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फलों की खेती को बढ़ाकर पोषण की कमी को पूरा करने में किसान योगदान दे सकते हैं। यहां स्थित पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू) का फल विज्ञान विभाग किसानों को फलों की काश्त करने और कम स्तर पर बिजाई की जाने वाली फसलों से अधिक मुनाफा कमाने के लिए प्रेरित कर रहा है। सूबे में 99758 हेक्टेयर में फलों की खेती की जा रही है, जिसमें आंवला के तहत 945 हेक्टे. व अन्य फलों के अंतर्गत 8284 हेक्टे. क्षेत्र है।
पीएयू के स्कूल ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग के फल विज्ञानी डॉ. कुलदीप सिंह भुल्लर ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) देश में कुपोषण की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है। इस मुद्दे को हल करने के लिए टिकाऊ विकास लक्ष्य अपनाने का निर्णय लिया गया है। संतुलित आहार में फल एक अहम स्थान रखते हैं।
पंजाब में महत्वपूर्ण फलों के तहत तो काफी क्षेत्र है, लेकिन किसान माइनर फलों की फसलों जैसे आंवला, बेल, अंजीर, फालसा, लोकाट, खजूर और जामुन की फसलों को बढ़ा सकते हैं। इनके फलों की सीधी मार्केटिंग से वे अहम फसलों किन्नू इत्यादि से भी कहीं ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
फसल चक्र को छोड़कर जैविक कृषि की तरफ जा रहे किसान फलों की ऑर्गेनिक खेती की तरफ जा रहे हैं। डॉ. भुल्लर के मुताबिक, जैविक खेती की तरफ जा रहे किसान उन फलों की फसलों में आ सकते हैं, जो उन्हें बड़े स्तर पर मुनाफा दे। मुख्य फलों की खेती में किसानों को पर्यावरण में आ रहे बदलावों के कारण समस्याएं देखने को मिलती हैं।
जैसे मिट्टी में खारापन, पर्यावरण बदलाव, अनियमित बारिशें, बढ़ रहा तापमान, बाढ़ और सूखे के कारण बढ़ रहे प्रभाव तेज हो गए हैं। इनके कारण बड़े क्षेत्र में फलों की खेती कर रहे किसानों को प्रभाव देखने को मिलता है। इससे कई बार मुनाफे पर असर पड़ता है। अगर किसान अहम फलों की फसलों से हटकर अन्य फलों की फसलों पर जाते हैं तो इससे पोषण सुरक्षा में भी योगदान दिया जा सकेगा।
