नई दिल्ली6 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है। कोर्ट ने सुनवाई के लिए याचिका अगले सप्ताह लिस्ट करने को कहा है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के खिलाफ दिए भाजपा सांसद के बयानों के वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाने की मांग की गई है। मामला जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजे मसीह की पीठ के सामने तुरंत सुनवाई के लिए रखा गया था।
निशिकांत दुबे ने 19 अप्रैल को कहा था- देश में गृह युद्ध के लिए CJI संजीव खन्ना और धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है। दुबे सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के फैसले पर बात कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया था कि किसी बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा।

दुबे के खिलाफ अवमानना याचिका भी दायर पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर ने 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके दुबे के बयानों को आपराधिक अवमानना के दायरे में लाने की मांग की थी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के वकील नरेंद्र मिश्रा ने लेटर पिटिशन दायर कर स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर और शिवकुमार त्रिपाठी ने अटॉर्नी जनरल को चिट्ठी लिखकर आपराधिक अवमानना कार्यवाही की शुरू करने की अनुमति मांगी थी।
भाजपा ने दुबे के बयान से किनारा किया निशिकांत दुबे के बयान पर नड्डा ने X पोस्ट में लिखा था- भाजपा ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है। भाजपा इन बयान को सिरे से खारिज करती है। पार्टी ने सदैव ही न्यायपालिका का सम्मान किया है।
पार्टी ने कोर्ट के आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है, क्योंकि एक पार्टी के नाते हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं। संविधान के संरक्षण का मजबूत आधारस्तंभ हैं। मैंने इन दोनों को और सभी को ऐसे बयान ना देने के लिए निर्देशित किया है।
निशिकांत के बयान पर विपक्ष और पूर्व जज का रिएक्शन

- कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा, जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे कई मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने जो किया है वह असंवैधानिक है।
- कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा, अगर कोई सांसद सुप्रीम कोर्ट या किसी भी अदालत पर सवाल उठाता है तो यह बहुत दुख की बात है। हमारी न्याय व्यवस्था में अंतिम फैसला सरकार का नहीं, सुप्रीम कोर्ट का होता है। अगर कोई यह बात नहीं समझता है तो यह बहुत दुख की बात है।
- AAP प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कहा, उन्होंने (निशिकांत दुबे) बहुत घटिया बयान दिया है। मुझे उम्मीद है कि कल ही सुप्रीम कोर्ट भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू करेगा और उन्हें जेल भेजेगा।
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अशोक कुमार गांगुली ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए, अगर ऐसा नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश दे सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को यह समझने की जरूरत है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
विवाद पर अब तक क्या हुआ…
17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी।
धनखड़ ने कहा था- “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।” पूरी खबर पढ़ें…
18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।’
सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- ‘लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।’ पूरी खबर पढ़ें…
8 अप्रैल: विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।
इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। पूरी खबर पढ़ें…