हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जीतने के बाद RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) बिहार में एक्टिव हो गया है। यहां संघ ने चुपचाप बीजेपी को राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनाने के मिशन के साथ अपने अभियान में जुट गया है।
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इसके लिए दिल्ली-हरियाणा से अलग रणनीति बनाई गई है। RSS बिहार को जीतने के लिए 3S शक्ति, शाखा और संपर्क फॉर्मूले पर काम कर रहा है। इसके जरिए अगले 8 महीने तक संघ की कोशिश बिहार के हर घर पर दस्तक देने की है। हालांकि, संघ से जुड़ा कोई भी पदाधिकारी इस पर औपचारिक तौर पर कुछ भी बोलने से बच रहा है।
दैनिक भास्कर ने RSS के नगर से लेकर प्रांत और क्षेत्र स्तर तक के अपने सोर्स से बात की और उनकी प्लानिंग को समझने की कोशिश की। इस बार मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए, चुनाव से 8 महीने पहले कैसे संघ बिहार में बीजेपी के लिए जमीन बनाने में जुटा है? संघ ने अपने किस मॉडल के सहारे हरियाणा और दिल्ली की सत्ता में BJP की वापसी कराई?
सबसे पहले 3 पॉइंट में बिहार में संघ की रणनीति
1. सर्वे से नाराज वोटर्स और मुद्दे की पहचान
RSS सोर्स के मुताबिक, बिहार चुनाव से पहले संघ अपना इंडिपेंडेंट सर्वे करा रहा है। इसमें मुख्य तौर 3 चीजों को जानने की कोशिश है।
- किस नेता के खिलाफ नाराजगी है?
- कौन सा मुद्दा बड़ा इम्पैक्ट कर रहा है?
- बीजेपी के लिए कौन सा इश्यू फायदेमंद और कौन सा मुद्दा घातक साबित हो रहा है?
हालांकि, ये सर्वे इतना सीक्रेट तरीके से हो रहा है कि इसकी जानकारी संघ के सिर्फ कुछ ही लोगों को है।
2. चुनाव से पहले शाखा बढ़ाने की तैयारी
संघ के स्वयंसेवकों के लिए संपर्क का सबसे बेहतरीन माध्यम शाखा है। चुनावी साल में राज्य भर में शाखाओं की संख्या बढ़ाने का निर्देश दिया गया है। बिहार को दो प्रांतों में बांटा गया है। उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार।
उत्तर बिहार में ये मुजफ्फरपुर और दक्षिण बिहार में पटना से संचालित होता है। दोनों प्रांतों को मिलाकर अभी लगभग 1000 जगहों पर शाखाएं लगाई जाती है।
मार्च में संघ की बड़ी बैठक होनी है। इसमें शाखा बढ़ाकर कितनी करनी है और संपर्क को कितना सघन करना है, इस पर भी निर्णय लिए जाएंगे।
संघ से जुड़े एक टॉप सोर्स के मुताबिक, फिलहाल ये निर्णय लिया गया है कि हर बस्ती में एक शाखा बढ़ानी है। इस दिशा में काम भी शुरू हो गया है।
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3. पंचायत स्तर पर एक केंद्र बनाने का निर्णय
चुनाव के मद्देनजर पंचायत स्तर पर एक केंद्र बनाने का निर्णय लिया गया है। इसे शक्ति केंद्र का नाम दिया गया है। हालांकि, औपचारिक तौर पर संघ इससे इनकार करता है। चुनाव से पहले इस तरह के लगभग 8.5 हजार केंद्र बनाने की तैयारी है।
केंद्र के क्या होंगे काम…
- केंद्र का काम सर्वे से चिह्नित वोटर्स तक पहुंचना है। खासकर उन वोटर्स तक पहुंचना, जो भाजपा समर्थक हैं, लेकिन किसी बात से नाराज होकर वोट करने घर से नहीं निकलते हैं।
- केंद्र से जुड़े सदस्य ऐसे लोगों के घर जाएंगे। उनकी बात सुनेंगे और नाराजगी दूर करने की कोशिश करेंगे। ये खुले तौर पर भाजपा को वोट देने के लिए नहीं कहेंगे, बल्कि उन्हें वोट देने के लिए मोटिवेट करेंगे। उन्हें बताएंगे कि हिंदुत्व को किस तरह मजबूत किया जा सकता है। अगर विपक्ष सत्ता में आ जाएगा तो बिहार की क्या स्थिति होगी? वोट देना क्यों जरूरी है?
RSS सोर्स के मुताबिक, संगठन का उद्देश्य वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ाना है। अगर भाजपा का नाराज वोटर्स बूथ तक जाएगा तो वे भाजपा को ही वोट देगा, ये अंडर स्टूड है। ऐसे में केंद्र के पास पंचायत के बाद गांव से लेकर मोहल्ला तक के कार्यकर्ता होते हैं। ये अभी से लेकर वोटिंग होने तक उनसे जुड़े रहेंगे। उन्हें पोलिंग बूथ तक लाने की जिम्मेदारी केंद्र के अध्यक्ष की होगी।
अब 3 पॉइंट में समझिए, दिल्ली में किस तरह संघ ने बाजी पलटी
1. दिल्ली में RSS ने अपने त्रिदेव को उतारा था
दिल्ली में संघ के हर विंग ने अपने त्रिदेव उतारे थे। सरल भाषा में इसे ऐसे समझें कि बूथ लेवल पर RSS के 3 पदाधिकारी एक्टिव थे। इनके ऊपर अध्यक्ष, सह अध्यक्ष, प्रांत अध्यक्ष जैसे पदाधिकारी थे। हर त्रिदेव अपने नीचे कम से कम 10 आम लोगों को जोड़ रहा था। ये सभी एक साथ RSS के लिए बैठक कर रहे थे।
RSS सोर्स के मुताबिक, स्वयंसेवकों की टोली का ऐसा कॉम्बिनेशन बनाया गया था, जिसमें पुरुष, महिला और युवा शामिल थे। एक परिवार में अगर एक टोली गई तो वो उस परिवार के हर चीज पर चर्चा करेगी।

2. फैमिली गैदरिंग के जरिए देश की बात
संघ के सदस्यों ने जिस घर में भी लोगों के साथ जनसंपर्क किया, वहां बातचीत का शुरुआती टॉपिक परिवार होता था। जैसे- मोबाइल और बिना किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के फैमिली गैदरिंग क्यों जरूरी है? फैमिली वैल्यूज की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए देश की चर्चा तक ले जाते थे। इसके बाद लोकल लीडर्स की छवि पर बात होती थी।
3. दिल्ली में शराब घोटाले से महिलाओं की परेशानी का कनेक्शन
दिल्ली में संघ ने शराब घोटाले के मुद्दे को जोर- शोर से भुनाया। खास कर गरीब और लोअर मिडिल क्लास की महिलाओं के साथ इस पर चर्चा की। उन्हें बताया गया कि शराब महिलाओं के लिए सबसे बड़ी दुश्मन है। घर की इकोनॉमी और शांति खतरे में पड़ जाती है। दिल्ली में इसके लिए अरविंद केजरीवाल को जिम्मेदार बताया गया।

हरियाणा में कैंडिडेट सिलेक्शन से लेकर कैंपेनिंग तक में निभाई भूमिका
1. डोर-टू डोर कैंपेनिंग कर नाराज वोटर्स को बूथ तक ले गए
हरियाणा में RSS ने लगातार चौपाल और बैठकें की। आखिरी के 8 दिन चौपालों और बैठकों से ज्यादा तरजीह डोर टू डोर कैंपेनिंग को दी गई। वोटर्स के उस बड़े हिस्से तक पहुंच बनाई, जिसने वोटिंग के दिन घर बैठने का मन बना लिया था।
हरियाणा में RSS की कोशिश थी कि बिना जोड़-तोड़ की सरकार बने। इसके लिए संघ ने 2014 से लेकर 2024 तक की सारी उपलब्धियां लोगों के दिमाग में ताजा कीं। ये भी बताया कि अगर गलत सरकार चुनी तो क्या होगा।’
उन्हें बताया कि अगर गलत सरकार आई, तो पूरे हरियाणा में मेवातियों का शासन होगा। आंतरिक सुरक्षा को खतरा होगा। इसलिए राष्ट्रवादी सरकार चाहिए। हालांकि, पूरे क्षेत्र के मुद्दे अलग अलग थे। यहां संघ ने राष्ट्रवाद के साथ लोकल मुद्दों पर काम किया।
2. BJP के रूठे कार्यकर्ताओं को मनाया
हरियाणा में पुराने कार्यकर्ताओं के बीच लीडरशिप को लेकर नाराजगी थी। RSS ने न केवल उन्हें मनाया बल्कि मैदान में उतारने में भी कामयाब रहे। उनका घर से निकलना और लोगों के बीच जाना, जीत में अहम फैक्टर बना। ये कार्यकर्ता जमीनी स्तर के थे। वे निकले तो वोटर और ज्यादा एक्टिव हुए।

यहां पुराने और नए नेताओं के बीच तालमेल बिठाने का जिम्मा संघ ने उठाया। अगर पुराने नेता रूठे रहते, तो फिर नए नेताओं के खिलाफ दुष्प्रचार करते। उनके अपने कार्यकर्ता और वोटर घर में बैठे रहते और वोट नहीं डालते।
3. पार्टी के लिए जनाधार वाले उम्मीदवार तलाशे
हरियाणा में RSS का सुझाव था कि चाहे कांग्रेस का हो या फिर JJP का, जनाधार वाले लीडर का स्वागत करना चाहिए। टिकट बंटवारे में उस कैंडिडेट को तवज्जो दी गई। जनता BJP नेताओं से नाराज थी, अगर वही वोट मांगने गए तो हार पक्की थी। इसलिए JJP के करीब 4 नेता RSS के सुझाव से पार्टी में जुड़े।
संघ प्रमुख के एक बयान से बदल गया था बिहार चुनाव का रुख
2015 के विधानसभा का चुनाव था। 2005 के बाद पहली बार नीतीश और बीजेपी के रास्ते अलग-अलग थे। नीतीश कुमार लालू के साथ थे। बीजेपी अपनी अगुवाई में सरकार बनाने की जद्दोजहद कर रही थी। इसी बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान ने पूरे चुनाव की हवा का रुख बदल दिया था।

2015 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बयान दिया था, ‘देश में आरक्षण की समीक्षा होनी चाहिए।’ इस बयान को लालू यादव ने कैच कर लिया था।
हर चुनावी सभा में इस बयान को ऐसे प्रचारित किया कि भाजपा आरक्षण छिनना चाहती है। लालू ने चुनाव की हर सभा में इसका जिक्र किया। इसका फायदा भी उनके गठबंधन को मिला। भाजपा महज 53 सीटों में सिमट गई थी। लालू यादव और नीतीश कुमार ने मिलकर भारी बहुमत के साथ सरकार बनाई।
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