Monday, June 2, 2025
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कम बारिश से 15 हजार एकड़ में फैला झील सूखा: कावर से परिंदे उड़े, मछलियों ने तोड़ा दम; 16 गांव के 2000 मछुआरों का परिवार प्रभावित – Begusarai News


बेगूसराय के मंझौल अनुमंडल में कावर झील स्थित है। एक समय में एशिया में मीठे पानी का सबसे बड़ा झील और बिहार का सबसे पहला रामसर साइट कावर का अस्तित्व अब खत्म होने की कगार पर है। कावर में सालों भर पानी भरा रहता था, बड़ी संख्या में पर्यटक नाव से झील की सै

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कहते है कि काबर का कमल खुद की तरह लोगों को खिला-खिला रखता था। लेकिन आज वह कवर सूख गया है। 15 हजार एकड़ से अधिक में फैले इस झील के 15-20 एकड़ एरिया में ही पानी बचा है।

जब कांवर सूख गया, पानी ही नहीं है तो इसके सहारे जीविकोपार्जन करने वाले हजारों मछुआरे परदेस की ओर पलायन कर गए हैं। 2000 परिवार प्रभावित है। पर्यटकों को घूमाने वाली नाव सूखी जगह पर जमा होकर अपने अस्तित्व की तलाश में है। परिंदे उड़ चुके हैं, तो मछलियां दम तोड़ चुकी है।

पानी के बगैर तड़प कर मर रहे सांप

हालत यह हो गई है कि काबर के पानी में हजारों की संख्या में पाए जाने वाले ढोरबा सांप पानी के बगैर तड़प कर मर रहे हैं। पानी सूख जाने पर किसानों को लगा की खेती आसान हो जाएगा। लेकिन जल स्तर इतना गिर गया है कि सिंचाई पर आफत आ गई है।

पानी में रहने वाले सांप ने दम तोड़ रहे हैं।

पशु-पक्षी, जीव-जंतु ही नहीं आम लोग भी त्राहिमाम कर रहे हैं। पक्षी विहार की। 15000 एकड़ से अधिक में फैला यह काबर झील चारों ओर से बखरी और मंझौल अनुमंडल के 16 गांव से घिरा हुआ है। बीच में जयमंगला माता का मंदिर श्रद्धा और विश्वास का केंद्र है।

बांध टूटने से पानी का बहाव हुआ था कम

काबर झील के पानी से जैव विविधता बनी रहती थी। आसपास के गांव में पानी का लेयर अच्छा रहता था। साल 2007 में जब बूढी गंडक नदी पर बसही में बना बांध काबर की ओर टूट गया तो नदी के बाद कीचड़ भर जाने से यहां पानी का भराव कम होता गया। आज स्थिति यह हो गई है की काबर पूरी तरह से सूख गया।

पहले गांव में हो बारिश होती थी तो वह पानी काबर झील में गिरता था। सड़कों के बनने और नालियां गांव के आसपास सिमट जाने के कारण वह पानी काबर में जाना बंद हो गया।

2000 मछुआरों का परिवार प्रभावित

एक तो झील परिक्षेत्र में भरा कीचड़ ऊपर से काबर में आने वाले जल स्रोतों के बंद होने और बारिश कम होने के कारण इस साल काबर सूख गया है। काबर में 16 गांव के 2000 से अधिक मछुआरा परिवार जुड़े हुए हैं। यह लोग काबर की प्रसिद्ध मछली को पकड़ कर अपना परिवार चलाते थे। सूख जाने से मछलियां समाप्त हो गई तो मछुआरे या तो दूसरे काम में लग गए या फिर पलायन कर गए। यहां बड़ी संख्या में लोग पर्यटन करने आते थे, नौका विहार करते थे।

नौका विकार के लिए 100 से अधिक नाव जयमंगला गढ़ टीला के नीचे लगी रहती थी। नाविक पर्यटकों को पूरे काबर का दौरा कराते थे। लेकिन वह सभी नाव अब सूखे में पड़ी हुई है। नाव के मालिक परेशान हैं कि उनकी संपत्ति बर्बाद हो रही है।

दिनभर कोशिश करने के बाद अपने साथियों के साथ करीब 2 सिंघी मछली लेकर आए गौरव ने बताया कि पानी सूख गया है, तो मछली नहीं मिलता है। पानी रहता था तो खूब मछली पकड़ कर जीवन यापन करते थे। जाल लगाकर मछली निकालते थे। हमारे पास नाव भी है, लेकिन पानी सूख गया तो नाव भी नहीं चल सकता है, न मछली मिलता है। अब मजदूरी करने के शिवा कोई उपाय नहीं है।

नाविक अर्जुन सदा ने बताया कि पानी में रहने वाले जीव-जंतु मर रहे हैं। बड़ी संख्या में सांप की मौत हो रही है। थोड़ा सा पानी बचा है बहुत दूरी में, जिसके कारण साइड के सांप-कीड़े मर रहे हैं।

150 लोग नाव चलाने का करते थे काम

सरकार पानी के लिए कोई उपाय नहीं करती है। हमारा काबर पूरी तरह से सूख गया है। तीन-चार साल से सूखना शुरू हुआ, मजदूर हैं, नाव चलाते थे। करीब डेढ़ सौ लोग हैं, जो काबर में नाव चलाकर गुजर-बसर करते हैं।

पानी सूख गया तो कुछ गांव में मजदूरी करते हैं, कुछ परदेस में काम करने के लिए चले गए हैं। 16 गांव के सैकड़ों मछुआरे काबर झील में मछली मार कर पालन पोषण करते थे। अभी सूख गया है तो रोजी-रोटी खत्म हो गई है। नाव चला कर रोज एक से दो हजार की आमदनी कर लेते थे।

चापाकल या बोरिंग से मवेशी को पिला रहे पानी

किसान राजो यादव ने बताया कि चैत के महीने से ही झील सूखना शुरू हो गया। इस बार बारिश भी नहीं हुआ, बारिश से ही यह अधिक डूबता था। जिसके कारण सूख गया, पानी नहीं मिल रहा है। हजारों पशुपालक मवेशी लेकर यहां रहते हैं। अब मजबूरी में चापाकल या बोरिंग से पानी पिला रहे हैं। पहले काबर में कभी फसल नहीं लगता था, हमेशा पानी लबालब रहा करता था।

बाबूलाल राम ने बताया कि 2007 के बाद धीरे-धीरे काबर की स्थिति बिगड़ती चली गई। 3 महीना पहले इस बार काबर सूख गया, जब से होश आया तब से देखते रहे कि सालों भर पानी रहता था। कभी सूखता नहीं था, 2007 में बाढ़ आया, उससे कीचड़ भर गया।

जल क्षेत्र में गाद भर गया तो यह सूखता चला गया। एक समय था जब यहां धान की कटनी करने दूसरे जिले से भी लोग आते थे। सूख जाने से काफी परेशानी है, मवेशी को पानी नहीं मिलता है। मछली नामी था, अब वह मछली नहीं मिल रहा है।

जमीन पर पड़ा है नाव

बरौनी से काबर झील घूमने आए यमुना प्रसाद ने बताया कि जयमंगला माता की पूजा-अर्चना करने आए। सोचे थे की काबर झील घूमेंगे, लेकिन यहां आकर देखा तो पूरा काबर झील ही सूखा हुआ है। काबर झील का बहुत नाम था, इसीलिए नाव से घूमने आए थे, लेकिन यहां नाव जमीन पर पड़ा हुआ है।

काबर के किसान और सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश विक्रम ने बताया कि पूरे एशिया में मीठे जल के लिए प्रसिद्ध हमारा यह काबर झील रोजगार का बड़ा साधन था। हजारों-हजार पर्यटक काबर की सैर करने आते थे। लेकिन पानी सूख जाने के कारण नाविक परदेस जाने को मजबूर हो गए हैं।

पानी रहता था तो किसान उससे खेत में सिंचाई करते थे, वह भी खत्म हो गया। यह क्षेत्र पानी के बिना सूना-सूना हो गया है। यहां का पानी और मछली औषधि के रूप में माना जाता था, लोग आते रहते थे। किसान, मजदूर, मछुआरा सब परेशान हैं। पानी नहीं रहने से न मछली निकलेगी, न खेत में पटवन हो सकेगा।

प्रकृति की खूबसूरती को फिर से करें बहाल

अविनाश कुमार गुप्ता ने बताया कि काबर सूखने का प्रभाव हर आम-आवाम पर पड़ा है। काबर महादलित समुदाय, बंदर और मछली के लिए जाना जाता है। पानी नहीं रहने के कारण मछुआरे और नाविक का व्यवसाय बंद हो गया है। नाविक का जीवन परेशान हो रहा है। इस पर कोई पहल नहीं हो रहा है। हम लोगों का हृदय रो रहा है। चाहता हूं कि प्रकृति की जो खूबसूरती यहां थी, उसे फिर से बहाल कराया जाए।

पर्यावरण विद् शिव प्रकाश भारद्वाज कहते हैं कि काबर सूखने का सबसे बड़ा कारण हम इंसानों का स्वार्थ है। जल ही जीवन है, यह सिर्फ कहने के लिए नहीं, हकीकत में होनी चाहिए। काबर में करोड़ों लीटर पानी जमा करके रखा जा सकता है। यह रामसर साइट एशिया में बड़ा मीठे पानी का सबसे बड़ा झील है। लेकिन हम लोग पानी को नहीं बचा पा रहे हैं।

स्थानीय लोगों को लगता है कि पानी के बचने से क्या फायदा होगा। को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनाकर काबर को संरक्षित किया जा सकता है।

पानी आने का रास्ता लोगों ने किया बंद

जल रहेगा तो पर्यटन का फैलाव होगा, मछुआरे और किसान समृद्ध होंगे। लेकिन इसके लिए वहां जल रोकने के लिए लोगों को प्रयास करना होगा। काबर सूखने का सबसे बड़ा कारण है कि पानी आने का रास्ता लोगों ने बंद कर दिया है।

बारिश का पानी जमा होता है तो उसे बाहर निकाल दिया जाता है। बरसात में पानी जमा नहीं होने देते, बरसाती पानी का जो कनेक्शन था, उसे ब्लॉक कर दिया गया है। काबर सूखने का बड़ा असर है। जल बचाने के लिए लोगों को आगे आना होगा। वहां मछली, मखाना, पर्यटन से पैसा आ सकता है। इसके लिए झील को पुनर्जीवित किया जाए।

डीएम ने विकास की कही बात

डीएम तुषार सिंगला ने बताया कि काबर झील का समेकित विकास किया जाएगा। मुख्यमंत्री प्रगति यात्रा में आए थे तो उन्होंने काबर का हवाई सर्वेक्षण किया, जानकारी ली। करीब साढ़े 35 करोड़ रुपए की लागत से इसका विकास किया जाएगा।

कैबिनेट से स्वीकृति मिल चुकी है। कार को जोड़ने वाले सभी नालों की उड़ाही कराई जाएगी। जिससे काबर झील को पर्याप्त जल मिलेगा। बूढ़ी गंडक नदी से काबर को कनेक्ट किया जाएगा। प्रवासी पक्षियों और अन्य जलीय जीवों के आश्रय के लिए बेहतर परिस्थिति तंत्र का विकास किया जाएगा। इको टूरिज्म, मत्स्य पालन, नरकट से हस्तशिल्प निर्माण, पक्षी मार्गदर्शन, नौकायन की योजना पर किया जाएगा।



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