रविवार को विदिशा में आंवला नवमी का पर्व भक्तिभाव और श्रद्धा से मनाया गया। इस अवसर पर सालों पुरानी परंपरा का निर्वाहन किया गया। श्री रामलीला मेला समिति ने उदयगिरि परिक्रमा की, जिसमें शहर के 72 मंदिरों के ध्वजा लेकर श्रद्धालु शामिल हुए। लोगों ने आंवला
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जानकारी के अनुसार पिछले 134 सालों से उदयगिरी परिक्रमा की परंपरा चली आ रही है। इस परिक्रमा में शहर के मंदिरों के रंगबिरंगे ध्वज लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। श्रद्धालु हाथ में ध्वज लिए भजन करते हुए उदयगिरी की परिक्रमा करते हैं।
इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले मंदिरों में भगवान की पूजन की जाती है। उदयगिरी की परिक्रमा के बाद रामलीला मेला परिसर में ध्वज की आरती की जाती है। आंवला नवमी पर उदयगिरी में एक मेले का आयोजन होता है, जिसमें आसपास इलाके के लोग शामिल होते हैं।
1890 से हो रहा आयोजन
परिक्रमा में शामिल लोगों ने बताया कि श्री रामलीला मेला के प्रधान संचालक रहे स्वर्गीय पंडित विश्वनाथ शास्त्री द्वारा वृंदावन की तर्ज पर सन 1890 में उदयगिरि परिक्रमा और निशान यात्रा शुरुवात की थी । इसका उद्देश्य पुराने धार्मिक स्थलों का रखरखाव वेत्रवती और प्रकृति संरक्षण था। यह परिक्रमा आज भी बड़े हर्ष उल्लास के साथ निकाली जाती है।
रामलीला मेला समिति के उप संचालक पंडित सुधांशु मिश्र ने बताया कि 18 किलोमीटर की इस परिक्रमा का उद्देश्य सभी मंदिरों के निशान को एक साथ लाना है। नृसिंह शिला जो काफी प्राचीन है और एक ही पत्थर पर उकेरी गई है, वहां काव्य पाठ भी किया जाता है।

कोविड में भी अनवरत चली परिक्रमा
उन्होंने बताया कि 1895 से 2001 तक प्लेग नामक बीमारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया था। वहीं 2019 से 2021 तक कोविड की बीमारी में सबको घेरा था। लेकिन, उस दौरान भी यह यह यात्रा और उदयगिरि परिक्रमा अनवरत रूप से निकाली गई।
राजपुरोहित पंडित मनोज शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास सर्वोत्तम और शुभ फलदायी है। अक्षय नवमी पर किए गए कोई भी दान-पुण्य का कभी क्षय नहीं होता, शहर के सभी मंदिरों को एकजुट करने और उन्हें साथ लाने के उद्देश्य से शुरू की गई इस निशान यात्रा के दौरान सभी निशान एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और हेमा मालिनी डैम के रास्ते से होते हुए उदयगिरि की परिक्रमा करते हैं। पंडित विश्वनाथ शास्त्री के निवास पर निशान यात्रा का समापन किया जाता है।