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ECI का वोटर्स लिस्ट से डुप्लीकेसी हटाने के लिए अभियान: शुरुआत बिहार चुनाव से होगी; 22 करोड़ वोटर्स आधार से लिंक नहीं, BLO घर-घर वेरिफिकेशन करेंगे


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नई दिल्ली16 मिनट पहलेलेखक: मुकेश कौशिक

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चुनाव आयोग के पास 66 करोड़ मतदाताओं के आधार एपिक नंबर फिलहाल लिंक हैं।

चुनाव आयोग (ECI) वोटर्स लिस्ट को साफ सुथरा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कवायद करने जा रहा है। इसके लिए मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने पर सहमति बन चुकी है, लेकिन इसकी शर्त को पूरा करने के लिए उन वोटर्स से कारण जानना जरूरी है, जिन्होंने अभी तक अपना आधार नंबर वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए नहीं दिया है।

आयोग के पास अभी तक 66 करोड़ मतदाताओं के आधार एपिक नंबर (इलेक्टर्स फोटो आइडेंटिटी कार्ड नंबर) से लिंक्ड हुए हैं, लेकिन अब भी करीब 22 करोड़ मतदाताओं के आधार उपलब्ध नहीं हैं। इसका नतीजा ये है कि आधार के बेस पर मतदाता सूची से डुप्लीकेशन खत्म करने की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हो पाई है।

सूत्रों के अनुसार, मतदाता सूचियों से डुप्लीकेसी खत्म करने के लिए वोटर्स तक पहुंचने की योजना बनाई गई है। इसमें बूथ स्तर के अधिकारियों को सक्रिय किया जाएगा, जो मतदाताओं के घर जाकर संपर्क करेंगे।

इस दौरान पता लगाया जाएगा कि अगर एपिक नंबर को आधार से लिंक किया गया है तो उसकी पुष्टि क्यों नहीं की? अगर लिंक नहीं किया है तो उसकी वजह जानी जाएगी।

बूथ लेवल अफसर (बीएलओ) अपना संपर्क नंबर वोटर्स के साथ शेयर करेगा। वोटर्स तक पहुंचने का यह व्यापक अभियान विधानसभा चुनावों के समानांतर चलाया जाएगा। जिस राज्य में चुनाव आने वाले हैं, वहां यह प्रक्रिया प्राथमिकता से पूरी की जाएगी।

इस साल के आखिर में बिहार में होने वाले चुनाव में बीएलओ वोटर्स से संपर्क करेंगे। अगले साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल के मतदाताओं से संपर्क की योजना है।

वोटर्स डुप्लीकेसी रोकने के लिए दुनिया के बड़े देशों में अपनाए जाने वाले तरीके

बायोमेट्रिक पहचानवोटर रजिस्ट्रेशन के दौरान बायोमेट्रिक डेटा (अंगुलियों के निशान, चेहरा या पुतलियों की स्कैनिंग) लेते हैं। नाइजीरिया और घाना में ये सिस्टम है।
केंद्रीकृत मतदाता डेटाबेसइसमें सभी मतदाताओं की जानकारी एक जगह होती है। कनाडा और जर्मनी में इसका उपयोग होता है। हर मतदाता का यूनिक आईडी नंबर होता है।
वोटर आईडी कार्डमतदाताओं को एक यूनिक वोटर आईडी कार्ड दिया जाता है, जिसके बिना वोटिंग नहीं हो सकती। भारत और मेक्सिको में यही व्यवस्था चल रही है।
नियमित मतदाता सूची की सफाईसमय-समय पर मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है। मृतक, स्थानांतरित लोग या डुप्लीकेट नामों को इससे हटाया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में इसके लिए ऑटोमेटेड सिस्टम बनाया गया है। उसी से मतदाता सूची की जांच होती है।
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और वेरिफिकेशनलोग ऑनलाइन रजिस्टर कर सकते हैं और उनकी जानकारी सरकारी डेटाबेस (जैसे टैक्स या पासपोर्ट रिकॉर्ड) से मिलाई जाती है।

समाधान इसलिए जरूरी, बिहार से होगी शुरुआत

2014 और 2018 के चुनावों में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लाखों डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम सामने आए थे। एक अनुमान के मुताबिक, तेलंगाना में 20 लाख से ज्यादा डुप्लीकेट नाम थे। इसे रोके बिना निष्पक्ष चुनाव कराना मुश्किल है।

अगले 20 महीने में बिहार के 7.80 करोड़, प. बंगाल के 7.57 करोड़, असम के 2.45 करोड़, केरल के 2.77 करोड़ और तमिलनाडु के 6.23 करोड़ मतदाताओं के घरों तक आयोग के बीएलओ पहुंचेंगे। क्योंकि, बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।

अभियान शुरू करने के कारण

पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु में अगले साल मई में विधानसभा चुनाव होंगे। निर्वाचन आयोग ने वोटरों के वेरिफिकेशन और उनसे संपर्क का यह अभियान इन कारणों से शुरू किया।

  • राजनीतिक दल बड़े पैमाने पर वोटर जोड़े जाने की शिकायत तो करते हैं लेकिन इस बारे में होने वाली अपील और सेकेंड अपील के आंकड़ों में भारी फासला दिखाई देता है।
  • सूत्रों के मुताबिक, महाराष्ट्र में लोस चुनाव के बाद 39 लाख नए वोटर जोड़ने को लेकर आरोप लगे पर जिला निर्वाचन अफसरों के स्तर पर 89 शिकायतें दर्ज हुईं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी के स्तर पर सिर्फ एक शिकायत पहुंची।
  • उन आरोपों की सच्चाई भी सामने आएगी कि एक ही पते पर कई वोटर्स पंजीकृत किए गए। बूथ लेवल अधिकारियों का मतदाताओं के साथ सीधा संवाद कायम हो सकेगा।
  • निर्वाचन आयोग के 10.49 लाख बीएलओ का राजनीतिक दलों के करीब 13 लाख 87 लाख बूथ लेवल एजेंटों से भी संवाद होगा।

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