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मक्का मस्जिद पर काबिज हो गए थे 300 हथियारबंद लड़ाके: 15 दिन बाद कब्जे से छुड़ा पाई सेना; इस हमले के बाद क्यों कट्टर बना सऊदी अरब


रियाद49 मिनट पहले

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सऊदी अरब में हज यात्रा का आज तीसरा दिन है। यह 4 से 9 जून तक चलेगी। अब तक 15 लाख से ज्यादा हज यात्री मक्का पहुंच चुके हैं। पिछले हादसों से सबक लेते हुए मक्का में इस बार सुरक्षा के हाइटेक इंतजाम किए हैं।

47 साल पहले मक्का में घटी एक घटना की वजह से सऊदी सरकार मक्का की सुरक्षा को लेकर खास फिक्रमंद रहती है।तब लगभग 300 हमलावरों ने मक्का पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने हजारों तीर्थयात्रियों को बंधक बना लिया था। इस घटना के बारे में विस्तार से पढ़िए…

तारीख- 20 नवंबर 1979

जगह- मक्का, सऊदी अरब

इस्लामिक कैलेंडर के 1400 साल पूरे हो रहे थे और नई इस्लामी सदी की शुरुआत हो रही थी। इस खास दिन पर दुनियाभर से लाखों मुसलमान हज करने मक्का पहुंचे थे। सुबह 5:15 बजे करीब 1 लाख लोगों ने मुसलमानों की सबसे पवित्र ग्रैंड मस्जिद में फज्र की नमाज पूरी की।

इसके कुछ ही मिनट बाद एक कट्टरपंथी नेता और उसके 300 हथियारबंद समर्थकों ने मस्जिद पर कब्जा कर लिया। उन्होंने हजारों तीर्थयात्रियों को बंधक बना लिया। वे सऊदी शासक को सत्ता से हटाने की मांग कर रहे थे।

शुरू के कुछ घंटे तक सऊदी सरकार को समझ ही नहीं आया कि क्या किया जाए। आखिरकार उन्होंने आतंकियों के खिलाफ एक्शन लेने का फैसला किया। दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद में दो हफ्ते तक भयंकर लड़ाई चली। सैकड़ों लोग मारे गए। आखिरकार सऊदी सेना ने मस्जिद पर फिर से कंट्रोल हासिल कर लिया।

ग्रैंड मस्जिद में घुसने वाले ये कट्टरपंथी कौन थे, उन्होंने सऊदी में तख्तापलट की कोशिश क्यों की, सरकार ने इसे कैसे नाकाम किया और इस एक घटना का सऊदी समेत पूरी दुनिया पर कितना बड़ा असर पड़ा?

1979 में मक्का की घेराबंदी के दौरान ग्रैंड मस्जिद की एक तस्वीर।

1979 में मक्का की घेराबंदी के दौरान ग्रैंड मस्जिद की एक तस्वीर।

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साथियों हमने मक्का, मदीना और जेद्दा पर कब्जा कर लिया है। हम आज इमाम महदी के आने की घोषणा करते हैं… वही इस जुल्म और नाइंसाफी से भरी धरती पर इंसाफ और बराबरी से हुकूमत करेंगे।

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जब जुहैमन अल-उतैबी ने माइक्रोफोन पर यह ऐलान किया तो वहां मौजूद हजारों लोग हैरान रह गए। जुहैमन सऊदी सेना का एक पूर्व सैनिक था, जो अब एक कट्टरपंथी बन चुका था। उसका मानना था कि सऊदी सरकार इस्लाम से भटक चुकी है और उसे हटाना जरूरी है।

उसने ग्रैंड मस्जिद पर कब्जे के बाद अपने बहनोई मुहम्मद अब्दुल्ला अल-खतानी को ‘महदी’ घोषित कर दिया। इस्लाम में महदी उस शख्स को कहा जाता है जो कयामत के दिन आता है और लोगों का उद्धार करता है।

कंस्ट्रक्शन का फायदा उठाकर हथियार भेजे

सऊदी सरकार हजयात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर 1950 के दशक से ही ग्रैंड मस्जिद के परिसर को और बड़ा कर रही थी। यह काम 1979 तक काफी हद तक पूरा हो चुका था, लेकिन कुछ जगहों पर निर्माण कार्य अभी भी चल रहा था।

जुहैमन ने इसका फायदा उठाया। जब इस्लामी नया साल शुरू होने ही वाला था और लोग मस्जिद में दुआ कर रहे थे, कई पिकअप ट्रक बिना किसी रुकावट के अंदर घुस गए। इनमें भारी मात्रा में असलहा-बारूद थे। कुछ हथियार ताबूतों में छिपाकर भी लाए गए थे। ये वही ताबूत थे जिन्हें अंतिम संस्कार की नमाज के लिए मस्जिद लाया जाता है।

ग्रैंड मस्जिद में किसी तरह का हथियार ले जाना मना है। यहां तक कि वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी के पास भी लाठी होती थी। ऐसे में 300 से ज्यादा हथियारबंद लड़ाकों ने कुछ ही मिनट में मस्जिद पर कब्जा कर लिया।

जुहैमन ने महदी के आने का ऐलान किया

जुहैमन ने ऐलान किया कि उसके लड़ाकों ने मक्का, मदीना और जेद्दा पर कब्जा कर लिया है। (मदीना और जेद्दा पर कब्जे की बात बाद में झूठी निकली।) फिर उसने ऐलान किया कि उनके साथ मौजूद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला अल-कहतानी ही ‘महदी’ हैं, यानी वह व्यक्ति जिसकी भविष्यवाणी हदीसों में की गई है, जो दुनिया से बुराई मिटाने आता है।

शुरुआत में सऊदी प्रशासन को भी समझ नहीं आया कि हालात से कैसे निपटा जाए। राजा खालिद को सुबह जब यह खबर दी गई तो उन्होंने तुरंत रक्षा मंत्री और गृह मंत्री को मस्जिद भेजने का आदेश दिया। सुबह 9 बजे तक मक्का के गवर्नर और बाकी बड़े अधिकारी हालात का जायजा लेने वहां पहुंच चुके थे।

उधर, नेशनल गार्ड और सऊदी सेना ने धीरे-धीरे मस्जिद को चारों ओर से घेरना शुरू कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय किसी को भी उतना गंभीर मामला नहीं लग रहा था। दरअसल, उन्हें आतंकियों की संख्या का अंदाजा नहीं था। इसके अलावा उन्हें यह भरोसा था कि महदी जैसी बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा।

सुबह 8 बजे जब एक पुलिस अफसर मस्जिद के पास पहुंचा तो एक स्नाइपर की गोली से घायल हो गया। कुछ ही देर में मस्जिद के चारों ओर से गोलियां चलने लगीं। हमले में आठ सुरक्षाकर्मी मारे गए और 36 घायल हो गए। तब अधिकारियों को मामले की गंभीरता का पता चला।

इसके बाद सऊदी के राजा खालिद ने सबसे पहले उलेमा यानी इस्लामी धर्मगुरुओं को बुलाया। दरअसल, पैगंबर मोहम्मद ने साफ कहा था कि मस्जिद में लड़ाई नहीं हो सकती। इसलिए मस्जिद को कब्जे से छुड़ाने के लिए ताकत का इस्तेमाल तभी किया जा सकता था, जब उलेमा इसकी इजाजत दें, लेकिन धर्मगुरुओं को यह फैसला लेने में 4 दिन लग गए।

ग्रैंड मस्जिद के बाहर अलर्ट की स्थिति में सऊदी सेना का बख्तरबंद वाहन।

ग्रैंड मस्जिद के बाहर अलर्ट की स्थिति में सऊदी सेना का बख्तरबंद वाहन।

मक्का को लेकर अमेरिका और ईरान में ठनी इस बीच अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 21 नवंबर को खबर चलाई कि हमलावर ईरान से आए हैं, उन्हें अयातुल्ला खुमैनी ने भेजा है। दूसरी ओर खुमैनी ने भी एक बयान दिया कि यह हमला के पीछे अमेरिका की साजिश हो सकती है, ताकि मुसलमानों के बीच फूट डाली जा सके।

अयातुल्ला खुमैनी का तुरंत असर हुआ। 21 नवंबर को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में लोगों ने अमेरिकी दूतावास पर हमला कर दिया और आग लगा दी। इसमें 2 अमेरिकी सैनिक समेत 4 लोग मारे गए। लीबिया में भी अमेरिकी दूतावास में आग लगा दी गई।

अब यह सिर्फ एक आतंकवादी हमला नहीं रह गया था, बल्कि एक धार्मिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय संकट बन चुका था। इन अफवाहों को रोकने के लिए 22 नवंबर को सऊदी अरब ने ऐलान कर कहा कि मक्का पर हुए हमले में अमेरिका, ईरान या किसी और देश का कोई हाथ नहीं है। हमला सिर्फ एक ऐसे गिरोह ने किया था जो इस्लाम की राह से भटक गया है।

इस्लामाबाद में गुस्साए लोगों ने अमेरिकी दूतावास को जला दिया।

इस्लामाबाद में गुस्साए लोगों ने अमेरिकी दूतावास को जला दिया।

तीसरे दिन शुरू हुआ एक्शन

ग्रैंड मस्जिद पर आतंकियों के कब्जे के दो दिन पूरे हो गए थे, लेकिन कई कोशिशों के बाद भी सऊदी फोर्स मस्जिद में घुस पाने में कामयाब नहीं हो पा रही थी। ऐसे में उन्होंने एक नया रास्ता अपनाने का फैसला किया।

उन्होंने मस्जिद के उस हिस्से से घुसने की योजना बनाई जो सफा और मरवा की पहाड़ियों को जोड़ता है। यह जगह हज करने वालों के लिए बहुत पवित्र होती है, क्योंकि वे यहां सात बार चक्कर लगाते हैं। यह रास्ता 380 मीटर लंबा और इतना चौड़ा था कि वहां से बख्तरबंद गाड़ियां भी अंदर जा सकती थीं।

22 नवंबर की सुबह यानी कि कब्जे के तीसरे दिन सऊदी सेना ने मस्जिद पर हमला शुरू किया, लेकिन उन्होंने बड़े बमों का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि ऐसे बम गिराए जो तेज रोशनी और तेज आवाज करते थे ताकि अंदर के उग्रवादी भ्रमित हो जाएं। इस माहौल में सैनिक सफा-मारवा गैलरी के पूर्वी हिस्से तक पहुंच गए। वे अल-सलाम गेट को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इसमें कई सैनिकों की जान चली गई।

बाद में सऊदी सेना ने मारवा गेट को बम से उड़ा दिया और अंदर घुसने में कामयाब हुई, लेकिन जैसे ही सैनिक अंदर घुसे, उन्हें गोली मार दी गई। तीसरे दिन भी सऊदी फोर्स मस्जिद को आजाद नहीं करा पाई।

मस्जिद में लड़ाई छेड़ने की इजाजत मिली

अगला दिन शुक्रवार था। इतिहास में पहली बार हुआ जब दुनिया की सबसे पवित्र मस्जिद से कोई उपदेश नहीं दिया गया। शुक्रवार की शाम उलेमा ने वह फतवा जारी कर दिया जिसकी मंजूरी राजा ने मांगी थी। फतवे में कहा गया कि अगर आतंकी समर्पण नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ मस्जिद में हिंसा का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पूरी तरह से इस्लामी है।

इसके बाद मस्जिद में लाउडस्पीकर से ऐलान किया गया कि आतंकवादी हथियार डाल दें, लेकिन जब उन्होंने मना कर दिया, तो सैनिकों ने मीनारों पर रॉकेट दागे, जिससे स्नाइपर्स को हटाया जा सका। तोपों से मस्जिद की दीवार में छेद किया गया और बख्तरबंद गाड़ियां अंदर भेजी गईं। कई घंटों की भीषण जंग के बाद मस्जिद के कई इलाके खाली कराए गए।

इस बीच आतंकी मस्जिद के नीचे चले गए जहां 225 से भी ज्यादा कमरे आपस में जुड़े हुए थे। यहां वे अच्छी तैयारी के साथ आए थे। उनके पास खाना, पानी और गोला-बारूद भरपूर था। सैनिकों ने उन्हें निकालने के लिए आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया, लेकिन इसका असर नहीं हुआ।

मास्क लगाकर मस्जिद के भीतर डालने की कोशिश करते सऊदी सैनिक।

मास्क लगाकर मस्जिद के भीतर डालने की कोशिश करते सऊदी सैनिक।

हमलावरों को खत्म करने फ्रांस से मदद ली गई जुहैमन और उसके लोग मस्जिद के हर कोने को अच्छे से जानते थे क्योंकि वे वहां पढ़ाई कर चुके थे। इस वजह से वे सैनिकों पर भारी पड़ रहे थे। कई दिनों तक कोशिश करने के बाद यह साफ हो गया कि कमरे-दर-कमरे लड़ाई में बहुत जानें जा सकती हैं। इसलिए एक नई रणनीति बनाई गई।

2 दिसंबर को फ्रांस से एक स्पेशल टीम मक्का पहुंची। वे अपने साथ एक खास गैस लेकर आए थे, CB गैस। यह गैस सांस लेने में तकलीफ देती थी और ज्यादा देर तक संपर्क में रहने पर जानलेवा भी हो सकती थी।

चूंकि ये फ्रांसीसी मुसलमान नहीं थे, इसलिए वे मक्का नहीं जा सकते थे। उन्होंने सऊदी खुफिया एजेंसी के लोगों को गैस के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी और उन्हें रासायनिक सुरक्षा के सूट और मास्क भी दिए। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया कि गैर-मुस्लिम कमांडो भी मक्का में घुसे। हालांकि उन्हें एंट्री के लिए नाममात्र का इस्लाम स्वीकार करना पड़ा।

3 दिसंबर की सुबह सऊदी सेना ने मस्जिद के फर्श में छेद करके यह जहरीली गैस तहखाने में फेंकी। ये तहखाने कई कमरों और गलियारों की भूलभुलैया जैसे थे। गैस की मदद से आतंकियों को बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन कमरे आपस में इतने जुड़े हुए थे कि यह तरीका पूरी तरह सफल नहीं हुआ।

4 दिसंबर को आखिरी ठिकाना भी तोड़ दिया गया। एक छोटे से कमरे में 20 बचे-खुचे आतंकवादी पाए गए। इनमें जुहैमन भी था। वे थके हुए थे, भूखे थे और लड़ाई की वजह से बहुत गंदे हो चुके थे।

ग्रैंड मस्जिद में जिंदा बच गए हमलावर। इन्हें कुछ दिन बाद फांसी दे दी गई।

ग्रैंड मस्जिद में जिंदा बच गए हमलावर। इन्हें कुछ दिन बाद फांसी दे दी गई।

15 दिन बाद मस्जिद से कब्जा छुड़ाया जा सका अंतिम कार्रवाई 5 दिसंबर को तब हुई जब उनके ‘महदी’ यानी कि मोहम्मद अल-खतानी का शव मिला। पता चला कि उसकी मौत बहुत पहले हो चुकी थी। हालांकि कभी यह पता नहीं चल पाया कि उसकी मौत कैसे हुई।

कुछ रिपोर्ट कहती हैं कि लड़ाई के दौरान एक ग्रेनेड से वह टुकड़े-टुकड़े हो गया और तड़पकर उसकी मौत हो गई। कुछ का मानना है कि जुहैमन ने ही उसे मार डाला ताकि वह जिंदा न पकड़ा जाए।

घटना के दो दिन बाद मस्जिद को फिर से नमाज के लायक बना दिया गया। 6 दिसंबर को राजा खालिद खुद मस्जिद पहुंचे, उन्होंने हजर अल-असवद को चूमा, काबा का तवाफ किया और जमजम का पानी पिया।

अगले दिन शुक्रवार की दोपहर, तीन हफ्ते बाद पहली बार हजारों लोग मस्जिद में नमाज पढ़ने आए। कुछ लोग तो पूरी रात मस्जिद के बाहर रुके थे ताकि वे इस ऐतिहासिक पल का हिस्सा बन सकें। इस नमाज को दुनिया के कई इस्लामी देशों में लाइव दिखाया गया।

मस्जिद में मोहम्मद अल-खतानी का शव इस हालत में मिला।

मस्जिद में मोहम्मद अल-खतानी का शव इस हालत में मिला।

26 बंधकों की मौत हुई, इसमें भारतीय भी शामिल इस पूरी लड़ाई में 127 सैनिक शहीद हुए और 451 घायल हुए। कई बंधक बचा लिए गए या भाग निकले, लेकिन 26 बंधक मारे गए। इनमें सऊदी नागरिकों के अलावा पाकिस्तान, भारत, इंडोनेशिया, मिस्र और बर्मा के तीर्थयात्री भी थे। 100 से ज्यादा लोग घायल हुए।

260 हमलावरों में से 117 मारे गए। इनमें से 90 की मौत वहीं हुई और 27 ने बाद में अस्पताल में दम तोड़ा। 9 जनवरी 1980 को सऊदी सरकार ने बताया कि मस्जिद पर हमला करने वाले 63 लोगों को आठ अलग-अलग शहरों में फांसी दे दी गई।

इसका मकसद यह दिखाना था कि यह सिर्फ एक शहर का मामला नहीं है, बल्कि पूरा देश इससे जुड़ा है। मारे गए लोगों में 41 सऊदी, 10 मिस्री, 7 यमनी, 3 कुवैती, और एक-एक सूडानी और इराकी नागरिक थे। सरकार ने साफ किया कि इनमें से कोई भी विदेशी अपनी सरकार के इशारे पर नहीं आया था, बल्कि उन्होंने गलत धार्मिक सोच के चलते ऐसा किया।

मक्का में 15 लोगों को फांसी दी गई, रियाद में 10 और बाकी को मदीना, दम्मम, बुरैदा, आभा, हेल और तबुक जैसे शहरों में फांसी दी गई। 19 लोगों की फांसी की सजा को जेल की सजा में बदल दिया गया। पकड़ी गई 23 महिलाओं और बच्चों में से महिलाओं को दो साल के लिए सुधार गृह भेजा गया, जबकि बच्चों को बाल संरक्षण संस्थानों में रखा गया। हमले के नेता जुहैमान को भी 9 जनवरी को मक्का में फांसी दी गई।

कट्टरता की राह पर चला सऊदी अरब इस घटना के बाद सऊदी सरकार को अपनी धार्मिक और राजनीतिक नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा। महिलाओं को टीवी पर दिखाना बंद कर दिया गया। मशहूर गायकों जैसे फेयरौज और समीरा तौफ़िक को भी टीवी पर दिखाना मना हो गया।

अरब न्यूज के पूर्व संपादक अलमाईना ने कहा कि इस घटना के बाद माहौल पूरी तरह बदल गया। उनका मानना था कि जुहैमन भले ही लड़ाई हार गया, लेकिन उसने विचारों की जंग जीत ली।

इस हमले ने सऊदी अरब को कट्टर इस्लाम की राह पर धकेल दिया। शाही परिवार ने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए उलेमाओं को शासन में शामिल किया, सामाजिक सुधारों को वापस लिया और इस्लामी नैतिक पुलिस को ज्यादा अधिकार दिए। सऊदी अरब ने दुनिया भर में कट्टर वहाबी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए लाखों डॉलर खर्च किए।

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