मध्य प्रदेश पर्यटन निगम ने ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक अनूठी पहल की है। बैतूल के सोलर विलेज बाचा में शनिवार से होम स्टे की सुविधा शुरू होगी। पहले चरण में बाचा गांव में 5 और बज्जर वाड़ा में 2 होम स्टे का संचालन शुरू किया गया है।
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इन होम स्टे को पारंपरिक और आधुनिक सुविधाओं का बेहतरीन संगम बनाया गया है। मिट्टी, ईंट और पत्थर से निर्मित इन घरों में एक कमरे के साथ आगे-पीछे बरामदा है। आधुनिक सुविधाओं के लिए लेट-बाथ की व्यवस्था की गई है। पर्यटकों को मामूली शुल्क पर न केवल ठहरने और भोजन की सुविधा मिलेगी, बल्कि वे ग्रामीण संस्कृति और रीति-रिवाजों से भी रूबरू हो सकेंगे।
प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहले से ही 164 से अधिक होम स्टे संचालित हो रहे हैं। बैतूल में भी कान्हावाड़ी में 12 और चार अन्य गांवों में भी होम स्टे तैयार किए जा रहे हैं। बाचा गांव में कुल 10 होम स्टे की योजना है, जिनमें से 5 तैयार हो चुके हैं। इस परियोजना की जिम्मेदारी स्वयंसेवी संगठन ‘बैक टू विलेज’ को सौंपी गई है।
यह पहल न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगी बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगी। देशी-विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण भारत की असली झलक देखने का अवसर मिलेगा, साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त होंगे।
एक होम स्टे में रुकेंगे दो पर्यटकयोजना के तहत तैयार होने वाले घर यानि होम स्टे में दो पर्यटक एक समय में रुक सकेंगे, जिसमें ठहरने वाले पर्यटक को रुकने के अलावा देशी व्यंजन परोसे जायेगा। पर्यटकों को उसी घर का हितग्राही भोजन बनाकर देगा, जिससे वह देशी व्यंजन का आनंद ले सकेगा। यहां ठहरने, खाने, नाश्ते के लिए 24 घंटे के लिए 2 हजार रुपए का शुल्क लिया जाएगा। इस होम स्टे में पर्यटक स्थानीय संस्कृति, रीति रिवाज, भोजन का मजा ले सकेगा। ये सभी मकान आदिवासी हितग्राही के उसके मूल निवास के बाजू में बनाए गए हैं।

सामुदायिक बैठक के बाद तय हुए हितग्राही
बैतूल जिले के चार गांवों में से फिलहाल बाचा, बज्जर वाडा और कान्हवादी में होम स्टे बनाए जा रहे हैं। इसके लिए संस्था बैक टू विलेज ने हितग्राहियों का चयन सामुदायिक बैठक के बाद किया है। इसके लिए पर्यटन निगम एक होम स्टे बनाने के लिए आदिवासी हितग्राही को 3 लाख रुपए, जबकि गैर आदिवासी हितग्राही को 2 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दे रहा है। इस होम स्टे के शुरू हो जाने के बाद ठहरने वाले पर्यटक को चार्ज की जाने वाली फीस का शत प्रतिशत हिस्सा हितग्राही ही रखेगा।
ग्रामीण ही करेंगे बुकिंग
इन होम स्टे के संचालन के लिए गांव में ग्राम पर्यटन समिति बनाई गई है। इस समिति के जरिए ही स्टे के लिए बुकिंग कराई जा रही है। यह बुकिंग भी शनिवार से शुरू हो जाएगी। वैसे निगम की वेब साइट पर भी घरों में ठहरने के लिए ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा है। प्रदेश के 42 जिलों के गांवों में अभी 164 होम स्टे इसी तरह काम कर रहे है। निगम के अधिकारियों ने बताया की मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के उन सभी घर मालिकों को अवसर देने वाली योजनाओं की शुरुआत की, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के लिए अपने आवास के एक हिस्से को पर्यटन आवास के रूप में देने को तैयार हैं। ये अनूठी और समर्थक योजनाएं संपत्ति मालिकों को पर्यटकों को “भारत के दिल” की समृद्ध संस्कृति, भोजन, रीति-रिवाज और जीवन शैली से परिचित कराने में सक्षम बनाएगी। होम-स्टे आतिथ्य और आवास का एक लोकप्रिय रूप है, जिसके तहत आगंतुक शहर के स्थानीय लोगों के साथ एक निवास साझा करते हैं।
ग्रामीण स्थलों का भ्रमण भी कर सकेंगे टूरिस्ट इन होम स्टे में रुकने के साथ ही टूरिस्ट आसपास के प्राकृतिक स्थलों की सैर भी कर सकेंगे। उनके चाहने पर समिति टूरिस्ट को वाहन भी उपलब्ध कराएंगे। बाचा में ठहरने वाले पर्यटक जटान देव, भौरा, चूरना घूम सकेंगे। वहीं फिशिंग के लिए उन्हें कोसमी डैम भी ले जाया जा सकेगा। भोपाली, बालाजीपुरम, पाढर स्तिथ शिव की टेकडी, कुकरु के काफी बागान भी दिखाए जा सकेंगे। इसका शुल्क अलग से देना होगा। शाम को आदिवासी नृत्य का लुत्फ भी पर्यटकों को मिलेगा।
बाचा जहां जलता है चूल्हा पर धुआं नहीं उठता
साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है। आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता, यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है और न ही जंगल से लकड़ी काटने की, क्योंकि यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है। महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या केरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है।
स्वच्छता के लिए भी की गई खास पहल
गांव को साफ सुथरा रखने के लिए भी यहां खास तरह की पहल की गई है। गांव के हर घर के सामने एक डस्टबिन रखवाया गया है, जिसमें ग्रामीण अपने घरों का कचरा डालते हैं। इस कचरे को सप्ताह में 1 दिन गांव के युवा इकट्ठा करते हैं और उसके लिए वे अपने खर्च पर एक वाहन का भी इंतजाम करते हैं। इस वाहन में पूरे गांव का कचरा इकट्ठा कर गांव के बाहर बनाए गए नाडेप टांको में कचरा डाला जाता है। यही वजह है कि स्वच्छता के लिए इस गांव को 2017 में स्वच्छता का जिला स्तरीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
17 साल से विवाद रहित गांव
इस गांव की एक खूबी यह भी है कि यह पिछले 17 सालों से विवाद मुक्त गांव बना हुआ है। यहां पिछले 2005 में एक बड़ा विवाद हो गया था। उस समय यहां एक प्रेमी जोड़े के कारण एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी, लेकिन तब से यहां कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। खास बात यह है कि गांव का विवाद गांव में ही सुलझाने के लिए गांव के लोगों ने अपनी बनाई कमेटी में हर विवाद को रखकर इसे सुलझाया है। यही वजह है कि गांव में छोटे-मोटे विवादों को गांव में ही सुलझा लिया जाता है।
गांव के जागरूक नागरिक अनिल उईके बताते हैं कि गांव में हर साल 3 से 4 विवाद छोटे मोटे होते हैं। जिन्हें गांव में ही सुलझा लिया जाता है। इसके अलावा यहां कभी कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ है। 2005 के बाद यहां अब तक ना तो पुलिस पहुंची है और ना ही कोई मामला कोर्ट कचहरी तक गया है।
ओ डी एफ भी है गांव
इस गांव की एक और खूबी है। यह गांव खुले में शौच मुक्त गांव बना हुआ है। गांव के हर घर में ग्रामीणों ने शुष्क शौचालय का निर्माण कराया हुआ है, जिसके कारण ग्रामीणों को अब खुले में शौच जाना नहीं पड़ता। यही वजह है कि गांव पूरी तरह से ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त गांव बना हुआ है।
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