Saturday, March 15, 2025
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आज का एक्सप्लेनर: आर्टिफिशियल हार्ट से 100 दिनों तक जिंदा रहा व्यक्ति, यह असली दिल से कितना अलग; क्यों अहम है ये खोज


ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में विंसेंट हॉस्पिटल में 40 वर्षीय एक शख्स पहुंचा, जिसका हार्ट लगभग काम करना बंद कर चुका था। फौरन कोई हार्ट डोनर मिलना मुश्किल था। डॉक्टर्स ने उन्हें टाइटेनियम से बना आर्टिफिशियल हार्ट लगाकर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया। करीब 10

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आखिर क्या है आर्टिफिशियल दिल, क्या इसके सहारे पूरी जिंदगी गुजारी जा सकती है और यह एक्सपेरिमेंट इतना अहम क्यों; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: ऑस्ट्रेलिया में 40 साल के व्यक्ति को कैसे टेक्नोलॉजी से नई जिंदगी मिली? जवाब: 2024 में व्यक्ति को दिल की गंभीर बीमारी हो गई थी। इसके साथ ही उन्हें अटैक भी आया, जिसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती किया गया। डॉक्टरों ने हार्ट ट्रांसप्लांट की बात कही। लेकिन डोनर न मिलने की वजह से आर्टिफिशियल हार्ट ट्रांसप्लांट का रास्ता बचा।

नवंबर 2024 में ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के रहने वाले व्यक्ति के सीने में आर्टिफिशियल हार्ट लगाया गया था। यह व्यक्ति 100 दिनों तक आर्टिफिशियल हार्ट के साथ जीवित रहा। अब असली दिल मिल जाने के बाद सर्जरी करके असली दिल लगा दिया।

व्यक्ति को शौचालय तक चलने में भी परेशानी होती थी, इसलिए उनके बचने की उम्मीदें कम थीं। डॉक्टरों को उनके डोनर मिलने तक बच पाना नामुमकिन लग रहा था। लेकिन अब यह मरीज दुनिया के पहले व्यक्ति बन गए, जो 100 दिनों तक आर्टिफिशियल हार्ट के साथ जिंदा रहे।

12 मार्च को सेंट विंसेंट अस्पताल, मोनाश यूनिवर्सिटी और आर्टिफिशियल हार्ट को बनाने वाली अमेरिकी-ऑस्ट्रेलियाई कंपनी BiVACOR की ओर से बयान में कहा गया, ‘वह व्यक्ति, जिसे गंभीर दिल की बीमारी हुई थी, अब अच्छी तरह से ठीक हो रहा है।’

सर्जन ने आर्टिफिशियल हार्ट को ट्रांसप्लांट करने के लिए 6 घंटे ऑपरेशन किया।

सवाल-2: इस टाइटेनियम हार्ट का आविष्कार किसने और कैसे किया? जवाब: करीब 20 साल पहले इस आर्टिफिशियल हार्ट को क्वींसलैंड में जन्मे बायोइंजीनियर डैनियल टिम्स ने डिजाइन किया था। वे BiVACOR कंपनी के फाउंडर भी हैं। डॉ. टिम्स ने अपनी रिसर्च को कामयाब करने के लिए सालों मेहनत की। डॉ. टिम्स ने बताया कि उन्हें बचपन में ही आर्टिफिशियल हार्ट बनाने का आइडिया आ गया था, जब वह अपने प्लम्बर पिता के साथ पानी के पंपों पर काम करते थे।

डॉ. टिम्स ने आर्टिफिशियल हार्ट बनाने के लिए हार्डवेयर कंपनी बन्निंग्स के कई चक्कर लगाए। उन्होंने बन्निंग्स से इस आविष्कार के लिए कई बार अलग-अलग तरह के पुर्जे खरीदे। इस बीच उनके पिता का हार्ट अटैक से निधन हो गया। इसके बाद आर्टिफिशियल हार्ट बनाने का जुनून और ज्यादा बढ़ गया।

डॉ. डेनियल टिम्स को यह उपकरण बनाने की प्रेरणा तब मिली जब उनके पिता की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।

डॉ. डेनियल टिम्स को यह उपकरण बनाने की प्रेरणा तब मिली जब उनके पिता की हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई।

डॉ. टिम्स और आर्टिफिशियल हार्ट फ्रंटियर्स प्रोग्राम की टीम के लिए आए दिन हार्डवेयर स्टोर पर जाना आम बात थी। सुनने में अजीब लगता है, लेकिन यह सच है कि दिल बनाने के लिए हार्डवेयर स्टोर के चक्कर लगाए गए। मोनाश यूनिवर्सिटी में इस प्रोग्राम के को-डायरेक्टर एसोसिएट प्रोफेसर शॉन ग्रेगरी ने कहा,

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यह हमेशा अजीब लगता है जब लोग हमारी लेबोरेटरी में आकर ड्रिल, प्रेस और बेंच ग्राइंडर और बन्निंग्स के पुर्जे देखते हैं।

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डॉ. टिम्स ने अपने आविष्कार के कामयाब होने पर कहा,

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ऑस्ट्रेलिया में बहुत सारे आविष्कार हुए हैं और कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि वे विदेशों में खो गए हैं। मेरे आविष्कार का फायदा सबसे पहले ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों को ही मिले।

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अभी इस उपकरण का परीक्षण किया जा रहा है। फिलहाल इसे सामान्य इस्तेमाल के लिए मंजूरी नहीं मिली है।

सवाल-3: आर्टिफिशियल हार्ट क्या है और क्या यह सीने में असली दिल की तरह धड़कता है? जवाब: BiVACOR टोटल आर्टिफिशियल हार्ट (TAH) टाइटेनियम से बना दिल है, जो इंसान के सीने में दिल की जगह ट्रांसप्लांट किया जाता है। हालांकि, यह असली दिल की तरह धड़कता नहीं है। लेकिन उसी की तरह काम करता है। यह असली हार्ट ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे मरीजों को टेम्परेरी लगाया जाता है…

सवाल-4: क्या आर्टिफिशियल हार्ट के सहारे पूरी जिंदगी गुजारी जा सकती है? जवाब: ऑस्ट्रेलियाई विक्टर चांग कार्डियक रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिसर्च के मुताबिक, आर्टिफिशियल हार्ट किसी भी व्यक्ति को लगभग 6 साल तक जीवित रख सकता है। ट्रांसप्लांट के 12 महीने बाद लगभग 80-85% मरीज जीवित रहते हैं, जबकि तीन चौथाई मरीज 2 साल तक जीवित रहते हैं।

BiVACOR टोटल आर्टिफिशियल हार्ट को अब तक सिर्फ एक आस्ट्रेलियाई रोगी में लगभग तीन महीने तक ट्रांसप्लांट किया गया।

आर्टिफिशियल हार्ट के साथ कोई भी व्यक्ति लगभग सामान्य जीवन जी सकता है। इस हार्ट की बैटरियों की शेल्फ लाइफ कुछ घंटों तक सीमित होती है और उन्हें रिचार्ज करने की जरूरत पड़ती है। लेकिन बैकअप बैटरियों की वजह से लोग इस हार्ट के साथ कहीं भी जा सकते हैं।

आर्टिफिशियल हार्ट और इसके पेसमेकर के लिए कुछ सावधानियां जरूरी हैं…

  • पेसमेकर को गीला होने से बचाना पड़ता है, जिस वजह से मरीज स्वीमिंग और वॉटर स्पोर्ट्स जैसी एक्टिविटीज नहीं कर पाते।
  • नहाते समय पेसमेकर को एक विशेष ‘शॉवर बैग’ में पैक किया जाता है, जिससे यह गीला नहीं होता।
  • पेसमेकर से लगातार घर्र-घर्र की आवाज भी आती रहती है, जिससे अक्सर मरीज की नींद खराब हो जाती है।
यह हार्ट मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके रक्त को शरीर में पंप करने के बजाए 'फुसफुसाता' है।

यह हार्ट मैग्नेटिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके रक्त को शरीर में पंप करने के बजाए ‘फुसफुसाता’ है।

सवाल-5: क्या हार्ट अटैक से बचने के लिए आर्टिफिशियल हार्ट लगावाया जा सकता है? जवाब: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, टोटल आर्टिफिशियल हार्ट यानी TAH में सामान्य हार्ट की तरह अटैक नहीं आ सकता। जैसा कि ऊपर बताया गया कि यह एक पानी की मोटर की तरह काम करता है। इसको महसूस नहीं किया जा सकता। इसलिए इसमें प्राकृतिक ह्रदय की तरह अटैक भी नहीं आ सकता।

आर्टिफिशियल हार्ट को अपनी मर्जी से नहीं लगवाया जा सकता। यह जरूरत पड़ने पर ही ट्रांसप्लांट किया जाता है। हालांकि, इसके साथ 5 अन्य समस्याएं आ सकती हैं…

  • खून के थक्के जमना: आर्टिफिशियल हार्ट की वजह से खून के थक्के जमना आसान हो जाता है।
  • इन्फेक्शन: इस हार्ट को ट्रांसप्लांट करने की सर्जरी और डिवाइस के लिए बाहरी कनेक्शन से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
  • उपकरण की खराबी: TAH खुद भी खराब हो सकता है, जिसके लिए अन्य बैकअप की जरूरत पड़ सकती है।
  • रक्तस्राव: आर्टिफिशियल हार्ट को जोड़ने की सर्जरी बहुत मुश्किल होती है। सर्जरी के दौरान और बाद में भी छाती में रक्तस्राव हो सकता है।
  • मृत्यु: किसी भी अन्य बड़ी सर्जरी की तरह आर्टिफिशियल हार्ट की सर्जरी के दौरान जान जाने का खतरा होता है।

सवाल-6: क्या आने वाले समय में आर्टिफिशियल हार्ट से मृत शरीर को जिंदा किया जा सकेगा? जवाब: ब्रिटेन की पत्रिका एमआईटी टेक्नोलॉजी रिव्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, आर्टिफिशियल हार्ट से मृत शरीर को दोबारा जीवित नहीं किया जा सकता। इसका इस्तेमाल सिर्फ असली दिल की जगह पर किया जा सकता है, जब तक असली दिल का ट्रांसप्लांट नहीं हो जाए।

आर्टिफिशियल हार्ट स्थायी समाधान नहीं है।

आर्टिफिशियल हार्ट स्थायी समाधान नहीं है।

सवाल-7: मानव इतिहास में यह खोज इतनी अहम क्यों? जवाब: विक्टर चांग कार्डियक रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिसर्च के मुताबिक, यह खोज मानव इतिहास में बेहद जरूरी है। इसे एक स्थायी समाधान बनाने की जरूरत है। इस आविष्कार से हार्ट ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे लोगों की जानें बच सकेंगी।

रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल दुनियाभर में 2.3 करोड़ लोगों को हार्ट अटैक आता है। जिनमें से हजारों मरीजों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। लेकिन हर साल सिर्फ 6 हजार डोनर ही मिल पाते हैं, जो काफी नहीं होते।

ऐसे में आर्टिफिशियल हार्ट एक अस्थायी समाधान बनकर बाकी बचे हुए मरीजों के लिए वरदान साबित होगा। यह हार्ट मरीजों के सीने में तब तक धड़कता रहेगा, जब तक असल दिल नहीं मिल जाता।

दाएं से बाएं- प्रोफेसर क्रिस हेवर्ड और डॉ. पॉल जान्सज ने डॉ. डैनियल टिम्स के साथ मिलकर उनके आर्टिफिशियल हार्ट के आविष्कार को क्लीनिकल टेस्ट के लिए तैयार किया।

दाएं से बाएं- प्रोफेसर क्रिस हेवर्ड और डॉ. पॉल जान्सज ने डॉ. डैनियल टिम्स के साथ मिलकर उनके आर्टिफिशियल हार्ट के आविष्कार को क्लीनिकल टेस्ट के लिए तैयार किया।

डॉ. टिम्स ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2 से 3 सालों में उनका आर्टिफिशियल हार्ट ज्यादा से ज्यादा लोगों में ट्रांसप्लांट किया जाएगा। उन्होंने कहा,

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हमें और ज्यादा उपकरण बनाने की जरूरत है। अभी यही हमारी इकलौती बाउंड्री है। हम प्रोडक्शन बढ़ा रहे हैं।

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सेंट विंसेंट हॉस्पिटल के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. क्रिस हेवर्ड ने कहा कि BiVACOR आर्टिफिशियल हार्ट उन रोगियों के लिए बेहतर ऑप्शन बन जाएगा जो डोनर का इंतजार नहीं कर सकते या जिनके पास अन्य विकल्प मौजूद नहीं है।

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