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SC ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला पलटा: कहा- ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज का आरोप लगाना जरूरी नहीं


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नई दिल्ली23 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 498A में दो तरह की क्रूरता को अपराध माना गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ससुराल पक्ष की क्रूरता साबित करने के लिए दहेज की मांग का आरोप लगाना जरूरी नहीं है। यह कानून 1983 में शादीशुदा महिलाओं को पति और ससुराल पक्ष की प्रताड़ना से बचाने के लिए लागू किया गया था।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने कहा, ‘धारा 498A में दो तरह की क्रूरता को अपराध माना गया है। पहला जब महिला को इस तरह प्रताड़ित किया जाए कि उसे गंभीर मानसिक और शारीरिक तकलीफ हो। दूसरा जब महिला पर किसी अवैध मांग को पूरा करने के लिए दबाव डाला जाए। इनमें से कोई भी स्थिति होने पर पति या ससुराल वालों पर केस किया जा सकता है।’

दरअसल, कोर्ट ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसले को पलट दिया। जिसमें हाईकोर्ट ने यह कहते हुए मामला खत्म कर दिया था कि महिला से दहेज की मांग नहीं की गई थी। जिसके बाद महिला ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

बेंच ने कहा- 498A की मूल भावना को समझने की जरूरत

बेंच ने कहा कि 1983 में जब यह कानून लागू किया गया था, तब देश में दहेज से संबंधित मौतों की संख्या बढ़ रही थी। इसे न केवल दहेज हत्या के मामलों से निपटने बल्कि विवाहित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के उद्देश्य से भी लाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई पुराने मामलों का जिक्र किया, जिनमें महिलाओं को उनके पति और ससुराल वालों ने दहेज न मांगने के बावजूद परेशान किया था। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में भी कानून के तहत सख्त कार्रवाई की जा सकती है।

भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने प्रमुख कानून

  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 मकसद- दहेज प्रथा को रोकना और दोषियों को सजा दिलाना है। दुरुपयोग: कई मामलों में महिलाएं दहेज उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाकर पति और ससुरालवालों को परेशान करती हैं।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A मकसद- विवाहित महिलाओं को दहेज उत्पीड़न और मानसिक/शारीरिक प्रताड़ना से बचाना। दुरुपयोग: इस धारा के तहत गिरफ्तारी तत्काल होती थी। कई मामलों में पुरुषों और उनके परिवार को बिना जांच के ही परेशान किया जाता है।
  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 मकसद- महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और यौन हिंसा से सुरक्षा देना।
  • दुरुपयोग: महिलाएं झूठे केस करके पति से आर्थिक लाभ लेने के लिए दुरुपयोग करती हैं।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 मकसद- इस कानून का उद्देश्य महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाना है।
  • दुरुपयोग: कुछ मामलों में महिलाएं अपने सहकर्मियों या बॉस पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें ब्लैकमेल करती हैं।
  • बलात्कार से संबंधित कानून (IPC की धारा 376, 354) मकसद- महिलाओं की सुरक्षा और यौन अपराधों को रोकने के लिए बनाए गए हैं।
  • दुरुपयोग: कुछ मामलों में बदले की भावना से या व्यक्तिगत लाभ के लिए झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, गुजारा भत्ता धारा 24/25 मकसद- तलाक के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को भरण-पोषण देने की व्यवस्था। दुरुपयोग: कई बार महिलाएं झूठे आरोप लगाकर ज्यादा पैसा लेने की कोशिश करती हैं।

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