मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में सिर्फ डॉक्टर्स की रिटायरमेंट उम्र 65 साल है। बाकी विभागों में 62 साल में कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं।
मध्यप्रदेश की ब्यूरोक्रेसी उम्रदराज हो चुकी है। प्रदेश के 73 फीसदी क्लास वन अधिकारी तो 53 फीसदी क्लास टू अधिकारियों की उम्र 45 साल से ज्यादा है। इसके अनुपात में क्लास वन युवा अधिकारियों की संख्या 27% तो क्लास टू कैटेगरी के अधिकारी 47% हैं। आने वाले 5
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इस स्थिति ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। पिछली कैबिनेट मीटिंग में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सभी विभागों से खाली पदों का ब्योरा मांगा है। ब्योरा मिलने के बाद सीएम मुख्य सचिव अनुराग जैन के साथ इसी महीने बैठक करेंगे।
जानकारों की मानें तो ऐसी स्थिति इसलिए बनी क्योंकि भर्ती प्रक्रिया के प्रति सरकार गंभीर नहीं है। इसका असर आने वाले समय में सरकार के कामकाज पर पड़ना तय है। जानकार ये भी मानते हैं कि युवाओं की भर्ती नहीं होने से आने वाले समय में नवाचार और नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में कमी आएगी।
मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में सिर्फ डॉक्टर्स की रिटायरमेंट उम्र 65 साल है। बाकी विभागों में 62 साल में कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। किस तरह से उम्रदराज हो रही है एमपी की ब्यूरोक्रेसी, पढ़िए रिपोर्ट…
किस कैटेगरी में कितने अधिकारी युवा और कितने उम्रदराज मध्यप्रदेश सरकार की 31 मार्च 2023 को जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में नियमित सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या कुल 5 लाख 90 हजार 550 है। मौजूदा साल में ये आंकड़ा और घट गया है, जिसकी रिपोर्ट इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने के बाद जारी की जाएगी।
एमपी में 45 साल से कम उम्र वाले कुल अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 3 लाख 7 हजार 315 है, जो कुल कर्मचारियों का 52 फीसदी है। 46 से 61 साल की उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 83 हजार 235 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 48 फीसदी है।
युवा और उम्रदराज कर्मचारियों के बीच केवल 4 फीसदी का अंतर है। जानकारों के मुताबिक, ये रेश्यो 60:40 का होना चाहिए यानी 60 फीसदी युवा और 40 फीसदी उम्रदराज कर्मचारी-अधिकारी होने चाहिए।

क्लास वन अधिकारी: युवाओं के मुकाबले उम्र दराज ज्यादा क्लास वन अधिकारियों की बात की जाए तो इनकी कुल संख्या 8 हजार 49 हैं। इनमें से 2135 यानी 27 फीसदी अधिकारी 45 साल से कम उम्र के हैं। 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र वाले अधिकारियों की संख्या 5 हजार 914 है, जो कुल अधिकारियों की संख्या का 73 फीसदी है।
क्लास वन अधिकारी राजपत्रित अधिकारी होते हैं। प्रशासनिक मशीनरी को चलाने में इनका अहम रोल होता है।

क्लास टू अधिकारी: युवाओं से 6 फीसदी ज्यादा उम्रदराज मध्यप्रदेश में क्लास टू अधिकारियों की कुल संख्या 38 हजार 432 हैं। क्लास वन अधिकारियों से इनकी संख्या करीब साढ़े चार गुना ज्यादा है। ये भी राजपत्रित अधिकारी होते हैं। क्लास वन अधिकारियों के बाद क्लास टू अधिकारी प्रशासनिक मशीनरी को चलाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
इनका काम सरकारी योजनाओं को जमीन पर उतारने का है। इनमें से 17 हजार 871 यानी 47 फीसदी कर्मचारियों की उम्र 45 से कम है जबकि 46 से 61 से ज्यादा उम्र वाले अधिकारियों की संख्या 20 हजार 561 है, जो कुल अधिकारियों का 53 फीसदी है।

तृतीय श्रेणी कर्मचारी: 45 से कम उम्र के 54 फीसदी मध्यप्रदेश में तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या 4 लाख 84 हजार 928 हैं। कर्मचारियों की ये सबसे ज्यादा संख्या है। सरकारी दफ्तरों के बाबू तृतीय श्रेणी कर्मचारी कहलाते हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में ये अहम भूमिका निभाते हैं।
इस संवर्ग में युवा कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा है। 4 लाख कर्मचारियों में 45 साल से कम उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 60 हजार 927 है, जो कुल कर्मचारियों का 54 फीसदी है। जबकि 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 24 हजार 01 है, जो कुल कर्मचारियों का 46 फीसदी है।

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी: युवाओं से 10 फीसदी ज्यादा उम्रदराज चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की फौज भी उम्रदराज है। इस कैटेगरी में प्यून, ऑफिस बॉय, चौकीदार, सफाईकर्मी शामिल हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कुल संख्या 59 हजार 141 हैं। इनमें से 45 साल से कम उम्र वाले कर्मचारियों की संख्या 26 हजार 382 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 45 फीसदी है।
वहीं, 46 से 61 साल से ज्यादा उम्र के कर्मचारियों की संख्या 32 हजार 759 हैं, जो कुल कर्मचारियों का 55 फीसदी है। इनमें भी 51 से 55 साल के कर्मचारियों की संख्या सबसे ज्यादा 10 हजार 660 हैं।

अब जानिए, कर्मचारियों के इस असंतुलन पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट…
प्रो-कॉर्पोरेट पॉलिसी पैदा कर रही दिक्कत पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद बेहार कर्मचारियों और अधिकारियों के इस असंतुलन के पीछे सरकार की प्रो -कॉर्पोरेट पॉलिसी को जिम्मेदार बताते हैं। बेहार कहते हैं कि अभी जो नीतियां बन रही हैं, वह पूरी तरह से कर्मचारियों के लिए नहीं है। मौजूदा दौर में आउट सोर्स का जोर बढ़ रहा है।
जो भी व्यक्ति सरकारी नौकरी करता है, वह सिक्योरिटी चाहता है। यदि वह दक्षता के साथ काम कर रहा है तो उसका मूल्यांकन होता रहे। रिटायरमेंट के बाद ऐसी व्यवस्था हो कि वह अपनी जिंदगी आराम से चला सके।
बेहार कहते हैं कि ऐसी नीति बनाने की जरूरत है, जो न तो प्रो-कॉर्पोरेट हो और न ही प्रो-एंप्लॉय हों, जिससे कर्मचारी भी मनमानी न कर सकें। सही नीति नहीं होने से सरकार दबाव में है। कभी भी कॉर्पोरेट और कर्मचारी नेताओं के दबाव में नीति नहीं बननी चाहिए। इसी वजह से सरकार का झुकाव भी आउट सोर्स की तरफ है।
नवाचार नहीं होगा, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल घटेगा बेहार कहते हैं कि 1990 के दौर में जब कर्मचारियों को लेकर नीति बनती थी तो ट्राय पार्टी फैसले होते थे। इसमें सरकार, श्रम (लेबर) और कॉर्पोरेट के नुमाइंदे पहले बैठक करते थे, फिर फैसला होता था। जब तीनों ही पार्टियां साथ बैठकर फैसला करेंगी तो सही निर्णय होगा।
46 से ज्यादा उम्र के कर्मचारी-अधिकारियों की संख्या बढ़ रही है। इसका मतलब है कि सिस्टम में अनुभव बढ़ रहा है, लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है। नए लोग नहीं आएंगे तो अनुभव घटेगा। नए लोगों के आने से नए विचार आते हैं। नई भर्ती न होने से आने वाले समय में नवाचार और नई तकनीकी का इस्तेमाल करने वालों का अभाव होगा।

युवाओं की भर्ती होगी, तब युवा स्टाफ बढ़ेगा मध्यप्रदेश अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के प्रांताध्यक्ष एमपी द्विवेदी कहते हैं- यह कड़वा सच है कि युवाओं की भर्ती नहीं हो रही है। भर्ती होगी, तभी तो युवा स्टाफ बढ़ेगा। शासन के नियम हैं कि सीधी भर्ती के पदों पर हर साल रिक्त पदों के आधार पर 5 प्रतिशत पद भरे जा सकते हैं लेकिन विभाग प्रमुखों को इसकी चिंता नहीं है। इसलिए युवा कर्मचारी घट रहे हैं।
द्विवेदी के अनुसार, सरकारी दफ्तरों में 1990 के बाद विभागीय ढांचे के अनुरूप भर्ती करने का काम नहीं किया है। पच्चीस साल से अधिक समय हो गया लेकिन भर्ती को लेकर गंभीरता नहीं रखी गई। इस कारण हजारों पद हर विभाग में रिक्त हैं। सरकार ने 2016 से पदोन्नति पर भी रोक लगा रखी है। पदोन्नति वाले उच्च स्तर के पद भी रिक्त पड़े हैं। सरकार को चाहिए कि पदोन्नति पर रोक हटाकर कर्मचारियों को प्रमोशन दें।

सीएम ने सीएस ने मंगाया रिक्त पदों का ब्योरा मध्यप्रदेश में लोकसेवा आयोग (पीएससी) और कर्मचारी चयन मंडल के माध्यम से की जाने वाली सरकारी भर्ती में होने वाली देरी आने वाले समय में फजीहत की वजह बन सकती है। साथ ही युवाओं की घटती संख्या का असर सरकार की एफिशिएंसी पर भी पड़ रहा है।
इन स्थितियों को देखते हुए अब मोहन सरकार इस ओर गंभीर हुई है और पिछली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने विभागों के रिक्त पदों का ब्योरा विभाग प्रमुखों से मांगा है। मुख्य सचिव अनुराग जैन ने इसी माह सभी विभागों का रिक्त पदों का डिटेल आने के बाद सीएम के साथ बैठक करने की बात भी कही है।