मप्र हाईकोर्ट ने अवसाद के कारण मनोरोगी हुए मेडिकल छात्र का दर्द समझते हुए उसे मूल शैक्षणिक दस्तावेज वापस करने के निर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मूलत: गुजरात निवासी डॉ. मीत यादव न
.
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 2023 में पीपुल्स डेंटल अकादमी, भोपाल में बीडीएस सीट में दाखिला लिया था। इस दौरान हॉस्टल में रैगिंग के चलते वह अवसादग्रस्त हो गया।
कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि दाखिले के समय उसने बॉण्ड भरा था, जिसकी शर्त के अनुसार मेडिकल सीट बीच में छोड़ने के एवज पर 30 लाख रुपए का भुगतान करना होगा। मेडिकल सीट छोड़ने के एवज में छात्रों से 30 लाख रुपए लेने का मामला लोकसभा तक में उठाया गया था। नेशनल मेडिकल कमीशन ने इस पॉलिसी पर पुनर्विचार करने के निर्देश मध्य प्रदेश शासन को दिए थे। मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 2025 से उक्त पॉलिसी को समाप्त करने का निर्णय लिया है।
नर्सिंग घोटाला : जिन्होंने अयोग्य कॉलेज को बताया योग्य, उन्हें ही परीक्षा की जिम्मेदारी
5 जनवरी 2025 को मप्र नर्सेस रजिस्ट्रेशन काउंसिल ने प्रशासनिक सुविधा के लिए शासकीय नर्सिंग कॉलेज इंदौर से एक और भोपाल से तीन फैकल्टी को काउंसिल में अटैच किया। इनमें भोपाल की दो फैकल्टी, प्राध्यापक मीनू नायर और सहायक प्राध्यापक राखी पटेल, नर्सिंग घोटाले में संलिप्त हैं।
मान्यता प्रक्रिया के दौरान दोनों स्क्रूटनी कमेटी की सदस्य थीं। इनके द्वारा कई अपात्र नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दी गई। निरीक्षण रिपोर्ट में इन कॉलेजों को पात्र बताया गया, जबकि वे अपात्र थे। इसके बावजूद मीनू नायर को परीक्षा और राखी पटेल को एनओसी व रजिस्ट्रेशन से जुड़ी जिम्मेदारी दी गई है। नर्सिंग शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में एनएसयूआई के प्रदेश उपाध्यक्ष रवि परमार ने चिकित्सा शिक्षा आयुक्त को शिकायत की है।