‘चुनाव खत्म होने के बाद कश्मीर से सिक्योरिटी फोर्स कम हो गई। फोर्स हटते ही आतंकियों ने घाटी में हमले शुरू कर दिए। वे अलग-अलग इलाकों में अपनी मौजूदगी बताना चाहते हैं। इन हमलों के जरिए वे दिखाना चाहते हैं कि कश्मीर अब भी उनका गढ़ है।’
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जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों की वजह बता रहे रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी का मानना है कि कश्मीर में हमारा इंटेलिजेंस बहुत मजबूत है। आतंकी ज्यादा दिन बच नहीं सकेंगे।
बीते दो हफ्ते में बारामूला, त्राल, शोपियां, अखनूर और गांदरबल मिलाकर 5 आतंकी हमले हुए। इनमें 3 जवान शहीद हुए हैं। आतंकियों ने दूसरे राज्यों से काम के लिए आए 8 लोगों को भी मार दिया।
8 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। 10 दिन बाद 18 अक्टूबर से घाटी में आतंकी हमलों का सिलसिला शुरू हो गया। लोकसभा चुनाव के बाद भी यही पैटर्न दिखा था। तब टारगेट जम्मू था। 4 जून को लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आया और 5 दिन बाद 9 जून से आतंकी हमलों का दौर शुरू हो गया। महज 30 दिनों में जम्मू में 7 आतंकी हमले हुए।
चुनाव जब तक चले, तब तक आतंकी हमले रुक गए। एक्सपर्ट चुनाव के बाद हमले बढ़ने की वजह सिक्योरिटी फोर्स कम होना मानते हैं। उनका ये भी मानना है कि हमलों के पीछे लोकल नहीं, पाकिस्तान से घुसपैठ करके आ रहे आतंकी हैं।
आतंकी हमलों के अचानक कश्मीर में हुए शिफ्ट की वजह क्या है, हमलों का पैटर्न क्या है, इसमें कौन से आतंकी संगठन शामिल हैं, इन हमलों के जरिए इनका मकसद क्या है, ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने सिक्योरिटी फोर्स के अफसरों और एक्सपर्ट्स से बात की।
सबसे पहले कश्मीर में हुए बड़े आतंकी हमलों की बात… विधानसभा चुनाव के बाद 5 हमले, निशाने पर सिक्योरिटी फोर्स और गैर कश्मीरी जम्मू-कश्मीर में 18 अक्टूबर से अब तक करीब 5 हमले हो चुके हैं। ज्यादातर हमलों में निशाने पर सिक्योरिटी फोर्स के जवान और गैर कश्मीरी रहे। हमलों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट और द रेजिस्टेंस फ्रंट ने ली है।
खुफिया एजेंसियों ने पहले ही बताया था कि टारगेट किलिंग पाकिस्तान की कश्मीर में अशांति फैलाने की साजिश है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसका मकसद आर्टिकल-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में बदले माहौल को खराब करना और कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की योजनाओं में अड़ंगा लगाना है।

लोकसभा चुनाव के बाद जम्मू में हुए आतंकी हमले इससे पहले जम्मू में भी यही पैटर्न देखने को मिला था। लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद 9 जून को जम्मू के रियासी में आतंकियों ने तीर्थ यात्रियों से भरी बस को निशाना बनाया था। हमले में 9 यात्रियों की मौत हुई थी।
इसके बाद लगातार एक महीने में जम्मू में 6 से 7 आतंकी हमले हुए। कठुआ, डोडा, राजौरी में आतंकियों ने आर्मी और स्टेट फोर्स को टारगेट किया।

एक्सपर्ट बोले- चुनाव के बाद फोर्स कम होने का फायदा उठा रहे आतंकी कश्मीर में बढ़े आतंकी हमलों को लेकर हमने रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी से बात की। वे कहते हैं, ‘लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में सिक्योरिटी फोर्स, पैरामिलिट्री, पुलिस, आर्मी और बाकी एजेंसियों की तैनाती की गई थी। चप्पे-चप्पे पर फोर्स मौजूद थी। करीब सभी इलाके सील थे। इस दौरान आतंकियों को हमला करने का मौका नहीं मिला।‘
‘ये लाइन ऑफ कंट्रोल से आने वाले नए घुसपैठिए हैं। उनकी लाइफ ज्यादा नहीं है। राजौरी के साउथ और पीर पंजाल रेंज से सुरक्षाबलों को हटा दिया गया था। इसी रास्ते से ये देश में दाखिल हुए होंगे।‘

जीडी बख्शी कहते हैं, ‘पुलवामा हमले के बाद जैसे हमने बालाकोट एयर स्ट्राइक की थी, उसी तरह इसका जवाब देने की जरूरत है। सर्जिकल स्ट्राइक LOC के पार होनी चाहिए, न कि हमारी सीमा में ताकि इसके नतीजे गंभीर हों।‘
‘2003-04 की बात है। उस वक्त मैं जम्मू के किश्तवाड़ में सेक्टर कमांडर था। तब हमने आतंकवाद की कमर तोड़ दी थी। रीजन में आतंकी संगठनों के सभी टॉप कमांडर मारे गए थे। कुछ ही महीनों बाद फोर्स की कमी की वजह से आतंकवाद फिर शुरू हो गया।‘

आतंकी हमले पाकिस्तान की साजिश, दोनों रीजन पर फोकस जरूरी जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP के. राजेंद्र कुमार कहते हैं, ‘हमें जम्मू और कश्मीर दोनों रीजन में अलर्ट रहना चाहिए। अपने इंटेलिजेंस मजबूत करने के साथ ही ऑपरेशंस शुरू करने चाहिए। हमें घुसपैठ विरोधी नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत है ताकि LOC पार करके आने वाले आतंकियों पर रोक लग सके।‘
‘हम किसी एक रीजन पर फोकस नहीं रख सकते। हम जम्मू में ऑपरेशन शुरू करते हैं, तब आतंकी कश्मीर में अपने स्लीपर सेल्स और लोकल टेररिस्ट को मजबूत कर बेस बनाने लगते हैं। इसलिए हमें दोनों रीजन पर बराबर फोकस और दबाव बनाकर रखना चाहिए। आतंकियों ने जम्मू में अटैक शुरू किए तो पूरा अटेंशन वहीं शिफ्ट हो गया। इससे कश्मीर में खालीपन पैदा हुआ।’

राजेंद्र भी सर्जिकल स्ट्राइक की सलाह देते हुए कहते हैं, ‘कश्मीर में हिंसा और आतंकी गतिविधियां पाकिस्तान की साजिश का हिस्सा हैं। इसे रोकने के लिए हमें फिर से LOC के पार उसी तरह की सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत है, जैसी उरी और पुलवामा हमलों के बाद की गई।‘
आतंकी हमलों पर सेना का रुख… घाटी में अमन-चैन से दुश्मन परेशान, आतंकी हमले इसी का नतीजा करीब 15 साल से जम्मू में शांति थी। कश्मीर के मुकाबले सेना की तैनाती भी न के बराबर थी। इस दौरान घुसपैठ करके आए आतंकियों ने घने जंगलों में ठिकाने बना लिए। ये जंगल उनके लिए सॉफ्ट टारगेट थे, जहां वे आसानी से सेटअप जमा सकें और अपना नेटवर्क मजबूत कर सकें।
एक साल से जम्मू-कश्मीर में खासतौर से नॉर्थ कश्मीर में घुसपैठ की कोशिशें बढ़ी हैं। नॉर्थ कश्मीर में बांदीपोरा, कुपवाड़ा, बारामूला और किश्तवाड़ जैसे जिले आते हैं। ये सभी आतंकवाद से प्रभावित रहे हैं।
इस पर सेना के स्पोक्सपर्सन लेफ्टिनेंट कर्नल एमके साहू कहते हैं, ‘पाकिस्तानी आतंकी इन हमलों के जरिए शांति और स्थिरता का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं। सेना ने इन हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया है।’

वहीं, सेना के नॉर्दर्न कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिंद्र कुमार कहते हैं, ‘जम्मू-कश्मीर में सेना और बाकी एजेंसियों की कड़ी मेहनत की वजह से शांति कायम हुई है। यही वजह है कि आतंकी हमलों के जरिए इसमें खलल डालने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मकसद लोगों में खौफ पैदा करना है।’
वे बताते हैं कि 21 अक्टूबर को श्रीनगर के यूनिफाइड हेडक्वार्टर्स में हुई बैठक में कश्मीर में बढ़ते आतंकी हमलों को लेकर बातचीत की गई थी। आतंकी खतरों निपटने के लिए रणनीति बनाई गई है। हमारा फोकस हमलों के सिलसिले को तोड़ना और आतंकी नेटवर्क को खत्म करना है।
लेफ्टिनेंट जनरल बताते हैं, ‘पिछले 5 साल में सिक्योरिटी फोर्सेज ने जम्मू-कश्मीर में 720 आतंकी मारे हैं। अब तक जैसी जानकारी है, उसके हिसाब से 120 से 130 आतंकी बचे हुए है। आतंकियों के रिक्रूटमेंट के आंकड़े सिंगल डिजिट में आ गए हैं।‘

LG बोले- हमलों के पीछे पाकिस्तान, आतंकी नेटवर्क तबाह करेंगे घाटी में हमलों पर जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा कहते हैं, ‘पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले कराने से बाज नहीं आ रहा है। घाटी में निर्दोषों के बहाए गए खून के एक-एक कतरे का बदला लिया जाएगा। हम आतंकी नेटवर्क को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।‘
LG ने कहा कि आतंकी नेटवर्क के खिलाफ फोर्सेज को और मजबूत करना सरकार की प्राथमिकता है। BSF, आर्मी, पुलिस और बाकी एजेंसियों के बीच कोऑर्डिनेशन बढ़ाकर ही ये हो सकेगा।
पिछले 5 सालों से ये आतंकी ग्रुप एक्टिव मार्च, 2023 में राज्यसभा में सवालों का जवाब देते हुए सरकार ने UAPA के तहत बैन किए गए इन आतंकी संगठनों के नाम बताए और इससे जुड़ी जानकारी दी।
1. द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF): ये 2019 में अस्तित्व में आया। भारत सरकार का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये आतंकी संगठन सुरक्षाबलों के जवानों की हत्या, निर्दोष नागरिकों की हत्या, आतंकी गतिविधियों के लिए सीमा पार से ड्रग्स और हथियार की तस्करी में शामिल रहा है। भारत सरकार ने इस गुट को UAPA के तहत बैन किया है।
2. पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF): ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये भी 2019 में बना था। ये कश्मीर में युवाओं को आतंकी गुट में रिक्रूट करने और हथियारों की ट्रेनिंग देने का काम करता है। ये सुरक्षाबलों, राजनेताओं और लोगों को धमकियां जारी करता है। सरकार ने इसे UAPA के तहत बैन कर रखा है।
3. जम्मू एंड कश्मीर गजनवी फोर्स (JKGF): ये गुट 2020 में बना। इसका काम अलग-अलग आतंकी संगठनों जैसे-लश्कर और जैश के कैडर का इस्तेमाल कर टेरर एक्टिविटीज को अंजाम देना है। भारत सरकार ने इस गुट को भी UAPA के तहत बैन किया है।
4. कश्मीर टाइगर्स (KT): कश्मीर टाइगर्स भी जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी टेरर ग्रुप है। कश्मीर टाइगर्स ने ही कठुआ में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है।

हमले के बाद सेना ने मार गिराए 3 आतंकी जम्मू-कश्मीर के अखनूर में सोमवार को सुरक्षाबलों ने 3 आतंकियों को मार गिराया। इन आतंकियों ने सुबह 7:26 बजे लाइन ऑफ कंट्रोल के पास भट्टल इलाके में आर्मी एंबुलेंस पर फायरिंग की थी। फायरिंग के बाद आतंकी जंगल की ओर भाग गए थे। सेना ने इलाके को घेरकर सर्च ऑपरेशन चलाया। करीब 5 घंटे बाद तीनों आतंकियों को ढेर कर दिया गया।
करीब एक साल पहले जम्मू-कश्मीर के बारामूला, राजौरी और अनंतनाग में आतंकी हमले बढ़े थे। तब दैनिक भास्कर ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व DGP एसपी वैद्य से सेना के ऑपरेशंस पर बात की थी। एसपी वैद्य ने आतंकियों के एनकाउंटर की प्रोसेस के बारे में बताया था।
1. इन्फॉर्मेशन और वेरिफिकेशन: सबसे पहले सोर्स से आतंकियों के मूवमेंट या छिपे होने की जानकारी आती है। बतौर अधिकारी हमारी जिम्मेदारी ये पता करना है कि जानकारी कितनी पुख्ता है। मैंने अपने तजुर्बे से समझा है कि कई बार सोर्स भी आतंकियों से मिले होते हैं।
हम अलग-अलग तरीकों से उस जानकारी को जांचते-परखते हैं। टेक्निकल सपोर्ट और इंटेलिजेंस के जरिए जानकारी वेरिफाई करते हैं। ये पता करना जरूरी होता है कि ठिकाने पर कितने आतंकी छिपे हो सकते हैं, उनके पास कितने हथियार हैं। उसी के मुताबिक टीम, लॉजिस्टिक और हथियारों की तैयारी करते हैं।
जम्मू-कश्मीर में कोई भी एनकाउंटर जॉइंट ऑपरेशन के तहत होता है। सेंट्रल पैरा फोर्स, सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस इस जॉइंट ऑपरेशन का हिस्सा होती हैं। एनकाउंटर ऑपरेशन में फोर्स का आपसी तालमेल सबसे अहम होता है। किसी एक फोर्स का सीनियर मोस्ट अफसर एनकाउंटर की अगुआई करता है।
ऑपरेशनल प्लानिंग: जानकारी पुख्ता होती है तो फिर एनकाउंटर की प्लानिंग शुरू होती है। मैप पर आतंकियों के ठिकाने को लोकेट करते हैं, जैसे वहां क्या-क्या फीचर्स हैं, एरिया कैसा है। पहले से सब तय किया जाता है कि कौन सी प्लाटून कहां से चढ़ेगी, किसका मूवमेंट कहां होगा, कौन सी पार्टी कवर देगी। इसके अलावा दो लेवल की घेराबंदी यानी कॉर्डन की जाती है।
एनकाउंटर का इंचार्ज अफसर ही अलग-अलग टुकड़ियों के टास्क तय करता है और इसी के ऑर्डर पर एक इनर कॉर्डन और दूसरा आउटर कॉर्डन तैयार होता है। घेराबंदी इसलिए जरूरी है, ताकि कोई आतंकी भागने ना पाए।
सरप्राइज एलिमेंट: एनकाउंटर में सबसे अहम होता है सरप्राइज एलिमेंट। अगर आतंकियों को पहले से पता चल गया कि फोर्स आ रही है, तो वो सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला कर सकते हैं। उन्हें तैयार होने का वक्त भी मिल जाता है। सुरक्षाबलों का पहला फायर इतना तगड़ा होना चाहिए कि आतंकी हैरान रह जाएं और उन्हें बचने का मौका न मिले।
एनकाउंटर में रिस्क फैक्टर सबसे ज्यादा होता है, लेकिन जरूरी है कि जवान अच्छे से तैयार हों। बुलेट प्रूफ जैकेट, मॉडर्न राइफल, नाइट विजन कैमरा, ड्रोन सर्विलांस, एरिया वेपन ये सारी चीजें उनके पास होनी चाहिए।
स्टैंडबाई मेजर्स: एनकाउंटर पर जाने से पहले ही कम्युनिकेशन चैनल, मोबाइल एंबुलेंस, एयरलिफ्ट फैसिलिटी तैयार कर ली जाती है, ताकि ऑपरेशन के दौरान कोई जवान जख्मी होता है, तो उसे तुरंत रेस्क्यू किया जा सके। अगर एनकाउंटर लंबा चलता है तो रसद सप्लाई का भी इंतजाम होता है। हर 8-10 घंटे में सर्च पार्टी बदलनी होती है। ऊंचाई वाले इलाकों में पार्टी रीप्लेसमेंट सबसे जरूरी है।
……………………………………. जम्मू में हमले बढ़ने पर दैनिक भास्कर ने ये ग्राउंड रिपोर्ट की थी, आप इसे भी पढ़ सकते हैं… हिंदू गांव आतंकियों के निशाने पर, कश्मीर में क्या है लश्कर-जैश की नई स्ट्रैटजी

बीते कुछ साल में आतंक का शिफ्ट कश्मीर से जम्मू रीजन में हो रहा है और निशाने पर हिंदू गांव हैं। आतंकी हमलों की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर, द रजिस्टेंस फ्रंट जैसे नए नाम वाले गुट ले रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में पिछले 20 साल में तीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। 2019 के बाद आतंकी गुटों ने प्रॉक्सी नाम रखने शुरू किए। पढ़िए पूरी खबर..