बिहार के वैशाली जिले का रामपुर श्यामचंद गांव। तारीख- 31 दिसंबर 2005 और वक्त रात के साढ़े 11 बजे। 15-16 लोग तेजी से एक घर की तरफ बढ़ रहे थे। उनके हाथ में गैलन, रस्सा, लाठी-डंडा, बोरी और बंदूक थी।
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5-6 लोग घर के छप्पर पर चढ़ गए और पेट्रोल उड़ेलने लगे। 3-4 लोगों ने बरामदे में सोए 50 साल के विजेंद्र महतो को दबोच लिया। उसकी छाती पर चढ़कर कूदने लगे। वह चीख उठा- ‘मालिक छोड़ दो, छोड़ दो।’
उन लोगों ने विजेंद्र को उठाया और ले जाकर तख्त पर पटक दिया। फिर रस्सी से कसकर बांध दिया। हट्टे-कट्टे एक आदमी ने पेट्रोल से भरा गैलन तख्त के चारों तरफ उड़ेलकर आग लगा दी। विजेंद्र जलने लगा। हमलावर उस आदमी को जगत राय बुला रहे थे।
अब कमरे के अंदर से एक महिला और कुछ बच्चों के चीखने की आवाजें आने लगीं। ‘कोई है क्या… हम जलकर मर जाएंगे, बचा लो हमें।’
हमलावर दरवाजे के सामने खड़े रहे। फायरिंग करते रहे। किसी गांव वाले की हिम्मत नहीं हुई वहां आने की। इधर, विजेंद्र के हाथों की खाल जलकर सिकुड़ने लगी थी। रस्सी जली तो वो उठकर भागा। तभी जगत राय ने गोली चला दी, लेकिन निशाना चूक गया।
अधजला विजेंद्र जैसे-तैसे घर से भाग गया। उसे पटना के पीएमसीएच हॉस्पिटल में भर्ती किया गया, लेकिन उसकी गर्भवती पत्नी और 6 बच्चे जलकर मर गए। 6 घंटे बाद भी पुलिस गांव नहीं पहुंची, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राघोपुर थाना प्रभारी नसरुद्दीन खान को सस्पेंड करने का आदेश दे दिया। सब इंस्पेक्टर अंजनी कुमार थाना प्रभारी बनाए गए। अंजनी कुमार उसी रोज अपनी टीम के साथ विजेंद्र के गांव पहुंचे। पुलिस हर दिन राघोपुर के अलग-अलग गांवों में दबिश देने लगी, लेकिन तीन महीना बीत जाने के बाद भी मुख्य आरोपी जगत राय और विपत राय को पकड़ नहीं पाई।
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘मृत्युदंड’ में राघोपुर नरसंहार केस के पार्ट-1 और पार्ट-2 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-3 में आगे की कहानी…
13 अप्रैल 2006, राघोपुर पुलिस ने एक चाल चली। जिन 6 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, पुलिस ने उन्हीं में से दो को जगत और विपत की जगह मुख्य आरोपी बना दिया। इसके बाद हाजीपुर सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी।
इधर, विजेंद्र की तबीयत बिगड़ती जा रही थी। सरकारी वकील आजम हुसैन ने कोर्ट से गुहार लगाई- ‘मेरे मुवक्किल का बयान जल्द दर्ज कर लिया जाए, उसकी हालत बिगड़ती जा रही है।’
कोर्ट ने विजेंद्र को बुलाने का आदेश दिया। पुलिस सुरक्षा में व्हीलचेयर पर बैठाकर विजेंद्र को कोर्ट लाया गया। उसने कोर्ट में बोलना शुरू किया- ‘जगत राय, विपत राय और बच्चा बाबू राय, तीनों ने मेरे परिवार को जला दिया। इनके साथ और भी लोग थे। जगत की पत्नी मौला देवी और विपत की पत्नी कृष्णा देवी भी थी।’
व्हीलचेयर पर बैठाकर विजेंद्र को कोर्ट लाया गया।
इतना कहने के बाद विजेंद्र कोर्ट रूम के बाहर व्हीलचेयर पर बैठ गया। तभी पुलिस के बनाए दोनों मुख्य आरोपी शिवशंकर राय और शिवधारी राय हाथ जोड़कर विजेंद्र के सामने खड़े हो गए। विजेंद्र धीमी आवाज में बोला- ‘असली दोषी तो जगतवा और विपतवा है। तु लोग तो साथ देने आया था।’ यानी असली दोषी तो जगत और विपत हैं। तुम लोग तो उसका साथ देने आए थे।
कोर्ट ने आईओ अंजनी कुमार और DIG गुप्तेश्वर पांडे को फटकार लगाते हुए कहा- ‘राज्य में इतना बड़ा नरसंहार हो गया। पुलिस 4 महीने बाद भी मुख्य आरोपी तक नहीं पहुंच पाई है। तुरंत सभी को गिरफ्तार किया जाए।’
पुलिस ने जगत और विपत के घर पर कुर्की-जब्ती का नोटिस चिपका दिया, लेकिन वो हाथ नहीं आए। इसी बीच विजेंद्र की मौत हो गई। आखिरकार घटना के करीब एक साल बाद 15 दिसंबर 2006 को पुलिस ने दिल्ली से जगत राय और विपत राय को गिरफ्तार किया।
विजेंद्र महतो की तरफ से पब्लिक प्रॉसिक्यूटर आजम हुसैन और बचाव पक्ष में एडवोकेट वीरेंद्र नारायण सिंह ने कोर्ट में मुकदमा लड़ना शुरू किया। हाजीपुर सेशन कोर्ट के फास्ट ट्रैक कोर्ट नंबर- 2 में करीब 3 साल ये मामला चला।
आजम हुसैन ने कोर्ट में दलील दी- ‘2005 की आखिरी रात, जब दुनिया नए साल का इंतजार कर रही थी, एक परिवार को जलाकर मार दिया गया। गर्भवती महिला, दुधमुहे बच्चे से लेकर 12 साल तक के 6 बच्चों समेत 8 लोगों को घर में बंद करके जिंदा जला दिया।
मरते-मरते मेरे मुवक्किल विजेंद्र ने कोर्ट को बताया कि विपत राय, जगत राय और बच्चा बाबू राय समेत कई लोगों ने मिलकर उसके पूरे परिवार को जलाया है।
12 साल की नीलम भाग रही थी। इन हैवानों ने उसे भी आग में झोंक दिया। विजेंद्र महतो के भाई विंदेश्वर महतो ने कोर्ट में बताया है कि उसने नीलम की आवाज सुनी थी। वह बचाओ-बचाओ चिल्ला रही थी। आखिर इन मासूमों ने इनका क्या बिगाड़ा था।’

कोर्ट में आजम हुसैन ने कहा- घर के अंदर बंद महिला और बच्चे चीख रहे थे और ये तीनों वहां खड़े तमाशा देख रहे थे।
आजम हुसैन थोड़ा रुके। गहरी सांस ली। फिर बोलना शुरू किया- ‘इस तरह का नरसंहार मैंने आज तक नहीं देखा। पूरे देश की नजर इस पर है। कोर्ट ऐसी सजा दे कि इसे नजीर की तरह पेश किया जाए। यह ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ है। माय लॉर्ड, इन शैतानों के लिए फांसी की सजा से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
ये 8 लोग किस कदर तड़प-तड़पकर मरे होंगे, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। भैंस चोरी का केस वापस नहीं लिया तो जला दिया। छोटी जाति का है तो जला दिया। यह सामंतवादी सोच मरनी ही चाहिए। हम 21वीं सदी के भारत में हैं।’
बचाव पक्ष में एडवोकेट वीरेंद्र नारायण सिंह ने तर्क दिया- ‘भैंस की लड़ाई वजीर राय से हुई थी, लेकिन इस पूरे अपराध में वजीर राय का नाम तक नहीं है। मेरे मुवक्किल को झूठे केस में फंसाया जा रहा है। शॉर्ट सर्किट से घर में आग लगी थी। पुलिस के पास कोई साइंटिफिक सबूत नहीं है, जिससे ये साबित हो कि जगत राय, विपत राय और बच्चा बाबू राय ने ही विजेंद्र महतो के परिवार को जिंदा जलाया है।
पीड़ित परिवार की तरफ से जो गवाह पेश किए गए हैं, उन्होंने आरोपियों को पीछे से भागते हुए देखा था। इस आधार पर वे कैसे पहचान कर सकते हैं कि वो जगत राय, विपत राय और बच्चा बाबू राय ही थे।’
एडवोकेट आजम हुसैन ने उन्हें टोकते हुए कहा- ‘हुजूर, फोरेंसिक रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि आग बिजली के शॉर्ट-सर्किट से नहीं, पेट्रोल छिड़क कर माचिस लगाने से लगी थी। डेड बॉडीज की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई है, उसमें लिखा है कि सभी की मौत जलने से हुई थी। राघोपुर प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर के डॉक्टर राजेंद्र कुमार की रिपोर्ट से भी साफ है कि जब विजेंद्र महतो को अधमरी अवस्था में लाया गया था, उनका शरीर पूरी तरह झुलसा हुआ था।
एडवोकेट आजम हुसैन ने मवेशियों की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट दिखाते हुए कहा- ‘वेटरनरी डॉक्टर ने बकरियों और मवेशियों का पोस्टमॉर्टम किया था। उस रिपोर्ट में भी ये साफ लिखा हुआ है कि जब पेट्रोल डाला गया तो कुछ छींटे बकरियों और मवेशी के ऊपर भी पड़े थे।
बचाव पक्ष की तरफ से कहा जा रहा है कि गवाहों ने पीछे की तरफ से इन लोगों को देखा। जिसे हम पहचानते हैं, 10-15 फीट की दूरी पर पीछे से भी उस व्यक्ति को पहचान सकते हैं। इसलिए इन तर्कों का कोई आधार नहीं है।’

बचाव पक्ष ने कोर्ट में कहा था- पुलिस के पास कोई साइंटिफिक सबूत नहीं है जो साबित करे कि जगत, विपत और बच्चा बाबू राय ही दोषी हैं।
17 सितंबर 2009 को हाजीपुर सेशन कोर्ट के एडिशन सेशन जज उपेंद्र भूषण मिश्र ने जगत राय, बिपत राय और बच्चा बाबू राय को दोषी करार दिया। मौला देवी, कृष्णा देवी समेत बाकियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
13 दिन बाद 30 अक्टूबर को सेशन कोर्ट ने फैसला सुनाया। एडिशनल जज उपेंद्र भूषण ने अपने फैसले में कहा- ‘जगत राय, विपत राय और बच्चा बाबू राय ने निर्ममता के साथ प्री-प्लांड तरीके से इन निहत्थों को जलाकर मार दिया। आरोपी ने जिस वक्त दरवाजा बंद करके घर के चारों तरफ पेट्रोल छिड़का, उसने एक बार भी नहीं सोचा कि कमरे में एक महिला है, जिसके गर्भ में 4 महीने का बच्चा पल रहा है। उसके साथ पांच बच्चे और हैं।
एक 12 साल की लड़की जो भाग रही थी, उसे पकड़कर आग की लपटों में झोंक दिया। भैंस चोरी के एक मामले के बदले 8 लोगों को जिस तरीके से जिंदा जलाया गया, ऐसा सिर्फ शैतान ही कर सकता है। इंसान नहीं कर सकता है। इन लोगों ने जानवरों को भी नहीं छोड़ा।
कमरे में बंद उन बच्चों और गर्भवती मां ने कितना दर्द झेला होगा, यह कल्पना से परे है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने बताया है कि कंकाल इस तरह से जमा थे, जैसे एक मां अपने सभी बच्चों को जलने से बचाने के लिए उनके ऊपर लेट गई हो।
पीड़ित परिवार की तरफ से 17 गवाह पेश किए गए हैं। सभी ने एक ही बात दोहराई कि उस रात इन तीन लोगों ने बाकियों के साथ मिलकर विजेंद्र महतो का घर जला दिया।
इस केस का चश्मदीद गवाह विजेंद्र महतो अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए उसके आखिरी बयान को सत्य माना जाएगा। कोर्ट जगत राय, विपत राय और बच्चा बाबू राय को मृत्युदंड की सजा देती है। इन तीनों को मरते दम तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए।’
एडिशनल सेशन जज उपेंद्र भूषण मिश्र ने सजा सुनाने के बाद मामले को कन्फर्मेशन के लिए पटना हाईकोर्ट भेज दिया। कोर्ट ने 19 अगस्त 2010 को सेशन कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दिया।
इसके बाद मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 20 सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा- ‘जिस तरह की क्रूरता से पूरे परिवार को जलाया गया, यह केवल न्यायिक विवेक को नहीं, समाज को भी झकझोरता है। इस मामले में किसी और सजा की गुंजाइश नहीं है।’
31 मई 2018 को तब के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीनों की दया याचिका खारिज करते हुए कहा- ‘कोई भी सजा जिंदा जलाए गए बच्चों के लिए पर्याप्त नहीं है।’
उसके बाद हाजीपुर सेशन कोर्ट ने तीनों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया, लेकिन इसमें दो टेक्निकल गलतियां बताकर मामले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। उसके बाद कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी।
दरअसल, डेथ वारंट में फांसी पर लटकाए जाने की जगह और समय नहीं था। इसी को आधार बनाते हुए कोर्ट ने डेथ वारंट पर रोक लगा दी। फिलहाल तीनों भागलपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। अभी भी इस मामले में पांच आरोपी फरार हैं। उनकी गिरफ्तारी आज तक नहीं हो पाई।
विजेंद्र महतो का एक बेटा पंकज जिंदा है। जिस वक्त ये घटना हुई थी, पंकज दिल्ली में था। अब वह, अपनी पत्नी किरण और बच्चों के साथ गांव में ही रहते हैं।
सरकार की तरफ से घर बनवाया गया। सरकारी नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन नहीं मिली। पंकज का कहना है कि आज भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला है। रोज-रोज जगत के परिवार के लोग आकर धमकी देते हैं।
(नोट- यह सच्ची कहानी, केस के जजमेंट, एडवोकेट आजम हुसैन और वीरेंद्र नारायण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र मानपुरी, विजेंद्र महतो के भाई बिंदेश्वर महतो, किरण महतो और बहन सीता देवी से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करके इस घटना को कहानी के रूप में लिखा है।)
‘मृत्युदंड’ सीरीज में अगले हफ्ते पढ़िए एक और सच्ची कहानी…
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राघोपुर नरसंहार केस की पहली और दूसरी कड़ी पढ़िए
1. मां और 6 बच्चों को जिंदा जलाया:परिवार चीखता रहा लेकिन गांववालों ने अपने दरवाजे किए बंद; अधजले पिता को मारी गोली, राघोपुर नरसंहार, पार्ट-1

बिहार में गंगा किनारे बसा रामपुर श्यामचंद गांव। जिला वैशाली। तारीख- 31 दिसंबर 2005 और वक्त रात के साढ़े 11 बजे। दुनिया नए साल का इंतजार कर रही थी। 15-16 लोग तेजी से एक घर की तरफ बढ़ रहे थे। उनके हाथ में गैलन, रस्सा, लाठी-डंडा, बोरी और बंदूक थी। पढ़िए पूरी कहानी… 2. सफेद पोटली खोली तो निकलीं हड्डियां और राख:कोने में पड़ा था अधजला हाथ, राबड़ी के इलाके में 6 बच्चे जिंदा जलाए; राघोपुर नरसंहार पार्ट-2

विजेंद्र की खाल जलकर उधड़ चुकी थी। विंदेश्वर और किरण महतो उसे लेकर पटना के सरकारी अस्पताल PMCH पहुंचे। अस्पताल पहुंचते ही विंदेश्वर ने डॉक्टर के पैर पकड़ लिए। बिलखते हुए कहा- ‘मेरे भाई को जला दिया… पूरे परिवार को जला दिया। इसे बचा लो साहब।’ डॉक्टर ने विजेंद्र को एडमिट कर लिया। पढ़िए पूरी कहानी…