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Kharmas 2024: खरमास में जरूर करें इन मंत्रों का जाप, जिंदगीभर बनी रहेगी खुशहाली


खरमास 2024 | Image:
Freepik

Kharmas 2024 Mantras: हिंदू धर्म में खरमास का बेहद खास महत्व है। खरमास के दौरान सभी तरह के शुभ-मांगलिक कार्यों को करने की मनाही होती है। ऐसे में सनातन धर्म के लोगों के लिए ये महीना काफी महत्वपूर्ण होता है। पंचांग के अनुसार, इस साल का आखिरी खरमास 15 दिसंबर से शुरू हो जाएगा। जिसका समापन नए साल 2025 में मंगलवार, 14 जनवरी को होगा।

खरमास की अवधि में सूर्य देव की पूजा किए जाने का विशेष महत्व है। ऐसे में आप खरमास में रोजाना सूर्य देव के कुछ विशेष मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इससे आपके ऊपर सूर्य देव की कृपा बनी रहेगी और आपके सभी बिगड़े हुए काम दोबारा बनने लगेंगे। तो चलिए बिना किसी देरी के जानते हैं सूर्य देव के मंत्रों के बारे में।

सूर्यदेव के मंत्र (Kharmas 2024 Mantra)

ॐ घृणि सूर्याय नम:।

बीज मंत्र

ॐ ह्राँ ह्रीँ ह्रौं स: सूर्याय नम:।

सूर्य गायत्री मंत्र

ॐ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥

प्रातः सूर्य स्मरण मंत्र

प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं
रूपं हि मंडलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि।
सामानि यस्य किरणाः प्रभवादिहेतुं
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्‌॥

सूर्यमंडल अष्टक स्तोत्रम्

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायण शंकरात्मने ॥

यन्मडलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरुपम् ।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मण्डलं देवगणै: सुपूजितं विप्रैः स्तुत्यं भावमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं, त्वगम्यं, त्रैलोक्यपूज्यं, त्रिगुणात्मरुपम् ।
समस्ततेजोमयदिव्यरुपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं गूढमतिप्रबोधं धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं व्याधिविनाशदक्षं यदृग्यजु: सामसु सम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भुर्भुव: स्व: पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यद्योगितो योगजुषां च संघाः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं विश्वसृजां प्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत् संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्ध तत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदि वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः ।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

यन्मडलं वेदविदोपगीतं यद्योगिनां योगपथानुगम्यम् ।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥

मण्डलात्मकमिदं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ।
सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥

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