाल, भंडारी आदि इनके पद होते हैं। सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण पद श्री महन्त का होता है और अखाड़ों के समूह के रमता पंच होते हैं जिन्हें अष्ट कौशल महंत भी कहा जाता है।

आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज हैं। अखाड़े के अध्यक्ष महंत शंकरानंद सरस्वती हैं। अखाड़े में प्रमुख पद आचार्य का होता है। आचार्य ही इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों को देखते हैं। चुनाव के आधार पर पदाधिकारी चुने जाते हैं। ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।

संन्यासियों को दीक्षा देते वक्त दस नामों से जोड़ा जाता है नागा शब्द संस्कृत के ‘नग’ से बना है। नग मतलब पहाड़। यानी पहाड़ों या गुफाओं में रहने वाले नागा कहलाते हैं।

आनंद अखाड़े के नागा साधु से आशीर्वाद लेने वालों की भीड़ लगी रहती है।

आनंद अखाड़े के नागा साधु से आशीर्वाद लेने वालों की भीड़ लगी रहती है।

9वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने दशनामी संप्रदाय की शुरुआत की। ज्यादातर नागा संन्यासी इसी संप्रदाय से आते हैं। इन संन्यासियों को दीक्षा देते वक्त दस नामों से जोड़ा जाता है। ये दस नाम हैं- गिरी, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती। इसलिए नागा साधुओं को दशनामी भी कहा जाता है।

आदि शंकराचार्य ने दस नामों को चारों पीठों से जोड़ा

1-शारदा पीठ- सरस्वती, तीर्थ, अरण्य, भारती शृंगेरी

2-द्वारका पीठ- तीर्थ और आश्रम

3-ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ- गिरि, पर्वत, सागर

4- गोवर्धनपुरी मठ- वन, पुरी, अरण्य

(दशनामी संन्यासी संप्रदाय के साधु एक दूसरे का अभिवादन ॐ नमो नारायण से करते हैं)



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