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Kailash Mansarovar Yatra 2025: कैलाश मानसरोवर यात्रा कोई मात्र तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि एक साधना है. यह एक ऐसी साधना है, जो ईश्वर और भक्त के बीच के प्रेम को दर्शाती है. ये यात्रा दर्शाती है कि रास्ते में कितनी भी समस्याएं क्यों ना आ जाएं, भक्त का ईश्वर से मिलने का हठ हर समस्या को छोटा बना देता है. 5 साल बाद कैलाश-मानसरोवर यात्रा शुरू हो गई है और साल 2025 में कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 15 बैच रवाना होंगे.
कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 लगभग पांच साल के बाद फिर से शुरू हो गई है. आज सिक्किम के रास्ते कैलाश मानसरोवर के लिए श्रद्धालुओं का पहला जत्था रवाना कर दिया गया है. यह धार्मिक यात्रा अगस्त 2025 तक चलेगी यानी केवल 3 महीने तक. देशभर से आए 35 श्रद्धालुओं ने सोमवार को गंगटोक से नाथुला के रास्ते 18वें माइल अनुकूलन केंद्र के लिए यात्रा शुरू की. कैलाश मानसरोवर के श्रद्धालुओं को भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस और सिक्किम पर्यटन विकास निगम के अधिकारियों ने सोमवार को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. 35 श्रद्धालु रविवार शाम को गंगटोक पहुंचे. ये श्रद्धालु 20 जून को तिब्बत में प्रवेश करेंगे. नाथुला के रास्ते तिब्बत में प्रवेश से पहले 18वें माइल और शेरथांग में दो अनुकूलन केंद्रों पर ठहरेंगे.

साल 2025 में कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए 15 बैच रवाना होने हैं, जिसमें हर बैच में 50 यात्री शामिल रहेंगे. 5 बैच उत्तराखंड राज्य से लिपुलेख दर्रे को पार करते हुए और 10 बैच सिक्किम से नाथुला दर्रे को पार करते हुए यात्रा करेंगे. यात्रा जून से अगस्त 2025 के दौरान आयोजित की जाएगी. विदेश मंत्रालय के अनुसार, केएमवाईडॉटजीओवीडॉटइन वेबसाइट पर आवेदन स्वीकार किए जा रहे हैं. साल 2015 के बाद से ऑनलाइन आवेदन होते हैं. कंप्यूटरीकृत प्रक्रिया के जरिए ही यात्रियों के रूट और बैच तय होते हैं, जिसमें बाद में आमतौर पर बदलाव नहीं होता. हालांकि जरूरी होने पर चयनित यात्री बैच में परिवर्तन के लिए अनुरोध कर सकते हैं, लेकिन ये परिवर्तन खाली स्थान उपलब्ध होने पर ही किया जाता है.

कैलाश मानसरोवर यात्रा अपने धार्मिक मूल्य और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है. भगवान शिव के निवास के रूप में हिंदुओं के लिए ये महत्वपूर्ण स्थान है. सिख पंथ, जैन और बौद्ध अनुयायियों के लिए भी कैलाश मानसरोवर यात्रा का धार्मिक महत्व है. इन सभी के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष का मार्ग मानी जाती है. कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास माना गया है, जहां वे माता पार्वती के साथ समाधि में स्थित रहते हैं. शिवलिंग के रूप में कैलाश पर्वत स्वयं प्रकृति द्वारा निर्मित शिव-स्वरूप है.

स्कंद पुराण में वर्णित है कि ‘कैलासं शिवपूजां च यदि कश्चित् करिष्यति, सप्तजन्मकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।’ अर्थात कैलाश यात्रा मात्र से ही सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. यात्रा में मानसरोवर नामक एक झील भी आती है. यह झील ब्रह्माजी की मन से उत्पन्न हुई थी इसलिए इसे मान सरोवर कहा जाता है. मानस का अर्थ ही है मन से उत्पन्न. यह जल तीर्थ स्नान और तपस्या के लिए अत्यंत शुभ माना गया है.

बौद्ध धर्म में कैलाश को कहा गया है कांग रिंपोछे. इसका अर्थ है कीमती रत्नों से युक्त पर्वत. बौद्ध परंपरा में इसे चक्रसंवारा और वज्रयोगिनी का पवित्र स्थान माना जाता है. मान्यता है कि गुरु पद्मसंभव ने यहीं साधना की थी और इसे शक्ति के केंद्र के रूप में स्थापित किया. जैन धर्म में अष्टापद (कैलाश के समीप) वह स्थान है, जहां प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने मोक्ष प्राप्त किया था. जैन ग्रंथों में यह क्षेत्र मोक्षभूमि के रूप में वर्णित है, जहां आत्मा सदा के लिए बंधनों से मुक्त हो जाती है. वहीं कुछ सिख परंपराओं में गुरु नानक देवजी की यात्राओं में कैलाश का भी उल्लेख आता है, जहां वे योगियों से संवाद करते हैं.