मथुरा के फालैन गांव में होली पर एक बार फिर भक्त प्रह्लाद की लीला जीवंत हो उठी। जब 30 फीट ऊंची जलती हुई होलिका पर पैदल चलते हुए पंडा संजू गुजर गए। आग की भीषण लपटों का पंडा के शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। लोगों ने बांके बिहारी की जय का उद्घोष किया।
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देश-विदेश से आए करीब 80 हजार लोगों इस अद्भुत लीला को देखा। इसके बाद पूरा फालैन गांव होली के रंगों से सराबोर हो गया। ब्रज में 45 दिन चलने वाली होली का यह सबसे चौंकाने वाला दृश्य होता है।
यह परंपरा 5200 साल से चली आ रही है। 12 गांव की एक साथ जलने वाली होलिका पर से पंडा दौड़ते हुए निकलता है। इससे पहले पंडा संजू ने 45 दिन तक व्रत-अनुष्ठान किया। फालैन गांव मथुरा से 50 Km दूर है।
प्रह्लाद कुंड में स्नान, बहन ने दिया अर्घ्य शुक्रवार की सुबह करीब 4 बजे पंडा संजू ने प्रह्लाद कुंड में स्नान किया। उनकी बहन ने होलिका की जलती अग्नि के चारों तरफ कलश से जल का अर्घ्य दिया। इसके बाद गीले शरीर के साथ पैदल चलते हुए पंडा संजू आए। उन्होंने शरीर पर एक गमछा पहना हुआ था
इस दौरान 12 गांव के लोग और करीब 80 हजार टूरिस्ट मौजूद थे। सभी बांके बिहारी की जय के नारे लगा रहे थे। इसके बाद पंडा संजू तेजी से जलती आग के बीच 30 से 35 कदम दौड़कर गुजर गए। यह दृश्य देखकर टूरिस्ट दंग रह गए। फिर रंगों का दौर शुरू हो गया।
वहां मौजूद लोगों ने कहा कुछ कहा…
- फरीदाबाद से आई अंजू गर्ग ने कहा- पहले मैंने मोनू पंडा के बारे में सुना था, आज देख भी लिया। चमत्कार है। आग बहुत भयानक थी। मैं 2-3 फीट दूर खड़ी थी, लेकिन आग की लपटें मेरे पास तक आ रही थीं। पंडित जी में बहुत हिम्मत है, जो उस आग से निकलते हैं। मैंने पहली बार ऐसा देखा।
- एक अन्य युवक ने कहा- बहुत बढ़िया है। यह चमत्कार है। साक्षात भगवान धरती पर हैं। यह सनातन धर्म की शक्ति है। 40-50 फीट ऊँची होलिका थी।
- मुंबई से आए नील शाह ने बताया- पहले मैंने सुना था, लेकिन आज देख लिया। मैं अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाया। यह अद्भुत है।
- जकार्ता से आई महिला ने कहा- मैं इंजॉय कर रही हूं। यह बहुत रोचक है। मैंने पहली बार ऐसा देखा। ग्रेट एक्सपीरियंस
- मलेशिया से आए युवक ने कहा- यह माइंड-ब्लोइंग अनुभव था। मैंने पहली बार ऐसा देखा।
अब पंडा का व्रत समझिए…
प्रह्लाद मंदिर में संजू पंडा ने व्रत-अनुष्ठान किया पंडा परिवार के संजू पंडा फालैन गांव के प्रह्लाद के मंदिर में 45 दिन तक व्रत और अनुष्ठान कर रहे थे। उनके परिवार के सदस्य 5200 सालों से जलती होलिका के बीच से निकलते आ रहे हैं। इस तरह वह सतयुग में हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद के बचने और होलिका के भस्म होने की पौराणिक कहानी को जीवंत करते हैं।

संजू पंडा ने कहा- मैं पहली बार जलती हुई होलिका से निकला हूं। पिछले 5 साल से मेरे बड़े भाई मोनू पंडा जलती होलिका को दौड़कर पार करते आए हैं। जब मैं जलती आग से गुजर रहा था, मुझे लगा खुद प्रह्लादजी मेरे साथ चल रहे हैं।
संजू ने कहा- मैंने कठिन व्रत का पालन किया। वसंत पंचमी के बाद से प्रह्लादजी के मंदिर में रहा। 45 दिन तक कड़े नियमों का पालन किया। दिन में सिर्फ 1 बार फलाहार किया। वह कहते हैं- इस व्रत को करने के बाद अब मैं कभी गोवंश की पूंछ नहीं पकड़ सकता। कभी चमड़े से बनी चीजों का इस्तेमाल नहीं कर सकता हूं।

गांव से जुड़ी मान्यताएं समझिए…
प्रह्लाद की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुईं गांव के लोगों का मानना है कि प्रह्लादजी के मंदिर की प्रतिमाएं जमीन से प्रकट हुई थीं। मान्यता है कि सदियों पहले एक संत फालैन गांव में आए थे। यहां उन्हें एक पेड़ के नीचे भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की प्रतिमा मिली।
इन प्रतिमाओं को संत ने गांव के पंडा परिवार को दे दिया। जिसके बाद संत ने कहा- इन प्रतिमाओं को मंदिर में विराजमान कर इनकी पूजा करें। हर साल होलिका के त्योहार पर जलती आग के बीच से इस परिवार का एक सदस्य निकले। होली की जलती आग उनको नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी, ऐसा वरदान दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
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