मध्य प्रदेश में अब सरकारी प्रोजेक्ट में लेटलतीफी नहीं होगी। जमीनों के अधिग्रहण में ही प्रोजेक्ट कई साल तक लटके रहते थे, वहीं जमीन मालिक को भी ये शिकायत रहती थी कि सरकार ने सही मुआवजा नहीं दिया। उनकी जमीन ज्यादा कीमती या उपजाऊ थी और उन्हें कम मुआवजा म
.
जमीनों के अधिग्रहण करने वाले कानून में बदलाव का विधेयक पेश किया है।
विधेयक पारित होने पर सरकार जमीन के बदले उसके मालिक को 50 फीसदी जमीन विकसित करके देगी। वो भी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के पास। साथ ही इसका बड़ा फायदा ये भी होगा कि अभी नॉन-प्लानिंग एरिया में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) जैसी संस्थाएं ही सार्वजनिक इंफ्रास्ट्रक्चर या हाउसिंग प्रोजेक्ट ला सकती हैं। अब इस एकाधिकार को खत्म कर सभी सरकारी विभागों के लिए निवेश के द्वार खोल दिए गए हैं। हालांकि, ऐसे प्रोजेक्ट 500 करोड़ रुपए से कम लागत के नहीं होंगे।
विधानसभा में सोमवार को लैंड पूलिंग बिल पेश किया गया।
इस बदलाव में क्या प्रावधान किए गए हैं और इससे किसे और कितना फायदा होगा?
पढ़िए इस रिपोर्ट में…
सरकार की तरफ से सोमवार को नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम (टीएंडसीपी) कानून में संशोधन बिल विधानसभा में पेश किया गया। सरकार ने नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 में नई धारा 66 (क) जोड़ी है। इसमें प्रावधान किया गया है कि किसी भी परियोजना की जमीन को लैंड पूलिंग स्कीम मे शामिल किया जा सकता है। इस बिल पर 18 मार्च को सदन में चर्चा होगी। इसके बाद इसे पारित किया जाएगा। ये प्रक्रिया पूरी होने पर सरकार इसकी अधिसूचना जल्दी ही जारी करेगी।
प्लानिंग एरिया के बाहर हाउसिंग बोर्ड और पीडब्ल्यूडी ला सकेंगे प्रोजेक्ट
शहरी सीमा के अंदर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित होने वाले विशेष क्षेत्रों के विकास के लिए अब विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) जैसी एजेंसी के गठन की जरूरत नहीं होगी। ये काम हाउसिंग बोर्ड, विकास प्राधिकरण, पुलिस हाउसिंग और पीडब्ल्यूडी करेगा। इसके साथ ही प्राधिकरण जैसे बीडीए, आईडीए शहर के योजना क्षेत्र यानी प्लानिंग एरिया के बाहर भी रोड, पुल, पुलिया समेत अन्य विकास कार्य समेत कॉलोनियां काट सकेंगे। वहीं, साडा शहर के अंदर विकास कार्य कर सकेगा। अभी पचमढ़ी समेत मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में विकास के लिए साडा है। यहां दूसरी एजेंसी काम नहीं कर सकती।

500 करोड़ से अधिक या 40 हेक्टेयर के प्रोजेक्ट पर लागू होगा
नए प्रावधान के मुताबिक ऐसे विशेष क्षेत्र जिन्हें 40 हेक्टेयर या इससे अधिक क्षेत्र में विकसित किया जाना है, वहां सरकारी एजेंसियां 500 करोड़ या अधिक की विकास परियोजनाओं पर काम कर सकेंगी। अब नए प्रावधान के तहत संबंधित प्राधिकरण को एक प्लानिंग तैयार करनी होगी, जिसे राज्य शासन के पास लाकर अनुमति प्राप्त करनी होगी। दरअसल, भोपाल, इंदौर समेत कई बड़े शहरों में मास्टर प्लान 10 से 15 साल पीछे चल रहे हैं। इसके चलते कई विकास प्राधिकरण बड़े प्रोजेक्ट पर काम नहीं कर पा रहे हैं।
गुजरात फाॅर्मूले से जमीन लेगी सरकारी एजेंसियां
मध्य प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रहण मामले में गुजरात के फाॅर्मूले को अपनाने का निर्णय लिया है। दरअसल, मध्य प्रदेश शासन के अधिकारी गुजरात गए थे। जहां पर उन्होंने इस स्कीम के बारे में सारी जानकारी प्राप्त की है। उसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भूमि अधिग्रहण मामले में गुजरात फार्मूले काे लागू करने का फैसला लिया। जिसके तहत पूरे परियोजना क्षेत्र को विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण घोषित करके जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाएगा। इस तरह का कानून महाराष्ट्र में भी लागू है।

जमीन अधिग्रहण व लैंड पूलिंग में अंतर समझिए
सरकार किसी भी सार्वजनिक विकास के लिए निजी जमीन का अधिग्रहण करती है तो इसके बदले में जमीन मालिक को मुआवजा दिया जाता है। जबकि लैंड पूलिंग सिस्टम में 50 फीसदी जमीन डेवलप कर उसके मालिक को वापस करती है। इसमें मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। जमीन डवलप होने से उसकी कीमत बढ़ जाती है। साथ ही वह कई सरकारी औपचारिकताएं करने से बच जाता है।
अधिकतम 17 महीने में मिलेगी प्रोजेक्ट को मंजूरी
विशेष क्षेत्र में बनने वाले प्रोजेक्ट को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग अधिकतम 17 महीने में मंजूरी देगा। प्रावधान के मुताबिक सरकारी एजेंसी प्रोजेक्ट तैयार कर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को भेजेगा। विभाग इसे अधिनियम की धारा 50 (1) के तहत अधिसूचना जारी करेगा। इस तारीख से 17 महीने के भीतर ही प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल जाएगी।
सरकार और जमीन मालिक दोनों का फायदा
नगरीय विकास एवं आवास विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय शुक्ला का कहना है कि यदि किसी प्रोजेक्ट के लिए सरकारी एजेंसी के पास फंड नहीं है तो प्रोजेक्ट के दायरे में आने वाली निजी जमीन खरीदने की दरकार नहीं होगी। इसी तरह निजी जमीन के मालिक को विकसित जमीन मिलेगी तो उसकी कीमत बढ़ जाएगी।

निजी जमीन का उपयोग कैसे होगा?
प्रावधान के मुताबिक विशेष क्षेत्र के दायरे में आने वाली 50 फीसदी जमीन का उपयोग करने के लिए प्रोजेक्ट के लेआउट में तय होगा कि इसका व्यवसायिक अथवा आवासीय या अन्य उपयोग होगा। यदि तीन में से सिर्फ एक के लिए जमीन का उपयोग किया जाता है तो स्थानीय निकाय से अनुमति अनिवार्य रहेगी। लेकिन तीनों श्रेणियों में उपयोग करने के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से अनुमति लेना होगी।